Move to Jagran APP

विधायकों का गुस्सा नौकरशाही पर फूटा, मुखियाजी ने तुरंत जारी कर दिया फरमान

सरकार के तीन साल के कार्यकाल को लेकर आयोजित कार्यक्रम में विधायकों का गुस्सा नौकरशाही पर फूटा। बोले फोन करो उठाते नहीं मिलने जाओ मीटिंग के नाम पर टरकाते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 08:58 AM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 08:58 AM (IST)
विधायकों का गुस्सा नौकरशाही पर फूटा, मुखियाजी ने तुरंत जारी कर दिया फरमान
विधायकों का गुस्सा नौकरशाही पर फूटा, मुखियाजी ने तुरंत जारी कर दिया फरमान

देहरादून, विकास धूलिया। ऊंट को अपनी उंचाई को लेकर तब तक गुमान रहता है, जब तक वह पहाड़ के नीचे नहीं आता। ऐसा ही कुछ गुजरे हफ्ते हुआ। मौका, सरकार के तीन साल के कार्यकाल को लेकर आयोजित कार्यक्रम। मंत्रियों ने रिपोर्ट कार्ड रखा, तो मुख्यमंत्री ने खींचा विकास का खाका। बारी आई विधायकों की, मानों सभी ऊंट को उसकी जगह बताने की ठान के आए। सबका गुस्सा फूटा नौकरशाही पर। बोले, फोन करो, उठाते नहीं, मिलने जाओ, मीटिंग के नाम पर टरकाते हैं। काम लेकर जाओ तो फाइलों को ऐसा घुमाते हैं कि जलेबी भी शरमा जाए। मुखियाजी भांप गए, तीन साल का दबा गुबार निकल रहा है। तुरंत जारी कर दिया फरमान कि सब अफसर विधायकों के नंबर अपने फोन में सेव कर लें। हफ्ते में दो दिन सीएम से लेकर डीएम, सब हाजिर रहेंगे दफ्तर में। सुनने में आ रहा है कि अब ऊंट से करवट नहीं बदली जा रही है।

loksabha election banner

अभी दिल्ली दूर की कौड़ी

दिल्ली में केजरीवाल की जीत से कई सियासी पार्टियों के अरमानों को झटका लगा, मगर सूबे में क्षेत्रीय दल के नेताजी गदगद हैं। दिल बल्लियों उछल रहा है, यह हसीन सपना देखकर कि बस अब कुर्सी उनसे चंद कदम ही दूर है। सही समझे, ये हैं पूर्व मंत्री दिवाकर भट्ट। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान का एक बड़ा चेहरा, कड़क और तेजतर्रार आंदोलनकारी नेता की छवि। उत्तराखंड क्रांति दल से विधायक बने भट्ट को वर्ष 2007 में दूसरी निर्वाचित सरकार में भाजपा को सहारा देने की एवज में मंत्री पद मिला। अब सत्ता का स्वाद ही कुछ ऐसा है कि एक बार चख लिया, भूलता नहीं। कई टूट के बाद इन दिनों उक्रांद एक है। हालांकि अभी चुनावी जीत दूर की कौड़ी है मगर दिल्ली की तरह क्षेत्रीय दल के मुखिया होने के नाते नेताजी की उम्मीदें परवान चढ़ने लगी हैं। लिहाजा, अपनी सियासी खिचड़ी चूल्हे पर चढ़ा चुके हैं।

लीजिए, फिर पकड़ा उड़ता तीर

उड़ता तीर पकड़ना कोई इनसे सीखे। सियासत के ऐसे धुरंधर कि कब, कौन सा पैंतरा चल दें, नजदीकी भी नहीं जानते। शुरुआत से नजर मुखिया की कुर्सी पर लेकिन मौका मिला 14 साल बाद। ताजपोशी हुई लेकिन तीन साल में इतना कुछ झेला कि 30 साल की सियासत के तजुर्बे से भरी झोली भी खाली हो गई। अपने ही अपने न रहे, इसके बावजूद हौसला न छोड़ा। सोशल मीडिया का इस्तेमाल इनसे अधिक सूबे में कोई सियासतदां नहीं करता। ताजा नमूना हाल में देखा, एक वायरल पोस्ट को जनाब तड़ से ले उड़े और दे दनादन दो ट्वीट उछाल दिए। जिस अस्थिरता की वजह से सत्ता से बेदखल हुए, उसके लिए भाजपा पर निशाना साध डाला। अब ये उड़ता तीर ही तो है कि तीन दिन बाद भी सियासी गलियारों में इनके पैदा किए भूचाल के आफ्टर शॉक कम नहीं हुए। शख्सियत पहचान गए न, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, हरदा।

यह भी पढ़ें: सरकार की सड़क से सदन तक घेराबंदी करेगी कांग्रेस

इधर कुआं तो उधर खाई

प्रमोशन में रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस पसोपेश में है। हाईकमान ने इस मसले पर जो स्टैंड लिया, उससे सूबाई क्षत्रप कसमसा रहे हैं। लाखों सरकारी मुलाजिम मोर्चा खोलकर बैठे हैं। हालांकि यहां से वहां तक, हर जगह कांग्रेस की हालत एक जैसी ही है लेकिन सूबे में फिर भी नेताओं को 2022 में कुछ उम्मीदें टिमटिमाती नजर आ रही हैं। दरअसल, सूबे का जनमत हर पांच साल में पाला बदल लेता है। अब तक चार असेंबली इलेक्शन के नतीजे इसके गवाह हैं। पिछली दफा 11 पर जा सिमटे थे तो आगे इससे नीचे तो नहीं ही जाएंगे। इलेक्शन में बस दो साल बाकी और इधर दिल्ली वालों के कारण लाखों सरकारी मुलाजिमों की नाराजगी। बड़ा वोट बैंक खफा हो जाए तो अंजाम क्या हो सकता है, यही सोच सूबाई कांग्रेसी कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। गर्म दूध की मानिंद, उगला जाए न निगला। 

यह भी पढ़ें: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सियासी पैंतरे पर भाजपा का पलटवार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.