उत्तराखंड में आंदोलित कर्मचारियों पर महामारी एक्ट का मुकदमा
बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली को लेकर आंदोलित जनरल ओबीसी कर्मचारियों पर महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। महामारी एक्ट के तहत यह प्रदेश का पहला मुकदमा है।
देहरादून, जेएनएन। बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली को लेकर आंदोलित जनरल ओबीसी कर्मचारियों पर महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। यह मुकदमा जिला क्रीड़ा अधिकारी की तहरीर और जिलाधिकारी के आदेश ओर डालनवाला कोतवाली में दर्ज हुआ है। महामारी एक्ट के तहत यह प्रदेश का पहला मुकदमा है। आंदोलित कर्मचारियों पर बीते 24 घंटे के भीतर तीन मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।
बता दें कि, परेड ग्राउंड स्थित खेल परिसर में बिना अनुमति धरना देने के मामले में डालनवाला कोतवाली पुलिस ने सोमवार को भी कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज किया था। इसके बाद भी मंगलवार को कर्मचारी सपरिवार उसी जगह एकत्रित हुए और धरने पर बैठ गए।
इस पर मंगलवार शाम की जिला क्रीड़ा अधिकारी की ओर से पुलिस को फिर तहरीर दी गई। इसके बाद डालनवाला पुलिस ने देर रात कर्मचारियों पर सरकारी कार्य मे बाधा समेत महामारी एक्ट की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया। बता दें कि सोमवार को भी आंदोलित कर्मचारी बिना अनुमति खेल परिसर में घुस गए थे, जिस पर सोमवार को भी मुकदमा दर्ज कराया गया था।
कोषागार के अधिकारी से मारपीट में भी मुकदमा
कर्मचारियों के खिलाफ मंगलवार को एक और मुकदमा डालनवाला कोतवाली में दर्ज हुआ। यह मुकदमा सहायक कोषाधिकारी की ओर से दर्ज कराया गया है। उनका आरोप है कि सोमवार को कर्मचारियों का एक हुजूम दफ्तर में आया और उनके साथ न केवल मारपीट की, बल्कि उन्हें बंधक भी बनाया। मामले में डालनवाला कोतवाली पुलिस ने अज्ञात कर्मचारियों के खिलाफ अभियोग दर्ज कर लिया है।
हड़ताल को सफल बनाने के लिए उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन की ओर से सचल दस्ते का गठन किया गया है। यह दस्ता हर रोज विभागों का दौरा कर यह देखता है कि कौन कर्मचारी काम कर रहा और कौन उनके साथ है।
इसी क्रम में सोमवार को सचल दस्ते ने साइबर ट्रेजरी में धावा बोला। सहायक कोषाधिकारी अरविंद कुमार सैनी का आरोप है कि सोमवार को कर्मचारियों ने उनके साथ मारपीट की और हड़ताल में काम करने के लिए अशोभनीय भाषा का भी प्रयोग किया गया। कर्मचारियों ने उन्हें काफी देर तक बंधक बनाए रखा। एसपी सिटी श्वेता चौबे ने बताया कि तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर विवेचना आरंभ कर दी गई है।
क्या है महामारी एक्ट
ये कानून आज से 123 साल पहले साल 1897 में बनाया गया था, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तब बॉम्बे अब मुम्बई में ब्यूबॉनिक प्लेग नामक महामारी फैली थी। जिस पर काबू पाने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने ये कानून बनाया। इसके तहत अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार दिए थे।
महामारी कानून की खास बातें
- ये कानून भारत के सबसे छोटे कानूनों में से एक है। इसमें सिर्फ चार सेक्शन बनाए गए हैं।
- पहले सेक्शन में कानून और अन्य पहलुओं को समझाया गया है।
- दूसरे सेक्शन में सभी विशेष अधिकारों का जिक्र किया गया है जो महामारी के समय में केंद्र व राज्य सरकारों को मिल जाते हैं।
- तीसरा सेक्शन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मिलने वाले दंड/जुर्माने का जिक्र करता है।
- चौथा और आखिरी सेक्शन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण देता है।
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छह माह की सजा और जुर्माना भी
महामारी कानून के सेक्शन 3 के तहत इसका जिक्र किया गया है। इसके अनुसार, कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने व न मानने पर दोषी को छह महीने तक की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।