दुष्कर्म मामले में सहपाठी छात्रा की कॉल रिकॉर्डिंग बनी अहम सबूत Dehradun News
दुष्कर्म मामले में पुसिल ने फोन को सबूत के तौर पर कब्जे में ले लिया था और चार्जशीट के साथ अदालत में फोन में रिकॉर्ड हुई बातचीत की सीडी भी दी।
देहरादून, जेएनएन। गर्भपात के बाद पीड़ित छात्रा की तबीयत बिगड़ने लगी तो उसकी छोटी बहन काफी घबरा गई। उसने पिता को फोन पर बताया कि दीदी काफी परेशान है। इस पर उसके पिता ने छात्रा की क्लासमेट से बात की। उसने बताया कि छात्रा की हालत काफी खराब है और उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया है। सहसपुर थाने के तत्कालीन एसओ नरेश राठौर ने उस फोन को सबूत के तौर पर कब्जे में ले लिया था और चार्जशीट के साथ अदालत में फोन में रिकॉर्ड हुई बातचीत की सीडी भी दी। जो दोषियों को सजा दिलाने में अहम साक्ष्य साबित हुआ।
सुनवाई के दौरान अदालत ने सहपाठी छात्रा की पीडि़ता के पिता से फोन पर हुई बातचीत को सुना। इसके बाद अदालत ने आदेश दिया कि सहपाठी छात्रा व पीड़िता के पिता के वायस सैंपल लेकर दोनों की आवाज का फोरेंसिक साइंस लैब से मिलान कराया जाए। वहां से मिलान हो जाने के बाद कोर्ट ने इसे अहम सबूत माना। छात्रा के गुनाहगारों को सजा दिलाने में पुलिस की ठोस विवेचना भी मुख्य कड़ी रही।
फैसले से चंद मिनट पहले बचाव पक्ष ने दिया प्रार्थना
विशेष न्यायाधीश पोक्सो की जज रमा पांडेय ने आरोपितों को दोषी करार देते हुए भोजनावकाश के बाद दंड पर फैसला देने को कहा। भोजनावकाश के बाद कोर्ट बैठी तो सरबजीत के अधिवक्ता जेडी जैन ने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर कहा कि उन्हें मामले में कुछ कहना है। अदालत ने कहा कि उनकी ओर से प्रार्थना पत्र देने में विलंब किया गया है। प्रार्थना पत्र निरस्त करते हुए अदालत ने फैसले का ऐलान कर दिया।
123 पेज में आया जजमेंट
अदालत ने 123 पेज में फैसला सुनाया। इसमें पूरे घटनाक्रम के साथ गवाहों के बयान और दोषियों की अलग-अलग भूमिका के साथ उन्हें दी गई सजा का जिक्र किया गया है।
स्कूल की रद हो गई थी मान्यता
घटना के बाद निरीक्षण में मिली खामियों के चलते जीआरडी बोर्डिंग स्कूल की मान्यता रद कर दी गई थी। यहां पढ़ रहे बच्चों को स्कूल की अन्य शाखाओं में स्थानांतरित कर दिया गया था।
समाज के प्रति बताया अपराध
अभियोजन पक्ष ने अदालत में दलील दी कि स्कूल में प्रबंधन की भूमिका अभिभावक और संरक्षक की होती है। ऐसे में छात्रा के साथ हुई घटना समाज के प्रति अपराध है, उन्हें सख्त सजा दी जाए। जिससे लोगों में बच्चों के प्रति अपराध करने के प्रति डर पैदा हो। वहीं, बचाव पक्ष ने नाबालिग किशोरों के मामले में उम्र का हवाला देकर नरमी बरतने की अपील की। लेकिन अदालत ने आया को सरकारी गवाह बनने के चलते बरी करते हुए सभी को अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाई।
एक किशोर घटना के दो माह बाद हो गया था बालिग
घटना के समय तीन आरोपित छात्र नाबालिग पाए गए थे। इनमें एक छात्र की उम्र उस समय 17 वर्ष 10 महीने थी। अदालत ने किशोरों के मामले में अलग से दिए आदेश में कहा कि सभी 21 साल की आयु तक राजकीय संप्रेक्षण गृह में रहेंगे, इसके बाद उन्हें कारागार भेजा जाएगा।
इलाज करने वाली डॉक्टर की भी हुई गवाही
छात्रा की तबीयत बिगडऩे के बाद उसे शहर के एक नर्सिंग होम ले जाया गया था। पुलिस ने इस नर्सिंग होम की डॉक्टर के भी बयान लिए और उसे गवाह बनाया। डॉक्टर के खिलाफ सीएमओ के निर्देश पर गठित कमेटी ने जांच भी की थी, लेकिन तब डॉक्टर ने कहा था कि उसे घटना नहीं बताई गई थी। उसने केवल छात्रा का उपचार किया था। इस पर कमेटी ने डॉक्टर को क्लीनचिट दे दी थी।
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ऐसे हुआ था घटना का पर्दाफाश
16 सितंबर 2018 को देहरादून की तत्कालीन एसएसपी निवेदिता कुकरेती को एक महिला का फोन आया। महिला ने बताया कि जीआरडी बोर्डिंग स्कूल की एक छात्रा के साथ दुष्कर्म हुआ है और उसका गर्भपात करा दिया गया है। उसी दिन शाम को सहसपुर थाने के तत्कालीन एसओ नरेश राठौर स्कूल पहुंचे। उन्होंने किसी तरह छात्रा की पहचान तो कर ली, लेकिन उसने घटना के संबंध में कुछ नहीं बताया। अगले दिन पुलिस ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को बुलाया और महिला दारोगा की मौजूदगी में पीडि़ता से पूछताछ की। पुलिस ने डरी-सहमी छात्रा को भरोसा दिलाया कि उसे कोई नुकसान पहुंचा पाएगा, तब उसने रोते हुए आपबीती बताई। मामले में 17 सितंबर 2018 को मुकदमा दर्ज करते हुए आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया।
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