उत्तराखंड में युवा इनोवेटर्स के लिये अब अलग फंड, पढ़िए पूरी खबर
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के नवनिर्मित उत्तराखंड अंतरिक्ष भवन का लोकार्पण किया।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के नवनिर्मित आमवाला स्थित उत्तराखंड अंतरिक्ष भवन का सोमवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोकार्पण किया। इसी के साथ उत्तराखंड राज्य जियोइन्फोर्मेटिक्स मीट-2020 का भी उन्होंने उद्घाटन किया। इस दौरान उत्तराखंड एटलस का भी विमोचन किया गया। वहीं, मुख्यमंत्री ने यूसैक के प्रशासनिक अधिकारी आरएस मेहता और जनसंपर्क अधिकारी सुधाकर भट्ट को उत्कृष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया। वहीं, इस दौरान सीएम ने कहा कि इनोवेटिव लोगों के लिए एक अलग फंड बनाया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने यूसैक को अब अपना भवन मिल गया है। इससे राज्य को बहुत लाभ होने वाला है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जल, जंगल, जमीन से जुड़े विषयों में स्पेस टेक्नोलॉजी की सहायता ले सकेगा। कहा कि स्पेस टेक्नोलॉजी राज्य के विकास एवं आपातकालीन परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सीएम ने कहा कि उत्तराखंड में देश की पांचवीं साइंस सिटी बनने जा रही है, जिसकी डीपीआर को स्वीकृति मिल गई है। शीघ्र ही इसका निर्माण शुरू होगा। उन्होंने कहा कि इनोवेटिव लोगों के लिए एक अलग फंड बनाया जाएगा। इससे उन लोगों को मदद मिलेगी, जो आर्थिक परिस्थितियों के कारण अपने नवोन्मेषी विधा को बीच में ही छोड़ देते हैं।
मुख्यमंत्री ने विक्रम साराभाई शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रदेशभर से नवोन्मेषी प्रतिभाओं को खोजने एवं विज्ञानी माहौल तैयार करने के लिए भी योजना बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे प्रदेश में नए आविष्कारों के प्रति माहौल बनेगा, जो छात्र छात्राओं और शोधार्थियों को जागरूक करने में सहायक होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार तेजी से ई-ऑफिस की दिशा में आगे बढ़ रही है। राज्य में ई-कैबिनेट शुरू हो चुकी है। अब गवर्नर ऑफिस और सीएम ऑफिस को शीघ्र ही ई-ऑफिस के रूप में विकसित किया जाएगा।
विशिष्ट अतिथि इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ. एएस किरन कुमार ने कहा कि आज भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिसे स्पेस टेक्नोलॉजी में महारथ हासिल रखते हैं। इसकी सहायता से सुपर साइक्लोन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय हम हजारों जानें बचाने में सफल रहे हैं। जियोइन्फोर्मेटिक्स की सहायता से सुदूर संवेदन एवं अंतरिक्ष संचार के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्यों का सृजन, प्रचार प्रसार, समन्वय, मार्गदर्शन व सहयोग प्राप्त किया जा सकेगा। उन्होंने उत्तराखंड के विकास एवं तकनीक के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध कराने की बात भी कही। कहा कि आप जितना विज्ञान का इस्तेमाल करेंगे उतना ही लोगों की जिंदगी सुविधाजनक होगी।
सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आरके सुधांशु ने कहा कि स्पेस टेक्नोलॉजी आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है। प्रदेश के परिपेक्ष्य में यह आपदा प्रबंधन, कृषि व दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है। यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। बताया कि यूसैक प्रदेश के सभी जिलों में एकत्रित किए जा रहे भूस्थानिक आंकड़ों के लिए प्रमुख जीआइएस हब के रूप में कार्य करेगा। एकत्रित आंकड़े प्रदेश के विभिन्न प्रशासनिक एवं नीति निर्माताओं को सहायता प्रदान करेंगे।
इस अवसर पर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत,विधायक धन सिंह नेगी, दिलीप रावत, मुकेश कोली, लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, साहित्य कला परिषद के उपाध्यक्ष घनानंद,यूकॉस्ट के महानिदेशालय डॉ. राजेंद्र डोभाल, मैती आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत,यूसर्क के निदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, श्रीदेव सुमन विवि के कुलपति डॉ. पीपी ध्यानी, ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. संजय जसोला, दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके कर्नाटक, डीआइटी यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. केके रैना, एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो. एएन पुरोहित समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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फसलों की बीमारियों का अध्ययन अब आसान
उत्तराखंड राज्य जियोइन्फोर्मेटिक्स मीट के तकनीकी सत्र में इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ. एएस किरण कुमार ने भारत की पिछले 4 दशकों अंतरिक्ष यात्रा पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि इसरो ने मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए तकनीकी को और अधिक विकसित किया है। साथ ही अबतक भारत के 175 से अधिक उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। उन्होंने बताया कि भारत ने हाल ही में कार्टोसेट-3 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया है जिससे 0.3 मीटर रेज्युलेशन का डाटा प्राप्त हो रहा है। जिसका उपयोग फसलों में होने वाली बीमारियों एवं उनमें लगने वाले कीटों का भी अध्ययन किया जा सकता है। आइआइआरएस देहरादून के निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान ने बताया कि हिमालय क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किस प्रकार किया जाए। उन्होंने गंगोत्री ग्लेशियर में हो रहे बदलावों पर प्रकाश डालते हुए संपूर्ण हिमालयी क्षेत्रों के ई-दर्शन के बारे में बताया।
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