भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने की तकनीक तो ईजाद की, पर अभी व्यावसायिक उत्पादन का है उसे इंतजार
भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने की तकनीक ईजाद की तो लगा कि अब प्लास्टिक सिरदर्द नहीं बनेगा। तब से अब तक संस्थान में प्रयोगशाला स्तर की जगह एक टन प्रतिदिन डीजल उत्पादन क्षमता का प्लांट लग चुका है मगर तकनीक अभी भी बाजार से दूर है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। वर्ष 2010-11 में जब भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने प्लास्टिक कचरे (विशेषकर पॉलीथिन) से पेट्रोल, डीजल और एलपीजी बनाने की तकनीक ईजाद की तो लगा था कि अब प्लास्टिक कचरा सिरदर्द नहीं बनेगा। तब से अब तक संस्थान में प्रयोगशाला स्तर की जगह एक टन प्रतिदिन डीजल उत्पादन क्षमता का प्लांट लग चुका है, मगर तकनीक अभी भी बाजार से दूर है। वजह है कि प्लास्टिक कचरा न तो निरंतर उपलब्ध हो पा रहा है, न ही डीजल बनाने की दर इतनी कम आ पा रही है कि उसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सके।
आइआइपी की तकनीक के आधार पर बड़े स्तर पर डीजल तैयार करने के लिए गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. (गेल) संस्थान को 13 करोड़ रुपये भी प्रदान कर चुका है। इस राशि से आइआइपी परिसर में एक टन प्रतिदिन डीजल उत्पादन की क्षमता वाला प्लांट भी लग चुका है। प्लांट का उद्घाटन पिछले साल अगस्त में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन सिंह ने किया था।
प्लांट लगने से उत्साहित आइआइपी ने दून के प्लास्टिक कचरे को संस्थान तक लाने के लिए नगर निगम से भी संपर्क साधा था। हालांकि, जो डीजल प्लांट में बन रहा है, उसकी लागत प्रति लीटर करीब 80 रुपये आ रही है। यही डीजल बाजार में 72 रुपये के करीब मिल रहा है। जब प्लांट स्थापित किया जा रहा था, तब विज्ञानियों ने दावा किया था कि डीजल की दर 50 रुपये प्रति लीटर आएगी और इसकी क्षमता पांच टन तक बढ़ा दी जाए तो डीजल की दर प्रति लीटर 35 रुपये होगी।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो संस्थान के प्लांट में प्रतिदिन एक टन डीजल तैयार किए जाने की जगह जरूरत के मुताबिक प्लास्टिक मंगाया जा रहा है और उसी के अनुसार डीजल तैयार किया जा रहा है। लिहाजा, न तो दर नीचे आ रही है और न ही व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन की राह खुल रही है।
दून के कचरे में 19 हजार लीटर डीजल बनाने की क्षमता
दून में रोजाना 300 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। इसमें से करीब 10 फीसद ऐसा प्लास्टिक कचरा होता है, जिससे डीजल बनाया जा सकता है। यदि इच्छाशक्ति हो तो रोजाना 30 टन (30 हजार किलो) कचरा डीजल बनाने के लिए मुहैया कराया जा सकता है। इस कचरे से 19 हजार लीटर डीजल तैयार किया जा सकता है। यह तब संभव है, जब घरों से ही प्लास्टिक कचरे को पृथक किया जाएगा। फिलहाल इस दिशा में किसी भी स्तर पर कोई प्रयास दूर-दूर तक होता नहीं दिख रहा।
संपर्क के बाद कंपनियों ने खींचे कदम
प्लास्टिक कचरे से डीजल तैयार करने की तकनीक के प्रति महाराष्ट्र व चेन्नई की कुछ कंपनियों से रुचि दिखाई थी। संस्थान के विज्ञानियों के साथ कई दौर की वार्ता भी की गई। मगर, लागत अधिक आने के डर से कंपनियां कदम बढ़ाने से परहेज कर रही हैं।
तकनीक में इतने ईंधन उत्पादन का दावा (प्रति 100 किलो प्लास्टिक पर)
- पेट्रोल, 70 लीटर
- डीजल, 85 लीटर
- एलपीजी, 50 किलो
डॉ. सनत कुमार (वरिष्ठ विज्ञानी, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान) ने कहा कि प्लास्टिक कचरे से डीजल का बड़े स्तर पर उत्पादन करने से पहले तमाम पहलुओं पर गौर करना पड़ता है। जैसे कि लागत, कच्चे माल की उपलब्धता व प्लांट कहां लगेगा। इन तमाम बातों को लेकर गेल के साथ वार्ता चल रही है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द गेल या तो अपने स्तर पर प्लांट लगाएगा या अन्य कंपनियों के साथ भागीदारी की जाएगी।
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