गजब: लाल नहीं सफेद भी होता है बुरांस का फूल, पढ़ें...
सुर्ख बुरांस के बारे में आपने सुना अथवा देखा अवश्य होगा, लेकिन यह सुर्ख ही नहीं सफेद भी होता है। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान माना जाने वाला सफेद बुरांस छह माह बर्फ में दबे रहने के बाद गर्मियों मे बर्फ पिघलने पर खिलता है।
केदार दत्त, देहरादून। सुर्ख बुरांस के बारे में आपने सुना अथवा देखा अवश्य होगा, लेकिन यह सुर्ख ही नहीं सफेद भी होता है। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान माना जाने वाला सफेद बुरांस छह माह बर्फ में दबे रहने के बाद गर्मियों मे बर्फ पिघलने पर खिलता है। अपने इस खासियत के साथ ही यह औषधीय गुणों से भी लबरेज है। यही गुण इसके लिए खतरे की घंटी बन गए हैं। अनियोजित दोहन से यह दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में पहुंच रहा है। सरकार ने इसे अब दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण की कार्ययोजना में शामिल किया गया है।
राज्य के पर्वतीय इलाकों में करीब दो हजार फीट की ऊंचाई पर राज्य वृक्ष बुरांस (रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम) के पेड़ों पर खिले इसके सुर्ख फूल खैरमकदम करते नजर आते हैं। जुलाई तक बुरांस के फूलों से लकदक पेड़ मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ते हैं। लेकिन, कम लोग ही जानते हैं कि उत्तराखंड में सुर्ख ही नहीं सफेद बुरांस (रोडोडेंड्रॉन कैम्पेनुलेटम) भी पाया जाता है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आठ से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फीले इलाकों में उगने वाला बुरांस का यह फूल सफेद होने के कारण जिज्ञासा पैदा करता है। छह माह बर्फ की चादर ओढ़े रहने पर मार्च आखिर से जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है, तब सफेद बुरांस के तने बाहर निकलते हैं और इन पर खिलते हैं फूल। सामान्य तौर पर सफेद बुरांस के फूल आठ से दस दिन तक खिले रहते हैं। कई जगह देर से बर्फ पिघलने पर यह देर से भी खिलता है।
यहां खिलता है सफेद बुरांस
गढ़वाल मंडल में खलिया टॉप, छिपला केदार जैसे अत्यधिक बर्फीले क्षेत्रों के अलावा कुछ जगह छह-सात हजार फीट की ऊंचाई तक भी इसके पेड़ मौजूद हैं। स्थानीय भाषा में सफेद बुरांस को लोग चिमुल, रातपा जैसे नामों से जानते हैं।
औषधीय गुणों से लबरेज
जड़ी-बूटी विशेषज्ञ एवं राज्य औषधीय पादप बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ.आदित्य कुमार सफेद बुरांस की छाल, टहनी और फूलों को लोग औषधि के रूप में उपयोग में लाते हैं। खासकर बुखार अथवा ठंड लगने पर इनका उपयोग किया जाता है। यही नहीं, फूलों का जूस भी बनाया जाता है, जो उदर संबंधी रोगों में कारगर माना गया है। इस सबके चलते इसका अनियोजित विदोहन हो रहा है, जिस पर नियंत्रण की जरूरत है।
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