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27194 करोड़ धनराशि खर्च की, विधानसभा को जानकारी नहीं; राज्य के वित्तीय प्रबंधन में गंभीर खामियां हुई उजागर

वर्ष 2005-06 से 2017-18 तक अवधि में राज्य के बजट से करीब 27194.15 करोड़ की धनराशि ज्यादा खर्च हुई है। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक ने 31 मार्च 2017 को समाप्त हुए वर्ष के वित्तीय लेखों के ऑडिट में राज्य के वित्तीय प्रबंधन में गंभीर खामियों को उजागर किया है।

By Edited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 11:41 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 09:10 PM (IST)
27194 करोड़ धनराशि खर्च की, विधानसभा को जानकारी नहीं; राज्य के वित्तीय प्रबंधन में गंभीर खामियां हुई उजागर
वर्ष 2018-19 के दौरान 48,037.49 करोड़ के कुल अनुदानों और विनियोगों के सापेक्ष 1358.35 करोड़ ज्यादा बजट खर्च किया गया।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। वर्ष 2005-06 से 2017-18 तक अवधि में राज्य के बजट से करीब 27194.15 करोड़ की धनराशि ज्यादा खर्च हुई है। इस धनराशि को सरकारों ने राज्य विधानमंडल से नियमित नहीं कराया है। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक ने 31 मार्च 2017 को समाप्त हुए वर्ष के वित्तीय लेखों के ऑडिट में राज्य के वित्तीय प्रबंधन में गंभीर खामियों को उजागर किया है। यह रिपोर्ट बुधवार को विधानसभा में पेश की गई।

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राज्य के बजट को विधानसभा से मंजूरी मिलने के बाद ही खर्च किया जाता है। इस प्रविधान के बावजूद बजट से ज्यादा धनराशि खर्च की गई, लेकिन इस धनराशि को विधानमंडल से नियमित नहीं कराया जा रहा है। वर्ष 2018-19 के दौरान 48,037.49 करोड़ के कुल अनुदानों और विनियोगों के सापेक्ष 1358.35 करोड़ ज्यादा बजट खर्च किया गया। पूंजीगत मद के एक विनियोग में 8464.98 करोड़ अधिक खर्च हुआ, लेकिन 31 अनुदानों व आठ विनियोगों में 7106.62 करोड़ की बचत हुई। बजट की अधिकता को नियमित कराने की संवैधानिक बाध्यता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वर्ष 2018-19 के दौरान आकस्मिकता निधि से ली गई 107.08 करोड़ की धनराशि की प्रतिपूर्ति 31 मार्च 2019 तक नहीं की गई। आकस्मिकता निधि की प्रतिपूर्ति नहीं होने को राज्य सरकार भी गंभीर मान चुकी है। बावजूद इसके यह प्रवृत्ति रुकने का नाम नहीं ले रही है। उपयोगिता प्रमाणपत्रों को लेकर भी विभागों की उदासीनता खत्म नहीं हो रही है। सीएजी रिपोर्ट में बताया गया कि विभागीय अधिकारियों ने मार्च, 2018 तक विशेष उद्देश्यों के लिए दिए गए 37.66 करोड़ के अनुदानों के 25 उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किए। इससे अनुदान के वित्तीय उपयोग को लेकर स्थिति संदेहास्पद बनी हुई है। इसीतरह खर्च और प्राप्तियों को सही तरह मुख्य शीर्षो और लघु शीर्षो में दर्ज नहीं किया गया। इससे वित्तीय पारदर्शिता प्रभावित हुई है।

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रिपोर्ट में सरकार पर वित्तीय लेखों में उचित ब्योरा उपलब्ध नहीं कराने का उल्लेख भी किया गया है। रिपोर्ट में 2014-15 से 2018-19 की अवधि के दौरान सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए 659.48 करोड़ की अग्रिम धनराशि दी। इसी अवधि में सरकार ने 168.05 करोड़ की राशि का पुनर्भुगतान भी किया। बावजूद इसके वसूली की राशि अग्रिम दी गई धनराशि के चार फीसद से प्रत्येक वर्ष घटते हुए 2018-19 में दो फीसद से कम रह गई। रिपोर्ट में ऋणों की वसूली को खराब करार दिया गया है। राज्य सरकार से कहा गया है कि वह इन ऋणों और अग्रिमों को अनुदान के रूप में मानने और उन्हें राजस्व खर्च के रूप में बुक करने पर विचार कर सकती है। रिपोर्ट में लोक ऋण, राजकोषीय घाटे पर भी टिप्पणियां की गई हैं।

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