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जाम का दर्द झेल रहे शहरवासियों की जेब भी इससे कराह रही

धरना-प्रदर्शन जुलूस रैली और शोभायात्राओं के कारण जाम का दर्द झेल रहे शहरवासियों की जेब भी इससे कराह रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 09:18 AM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 09:18 AM (IST)
जाम का दर्द झेल रहे शहरवासियों की जेब भी इससे कराह रही
जाम का दर्द झेल रहे शहरवासियों की जेब भी इससे कराह रही

देहरादून, सोबन सिंह गुसांई। धरना-प्रदर्शन, जुलूस, रैली और शोभायात्राओं के कारण जाम का दर्द झेल रहे शहरवासियों की जेब भी इससे कराह रही है। एक तो डीजल-पेट्रोल की कीमत बरसात में उफनाती नदियों के जलस्तर की तरह दिनोंदिन ऊपर चढ़ती जा रही है। उसपर जाम से बचने के लिए वाहन चालकों को कभी अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता है तो जाम में फंसने पर धीरे-धीरे वाहन चलाने से पेट्रोल-डीजल की खपत ज्यादा होती है। जिसका सीधा असर उनके घरेलू बजट पर पड़ता है। शुक्रवार को भी शहर में प्रदर्शन के कारण सहारनपुर चौक से दर्शन लाल चौक तक और कनक चौक पर जाम की स्थिति रही। सचिवालय वाली सड़क तो पूरी तरह बंद कर दी गई थे। ऐसे में सचिवालय, पुलिस मुख्यालय और आसपास के कार्यालयों तक जाने वाले लोगों को कई किलोमीटर घूमकर आना पड़ा। इसका समाधान तभी हो सकता है, जब शहर में धरना-प्रदर्शन और पुतला दहन जैसे आयोजनों पर रोक लगाई जाए। 

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पुलिस ने की पहल, जनप्रतिनिधि बढ़ाएं हाथ

शहर में जाम की समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल होती जा रही है। खासकर सहारनपुर चौक से घंटाघर तक और सर्वे चौक पर ऐसा कोई दिन नहीं होता, जब जाम न लगे। यह समस्या उस समय और बढ़ जाती है, जब शहर में धरने प्रदर्शन होते हैं। अब पुलिस ने शहरवासियों को इस परेशानी से कुछ हद तक निजात दिलाने के लिए सहारनपुर चौक से घंटाघर तक प्रदर्शन, रैली आदि पर रोक लगाने का मन बनाया है। राजनेताओं के साथ ही प्रदेश में सक्रिय सभी संगठनों के पदाधिकारी इस बात को भली-भांति समझते हैं कि उनके धरना-प्रदर्शन, जुलूस और रैली निकालने से आम आदमी को परेशानी झेलनी पड़ती है। इसके बावजूद कोई भी सकारात्मक कदम उठाने को तैयार नहीं दिख रहा है। जबकि ये सभी भी आम आदमी के बीच से ही हो आते हैं। इसलिए इन्हें भी शहर हित में आम लोगों की समस्या के समाधान के लिए आगे आना चाहिए।

धरनास्थल बदलने पर बढ़ सकती है रार

धरना-प्रदर्शन के लिए पहचाने जाने वाले दून के संगठनों के पैरों के नीचे की जमीन बहुत जल्द बदल सकती है। अब 'कर्मभूमि' पर संकट आ जाए तो भला कौन चुप बैठ सकता है। सो, अंदरखाने धरनास्थल की शिफ्टिंग का विरोध करने की तैयारी भी शुरू हो गई है। कर्मचारी संगठनों की नजर से देखें तो इसकी वाजिब वजह भी है। नए धरनास्थल ननूरखेड़ा की दूरी परेड ग्राउंड से करीब छह किलोमीटर है। परेड ग्राउंड में भीड़ जुटाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, जबकि ननूरखेड़ा में धरना देने के लिए लंबी योजना बनानी पड़ेगी। ऐसे में पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम के लिए धरनास्थल बदलना इसकी योजना बनाने जैसा आसान नहीं होने वाला। हालांकि, सरकार का आदेश है तो जिला प्रशासन भी पीछे नहीं हट सकता। धरनास्थल शिफ्ट होगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन, इस कवायद से लोगों की हवाइयां जरूर उड़ी हुई हैं।

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ट्रैफि‍क विभाग की कार्रवाई ठंडे बस्ते में

कुछ माह पहले शहर में यातायात नियमों का पालन कराने के नाम पर चेकिंग जोरों पर थी। जिसका असर भी हुआ। चंद दिन में ही हर कोई वाहन के कागजात, हेलमेट और यातायात नियमों के पालन को लेकर गंभीर हो गया। लेकिन, इधर यातायात पुलिस ने अभियान को ठंडे बस्ते में डाला और उधर नियमों का चीरहरण शुरू हो गया। अब गली-मोहल्ले के साथ मुख्य सड़कों पर भी बुलट के पटाखा साइलेंसर का शोर गूंज रहा है। कई बार चौराहों पर युवा पुलिस के सामने भी इसका प्रदर्शन करते हुए गुजर जाते हैं। स्कूल-कॉलेजों के आसपास रैश ड्राइविंग भी खूब हो रही है। बिना हेलमेट बाइक चलाना भी आम बात हो गई है। हालांकि, तीन दिन पहले डीआइजी ने रैश ड्राइविंग करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। उम्मीद है कि जल्द ही यातायात पुलिस की सुस्ती टूटेगी और डीआइजी के आदेश पर अमल शुरू होगा।

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