उत्तराखंड में चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं, कोरोनेशन में न ऑपरेशन-अल्ट्रासाउंड
एक तरफ जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की हड़ताल से मरीज हलकान है। तो वहीं कोरोनेशन में अल्ट्रासाउंड और ऑपरेशन न होने से मरीजों की दिक्कतें और बढ़ गर्इ है।
देहरादून, [जेएनएन]: प्रदेशभर के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। अस्पतालों में तैनात 113 विशेषज्ञ चिकित्सक सोमवार को कार्य बहिष्कार पर रहे। जिसका असर ओपीडी से ऑपरेशन और मरीजों की जांच तक पर दिखा। स्थिति यह रही कि कई जगह ऑपरेशन, अल्ट्रासाउंड आदि पूरी तरह ठप हो गए हैं। वहीं चिकित्सालयों में नेत्र, हड्डी रोग, बाल रोग और स्त्री रोग संबंधी सेवाएं मिलनी बंद हो गई हैं। वहीं, कोरोनेशन अस्पताल में भी न ऑपरेशन और अल्ट्रासाउंड बंद है।
बता दें कि बीते वर्षों में उत्तराखंड के डॉक्टरों को विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में पीजी सीटें आवंटित की गईं। इस व्यवस्था के तहत अब तक आपको बता दें कि कुल 113 डॉक्टर उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से पीजी डिप्लोमा कर चुके हैं, जबकि 19 अभी भी अध्ययनरत हैं। इन डॉक्टरों ने जिन कॉलेजों से पीजी किया उन कॉलेजों ने उन्हें गैर मान्यता प्राप्त सीटों पर दाखिला दे दिया। ऐसे में अब उनकी डिग्री पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में विधिक कठिनाइयों को देखते हुए अब ये विशेषज्ञ डॉक्टर कार्य बहिष्कार पर हैं। सोमवार को इसके कारण कई अस्पतालों में व्यवस्था चरमरा गई।
राजधानी दून के दूसरे बड़े अस्पताल कोरोनेशन में एनेस्थेसिस्ट व रेडियोलॉजिस्ट के काम न करने के कारण न ऑपरेशन हुए और न अल्ट्रासाउंड। हरिद्वार के मेला अस्पताल में भी रेडियोलॉजिस्ट के कार्य बहिष्कार के कारण अल्ट्रासाउंड नहीं हुए। महिला अस्पताल व जिला अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञों ने मरीज नहीं देखे। जबकि, सिविल अस्पताल रुड़की में पांच चिकित्सकों के कार्य बहिष्कार के कारण मरीजों को भारी परेशानी उठानी पड़ी। यहां रेडियोलॉजी व पैथोलॉजी पर इसका व्यापक असर दिखा।
इसी तरह बेस अस्पताल कोटद्वार में भी जांच के लिए मरीजों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। प्रांतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. डीपी जोशी का कहना है कि यह प्रकरण डॉक्टरों के भविष्य से जुड़ा है। यह कोर्स उन्हें सरकार द्वारा ही कराया गया है। ऐसे में सरकार व शासन का दायित्व बनता है कि मामले की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व एमसीआइ में उचित पैरवी करे। जब तक कोई ठोस निर्णय नहीं होता डॉक्टर काम नहीं करेंगे।
कोरोनेशन में ऑपरेशन न अल्ट्रासाउंड
सरकारी अस्पताल में इलाज कराने वाले निम्न व निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दून अस्पताल में ऑपरेशन पहले ही बंद हैं और अब कोरोनेशन ने भी यही स्थिति हो गई है। एनेस्थेसिस्ट के कार्य बहिष्कार के होने से यहां भी ऑपरेशन ठप हो गए हैं। वहीं अल्ट्रासाउंड भी बंद हैं।
कोरोनेशन अस्पताल शहर के दूसरे प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शुमार है। यहां प्रतिदिन करीब 800-900 के बीच ओपीडी रहती है। सोमवार को विशेषज्ञ चिकित्सकों के कार्य बहिष्कार का असर अस्पताल पर भी दिखा। यहां एनेस्थेसिस्ट डॉ. संजीव कटारिया के कार्य बहिष्कार के कारण ऑपरेशन ठप हो गए हैं। कहने के लिए अस्पताल में एक एनेस्थेसिस्ट और हैं। पर स्वास्थ्य कारणों से उन्हें एनेस्थेसिया के काम से मुक्त रखा गया है। अस्पताल में रोजाना करीब छह से सात ऑपरेशन होते हैं, पर सोमवार को एक भी ऑपरेशन नहीं हो सका। इसके अलावा रेडियोलॉजिस्ट डॉ. मनोज उप्रेती भी कार्य बहिष्कार पर हैं। जिससे अल्ट्रासाउंड बंद हो गए हैं। यहां रोजाना 50-60 अल्ट्रासाउंड होते हैं। इस स्थिति में मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एलसी पुनेठा ने कहा कि विशेषज्ञ चिकित्सकों के कारण सेवाएं प्रभावित हुई हैं। वैकल्पिक व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है।
एमडी-एमएस के बाद भी नियुक्ति का इंतजार
राज्य सरकार जहां एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने का दम भर रही है, वहीं विभागीय सुस्ती व्यवस्थाएं पटरी पर आने नहीं दे रही। विशेषज्ञों की कमी का रोना रोने वाला स्वास्थ्य विभाग, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से पीजी करने वाले बांडधारी चिकित्सकों को दो माह बाद भी नियुक्ति नहीं दे पाया है। एमडी-एमएस के बाद भी यह लोग नियुक्ति की बाट जोह रहे हैं।
इन छात्रों ने राजकीय मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी में पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। बांड के तहत 5.5 लाख रुपये के स्थान पर प्रति वर्ष 1.25 से 1.30 लाख रुपये फीस अदा की। इस बांड के तहत उन्हें उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सेवा देनी है। बांड के अनुसार छात्रों को परिणाम घोषित होने के दो माह के भीतर नियुक्ति मिल जानी चाहिए। इनका रिजल्ट 25 जून को आ गया था और विभाग अब तक इन्हें नियुक्ति नहीं दे पाया है। यह हाल तब है जब प्रदेश में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है और स्वास्थ्य सुविधाओं को ढर्रे पर लाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
बहरहाल, परेशान छात्र अब स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा विभाग के चक्कर काट रहे हैं। उनका कहना है कि वह उत्तराखंड के किसी भी हिस्से में अपनी सेवाएं देने को तैयार हैं। लेकिन योग्य होने के बाद भी वह पिछले दो माह से बेरोजगार हैं। उन्होंने इन दो माह की क्षतिपूर्ति की भी मांग की है।
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत ने बताया कि बांडधारी चिकित्सकों के संबंध में समिति बनी हुई है। जिसमें उनके अलावा अपर सचिव, मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्य व चिकित्सा शिक्षा निदेशक हैं। रिक्तियों के अनुसार इन्हें विभिन्न अस्पतालों में तैनाती दी जानी है। सूची तैयार की जा रही है और नियुक्ति आदेश जल्द जारी कर दिया जाएगा।
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