वरिष्ठ साहित्यकार चारुचंद्र चंदोला का निधन, बेटी ने दी मुखाग्नि
वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार व कवि चारुचंद्र चंदोला का रविवार को लक्खीबाग स्थित श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया।
जागरण संवाददाता, देहरादून: वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार व कवि चारुचंद्र चंदोला का रविवार को लक्खीबाग स्थित श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया। छोटी बेटी साहित्या ने उन्हें मुखाग्नि दी। चारुचंद्र चंदोला का शनिवार रात दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में निधन हो गया था। वह मस्तिष्काघात के कारण एक सप्ताह से आइसीयू में भर्ती थे।
चारुचंद्र चंदोला अपने पीछे पत्नी राजेश्वरी, बड़ी बेटी शेफाली, छोटी बेटी साहित्या को रोता-बिलखता छोड़ गए हैं। वह पत्रकारिता व कविताओं के माध्यम से लगातार व्यवस्था पर प्रहार करते रहे। उनका जन्म 22 सितम्बर 1938 को म्यॉमार (बर्मा) में हुआ था। मूल रूप से वह पौड़ी के कपोलस्यूं पट्टी के थापली गांव के रहने वाले थे और पिछले पांच दशक से देहरादून के पटेल मार्ग स्थित घर में रह रहे थे। उनके अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में मीडिया कोऑर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत, मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट, संजय कोठियाल, पदमश्री लीलाधर जगूड़ी जेपी पंवार, अशोक वर्मा, पूर्व मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल, राजेश सकलानी, नंदकिशोर हटवाल, गोविंद प्रसाद बहुगुणा, रमाकात बेंजवाल, शशिभूषण बडोनी, गुरदीप खुराना, राजेंद्र गुप्ता, अरुण कुमार, दिनेश कुमार जोशी, पूर्व विधायक राजकुमार आदि मौजूद रहे। लेखनी में झलकता था पहाड़
चारुचंद्र चंदोला की लेखनी में पहाड़ हमेशा प्रमुखता में रहा। वह अपने कॉलम 'सर्ग दिदा' में पहाड़ के ज्वलंत मुद्दे उठाते रहे। वहीं, अपनी कविताओं के माध्यम से पहाड़ की सुंदरता का बखान करते रहे। उन्होंने कई सामाजिक व राजनीतिक व्यंग्य भी लिखे। एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के बीए के पाठ्यक्रम में भी उनकी कविताएं शामिल हैं। उन्हें पत्रकारिता व कविता में उल्लेखनीय योगदान के लिए उमेश डोभाल स्मृति सम्मान व आदि शकराचार्य पत्रकारिता सम्मान भी मिले। ¨हदी की आधुनिक कविताओं के अनेक कवियों को तराशने का काम उन्होंने किया। उनपर परंपरागत कविता लेखन के स्वरूप को बिगाड़ने के आरोप भी लगे, पर वह आलोचनाओं से विचलित नहीं हुए। साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में दिवंगत चारुचंद्र चंदोला के अभूतपूर्व योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। वह अपनी कविताओं में पहाड़ की सुंदरता का वर्णन बड़ी ही सौम्यता से करते थे। अपने लेखों में उन्होंने पहाड़ की भौगोलिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक परिस्थितियों को जीवंतता से उजागर किया। उनका जाना साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति है।
- त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री