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सुन लेहु अरज हमार हे छठी मइया..

भले ही छठ बिहार और पूर्वाचल क्षेत्र का मूल पर्व है, मगर मंगलवार को दून में पूरा पूर्वाचल उमड़ पड़ा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 07:20 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 07:20 PM (IST)
सुन लेहु अरज हमार हे छठी मइया..
सुन लेहु अरज हमार हे छठी मइया..

जागरण संवाददाता, देहरादून : भले ही छठ बिहार और पूर्वाचल क्षेत्र का मूल पर्व है, मगर मंगलवार को द्रोणनगरी भी छठ के रंग में रंगी हुई दिखी। छठ व्रती महिलाओं ने डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य देकर और विधि-विधान से पूजन कर छठी मइया से अपनी मनोकामना मांगी। चारों ओर पहिले पहिल छठी मइया.., सुनि लेहु अरज हमार हे छठी मइया.., सेई ले चरण तोहार ऐ छठी मइया, कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति.. जैसे छठ पूजा के पारंपरिक गीत गूंजते रहे। हर घाट पर उत्सव और आस्था का माहौल दिखाई दिया। बुधवार को उगते सूरज को अ‌र्घ्य देकर व्रत का पारण होगा।

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दून में मंगलवार को जगह-जगह छठ पूजा का आयोजन किया गया। शहर का मुख्य आयोजन बिहारी महासभा की ओर से टपकेश्वर महादेव मंदिर परिसर में किया गया। जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु छठ पूजन के लिए उमड़े। पूजा स्थल को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। सुबह से ही घरों और घाट स्थलों पर अ‌र्घ्य की तैयारियां चल रही थीं। मौसमी फल और सब्जियों की खरीददारी को बाजार में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी। सूर्य भगवान को अ‌र्घ्य देने के लिए सूप में व्रतियों ने फल व सब्जियों को सजाया और पूरी, ठेकुआ के प्रसाद को टोकरी में रख छठ पूजा के लिए घाटों पर पहुंचे। 24 घंटे की व्रती महिलाओं ने शाम के समय तमसा नदी के पवित्र जल में खड़े होकर सूरज को अ‌र्घ्य देकर अपनी मन्नत मांगी। मालेदवता, रायपुर, प्रेमनगर, चंद्रबनी, रिस्पना, बलबीर रोड, नंदा की चौकी, ब्रह्मपुरी, दीपनगर, रायपुर आदि जगहों पर सूर्यदेव को अ‌र्घ्य दिया गया। घाट पर व्रतियों ने मिट्टी से बेदी बनाकर दीप जलाए। फिर सभी व्रती पानी में खड़े हो गए और सूर्यदेव अस्तांचल की ओर बढ़ने लगे। जैसे ही व्र्र्रतियों ने उन्हें अ‌र्घ्य दिया, वैसे ही श्रद्धालुओं ने छठ पूजा के पारंपरिक गीतों को गाना शुरू कर दिया। इसके बाद व्रती घर लौटकर बुधवार को सूर्योदय के अ‌र्घ्य की तैयारी में जुट गए। महान पर्वो में से एक है छठ पूजा

बिहारी महासभा के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने बताया कि दुनिया के लोग सिर्फ उगते हुए सूरज की पजा करते हैं। लेकिन ¨हदू संस्कृति में डूबते हुए सूर्य की भी पूजा होती है। जिसका उदाहरण छठ महापर्व है। इसका अर्थ है कि ¨हदू धर्म के लोग आने-जाने वालों को समान भाव से देखते हैं। क्ल मनटाउन छठ स्थल पर सेना ने किया सहयोग

क्ल मनटाउन में छठ पूजा स्थल मछली तालाब में छठ सेवा समिति की ओर से आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने पानी में खड़े होकर सूरज को अ‌र्घ्य दिया। व्यवस्थाओं को लेकर क्षेत्र की सेना का विशेष सहयोग रहा। हजारों की संख्या में स्थानीय लोग पूजन के लिए पहुंचे। इस दौरान समिति के संरक्षक महेश पांडे, अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद, मोहन जोशी, गोरखनाथ, शिव कुमार, वीरसेन कश्यप आदि मौजूद रहे। चरम पर दिखी आस्था

छठ पर्व में लोगों की अटूट आस्था देखने को मिली। कई व्रती पेट के बल लेटते हुए घाट तक पहुंचे। व्रती सुनील झा ने बताया कि छठ व्रत एक कठिन तपस्या है। हर एक व्रती में श्रद्धा का भाव होता है, भूख प्यास का नहीं। छठी मइया भक्तों की हर मुराद को पूरा करती हैं। छठ पर्व की है पौराणिक मान्यता

छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। इनमें एक यह है कि लंका पर विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन भगवान राम और सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुन: अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद लिया था। दूसरी कथा के अनुसार, सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। वह रोजाना घंटों पानी में खड़े होकर उदय और अस्त होते सूर्य भगवान को अ‌र्घ्य देते थे। इसलिए छठ में अ‌र्घ्य दिया जाता है।


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