Move to Jagran APP

कैग की रिपोर्ट ने बढ़ाई भाजपा सरकार की चिंता, इसमें कई खामियों को किया गया इंगित

कैग की रिपोर्ट प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए चिंता का सबब बन सकती है। राज्य की वित्तीय स्थिति पर आई इस रिपोर्ट में कई खामियों को इंगित किया है। अभी तक इस मामले में कांग्रेस को घेरती रही भाजपा की मुश्किलें यह रिपोर्ट बढ़ाती नजर आ रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 04:30 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 04:30 PM (IST)
कैग की रिपोर्ट ने बढ़ाई भाजपा सरकार की चिंता, इसमें कई खामियों को किया गया इंगित
कैग की रिपोर्ट प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए चिंता का सबब बन सकती है।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। कैग की रिपोर्ट प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए चिंता का सबब बन सकती है। राज्य की वित्तीय स्थिति पर आई इस रिपोर्ट में कई खामियों को इंगित किया गया है। अभी तक इस मामले में कांग्रेस को घेरती रही भाजपा की मुश्किलें यह रिपोर्ट बढ़ाती नजर आ रही है।

loksabha election banner

 2017 में सत्ता में आई प्रदेश की भाजपा सरकार को अब तक कैग रिपोर्ट से ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी है। इसकी वजह यह रहा कि बीते विधानसभा सत्रों में पेश हुई कैग रिपोर्ट में पिछली कांग्रेस सरकार ही निशाने पर रही है। पिछली सरकार के पांच साल के कार्यकाल में विभिन्न वर्षों में गड़बड़ियों को उजागर किया गया। राज्य के वित्तीय प्रबंधन को लेकर कैग की हालिया रिपोर्ट में मौजूदा सरकार में वित्तीय प्रबंधन की समीक्षा की गई। इसमें यह साफ किया गया है कि वित्तीय स्थिति को लेकर मौजूदा भाजपा सरकार भी पिछली कांग्रेस सरकार की तर्ज पर आगे बढ़ रही है।

रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि विधानसभा में पारित कराए जा रहे बजट से ज्यादा खर्च किया जा रहा है। आपत्ति इस बात को लेकर है कि ज्यादा खर्च किए जा रहे बजट के बारे में विधानसभा को बताया नहीं जा रहा है। विधानसभा की मंजूरी के बगैर बजट का उपयोग संवैधानिक व्यवस्था के उल्लंघन के दायरे में आता है। 2018-19 में पूंजीगत मद में 8464.98 करोड़ बजट खर्च करने के बारे में विधानसभा से मंजूरी ली जानी चाहिए थी। ऐसा नहीं हुआ। सत्तारूढ़ भाजपा इससे पहले कांग्रेस के शासनकाल में लचर वित्तीय प्रबंधन को निशाने पर लेती रही है, लेकिन आगे ऐसा करना शायद ही संभव हो पाए।

दरअसल, बजट खर्च की स्थिति को लेकर विधानसभा को नजरअंदाज करने का सिलसिला पुराना है। वर्ष 2005 से 2018 के बीच 27 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च तो हुई, लेकिन इसे लेकर अब तक सरकारों ने विधानसभा को बताने की जरूरत नहीं समझी। यही नहीं कर्ज की वसूली में भी सरकार की कमजोरी का उल्लेख रिपोर्ट ने किया है। वित्तीय प्रबंधन में ढिलाई का एक नमूना आकस्मिकता निधि से खर्च की जाने वाली धनराशि की प्रतिपूर्ति नहीं होना भी है। आकस्मिकता निधि के तहत बेहद जरूरी होने और अन्य विकल्प तुरंत उपलब्ध नहीं होने की दशा में ही किसी भी विभाग को यह धनराशि दी जाती है। धनराशि देने के साथ यह शर्त होती है कि संबंधित वित्तीय वर्ष के भीतर विभाग अपने बजट से उक्त धनराशि की प्रतिपूर्ति करेगा, लेकिन हकीकत में इसका उल्लंघन हो रहा है। कैग ने इस अनियमितता को भी सामने रखा है।

यह भी पढ़ें: सभी विधायकों के वेतन-भत्ते से होगी समान कटौती, विधानसभा में पारित हुआ विधेयक

पेंशन योजना पर सतर्क होने का मौका

कैग ने अपनी रिपोर्ट में नई पेंशन योजना में सरकार के अंशदान की कम भागीदारी का जिक्र किया है। अहम बात ये है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों की ओर से भी इस मुद्दे को उठाया जा रहा था। यह मुद्दा ज्यादा चर्चा में तब आया, जब कर्मचारियों की ओर से पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग के समर्थन में मुहिम तेज की गई। पेंशन योजना में कम अंशदान पर कैग ने चिंता जताई, साथ में यह भी अंदेशा जताया है कि इससे भविष्य में नई पेंशन योजना के  लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। कर्मचारियों की ओर से उठाए जा रहे इस मुद्दे की पुष्टि कैग ने की है। जाहिर है कि यह सरकार के लिए भी सतर्क होने का अवसर है। कर्मचारियों के संगठन इस मुद्दे को निशाना बनाने के संकेत देने लगे हैं।

यह भी पढ़ें: विधायक राजेश शुक्ला ने ऊधमसिंहनगर के तत्‍कालीन डीएम के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का दिया नोटिस


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.