बाल यौन शोषण के मामलों में दोहरी चुनौती से जूझते हैं विवेचक
बाल यौन शोषण के मामलों में विवेचक को दोहरी चुनौती से गुजरना पड़ता है। साथ ही इस दौरान वो भी तनाव की स्थिति से गुजरते हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: बाल यौन शोषण के मामलों में विवेचक को भी तनाव के दौर से गुजरना पड़ा है। उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती पीड़ित की हिचक तोड़ना और उसे मुकदमे में आखिर तक जोड़े रखना होता है। ऐसे ही कुछ अनुभव साझा किए डालनवाला कोतवाली में तैनात दारोगा विनीता चौहान ने। वह बताती हैं कि विवेचना के दौरान जब पुलिस मामले की तह तक जाने की कोशिश में सवालों की झड़ी लगाती है और समाज की दकियानूसी बातें पीड़ित को भीतर से कमजोर कर देती हैं। कभी-कभार तो पीड़ित केस वापस लेने तक की सोचने लगता है। ऐसे समय में विवेचक के सामने साक्ष्य जुटाने के साथ-साथ पीड़ित का मनोबल बरकरार रखने की दोहरी चुनौती खड़ी हो जाती है।
बाल यौन शोषण के कई मामलों की विवेचना कर चुकीं डालनवाला विनीता चौहान बताती हैं कि इस तरह के केस में पीडि़त की उम्र बहुत कम होती है, उससे सच जानने में कई तरह की दिक्कत आती हैं। एक केस का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि लड़की नौ साल की थी। उसके साथ उसके चचेरे भाई ने दुष्कर्म किया। बच्ची इतनी मासूम थी कि जब उसे बयान के लिए बुलाया गया तो उसने कहा कि मैडम वहां चाकलेट मिलेगी क्या।
तब हमने उसकी मन स्थिति को समझने का प्रयास किया और सूझबूझ के साथ उसके बयान कराए। इसकी वीडियोग्राफी भी कराई गई। इस बीच उसकी मां को आरोपित के परिवार की ओर तंग किया जाने लगा। बेटी के साथ हुए हादसे की वजह से पहले से टूट चुकी मां काफी डर चुकी थी। उसने यहां तक कहा कि लगता है कि उसे केस वापस लेना पड़ेगा। क्योंकि इसकी वजह से समाज में बदनामी तो ही रही है, घर में भी ताने सुनने को मिल रहे हैं।
वह अलग-थलग पड़ने लगी है। वह बेटी को दर्द देने वाले को सजा दिलाए या फिर उसकी वजह आने वाली मुसीबतों का सामना करे। ऐसे समय में उसे न सिर्फ सहारा देने की जरूरत थी, बल्कि उसके मन से यह डर निकालने और कानून के प्रति विश्वास जगाने की जरूरत थी। लिहाजा, यौन शोषण के साथ केस के दूसरे पहलू को भी जांच में शामिल किया गया और उसे धमकी देने वाले आरोपित के पिता को गिरफ्तार भी किया गया।
सरकार ने बनाए अलग से कानून
अधिवक्ता जया ठाकुर बताती हैं कि भारतीय दंड संहिता 1860 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों से निपटने के लिए प्रावधान (धारा 376, 354) है। अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए स्पष्ट धारा का प्रावधान है। लेकिन बच्चों के साथ होने वाले किसी प्रकार के यौन शोषण या उत्पीड़न के लिए कोई विशेष वैधानिक प्रावधान न होने के चलते वर्ष 2012 में संसद ने यौन (लैंगिक) अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 के जरिये इस सामाजिक बुराई से बच्चों की रक्षा करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए विशेष कानून बनाया। इस अधिनियम से पहले, गोवा बाल अधिनियम 2003 के अन्तर्गत सुनवाई होती थी। नए अधिनियम में बच्चों के खिलाफ बेशर्मी या छेड़छाड़ के कृत्यों को अपराध की श्रेणी में लाया गया।
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