उत्तराखंड में केवल कागजों में लागू है क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, पढ़िए पूरी खबर
स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से बनाया गया किया गया क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट अभी प्रदेश में केवल नाम के लिए ही लागू है। शासन व विभाग के लचर रवैये के कारण अभी तक अस्पतालों में इसका सख्ती से अनुपालन नहीं कराया जा सका है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से बनाया गया किया गया क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट अभी प्रदेश में केवल नाम के लिए ही लागू है। शासन व विभाग के लचर रवैये के कारण अभी तक अस्पतालों में इसका सख्ती से अनुपालन नहीं कराया जा सका है। इससे आमजन को इसका फायदा भी नहीं मिल पा रहा है। इसे लागू करने से पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) इसमें संशोधन चाहता है। इस मसले पर शासन और आइएमए के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन हल नहीं निकल पाया है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पारित किया था। स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से बनाए गए एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए भी बाध्यकारी बनाया गया। यह अलग बात है कि उत्तराखंड सरकार को इस एक्ट को लागू कराने में पांच साल लग गए। वर्ष 2015 में यह एक्ट लागू किया गया।
एक्ट लागू करने के बाद शुरुआती दौर में इसके तहत कुछ डॉक्टरों व क्लीनिकों के रजिस्ट्रेशन हुए, लेकिन फिर इसका विरोध शुरू हो गया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसके कुछ मानकों में संशोधन की मांग की। एसोसिएशन का कहना था कि 50 से कम बेड वाले अस्पतालों को इससे छूट दी जाए। इसके कारण पंजीकरण की रफ्तार थम सी गई। शासन स्तर पर आइएमए के साथ बातचीत के बाद बीच का रास्ता निकालने की तैयारी शुरू की गई। बावजूद इसके यह प्रक्रिया बहुत आगे नहीं बढ़ पाई। स्थिति यह है कि एक्ट को लागू कराने में स्वास्थ्य महकमा खुद को असहज पा रहा है। निजी अस्पतालों का इसमें निजी स्वार्थ तो नजर आता है, लेकिन विभागीय कार्यप्रणाली के चलते सरकारी अस्पतालों में भी इसे लागू करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
एक्ट में हैं सख्त प्रविधान
इस एक्ट का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें कई सख्त प्रविधान रखे गए हैं। निजी अस्पताल यदि मौजूदा एक्ट को अपनाते हैं तो कई मामलों में उनकी सीधी जिम्मेदारी तय हो जाएगी। एक्ट के प्रविधान ऐसे हैं, जिनसे निजी अस्पतालों, डाक्टरों व नर्सिंग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा, जबकि आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादा सुलभ व सस्ती हो जाएंगी। इसके तहत सभी अस्पतालों, क्लीनिक, नर्सिग होम व डॉक्टरों को पंजीकरण कराना जरूरी हो जाएगा। चिकित्सा उपचार संबंधी हर सेवा का शुल्क भी अस्पतालों की श्रेणीवार निर्धारित हो जाएगा। प्राइवेट अस्पतालों को अपने डॉक्टर व अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की योग्यता के प्रमाण भी उपलब्ध कराने होंगे। इन प्रविधानों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध जुर्माने व अन्य दंड के भी प्रविधान किए गए हैं।