जलवायु परिवर्तन से औषधीय गुणों से भरपूर बुरांस के फूलों पर खतरा
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन से उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाले औषधीय गुणों से भरपूर बुरांस (रोडोडेंड्रॉन) के फूलों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की बॉटनी डिविजन की ओर से पूर्व में चमोली जिले के तुंगनाथ व चोपता क्षेत्र में किए गए अध्ययन में बुरांस के समय पूर्व खिलने का कारणों का पता चल पाया।
बुरांस पर अध्ययन करने वाले बॉटनी डिविजन के तत्कालीन प्रमुख डॉ. सुभाष नौटियाल के अनुसार फिनलॉजिकल इवेंट (पादप जीवन की विभिन्न घटनाएं) के तहत यह अध्ययन किया गया था। आमतौर पर जनवरी-फरवरी माह में बुरांस के फूल कलियों की स्थिति में रहते हैं और उस समय ठंड बेहद अधिक होती है। अधिक ठंड में कलियों पर मौसम की मार न पड़े, इसके लिए प्रकृति प्रदत्त सेपल्स (अंखुड़ियां) सुरक्षा घेरे के रूप में कलियों के बाहर से लिपटी रहती हैं।
यह तभी हटती हैं, जब तापमान 20-25 डिग्री तक पहुंच जाता है। इस तापमान में डीएनए कोशिकाओं को संकेत भेजता है और फ्लावरिंग (फूल बनने की प्रक्रिया) हार्मोंस एक्टिव हो जाते हैं। यदि 20-30 दिन पहले ही इतना तापमान पहुंच जाए तो डीएनए तुरंत संकेत भेज देता है। एक बार संकेत भेजने के बाद प्रक्रिया थमती नहीं है। जबकि इस अवधि में तापमान में भारी उतार-चढ़ाव आता रहता है।
उस समय फूल के पुंकेसर-स्त्रीकेसर बेहद मुलायम होते हैं और वे मरने लगते हैं। डॉ. नौटियाल के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन के चलते बुरांस के फूल इसी तरह समय पूर्व खिलते और मरते रहे तो एक समय ऐसा आएगा जब बुरांस के नए पौधों की संख्या भी घटने लगेगी और उनका अस्तित्व समाप्त होने लगेगा। बीते आठ साल में कई सीजन में बुरांस के समय पूर्व खिलने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम पर मिला प्रभाव
बुरांस की रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम प्रजाति ही आबादी के निकट व अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसी प्रजाति के बुरांस पर जलवायु परिवर्तन का अधिक असर देखने को मिला। इसके अलावा राज्य में बुरांस की तीन और प्रजातियां अलग-अलग ऊंचाई पर पाई जाती हैं।
उत्तराखंड में मिलने वाली प्रजातियां
-रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम, 5 से 8500 फीट
-रोडोडेंड्रॉन बारबेटम, 7 से 9000 फीट
-रोडोडेंड्रॉन कंपेनुलेटम, 10 से 11000 हजार फीट
-रोडोडेंड्रॉन लैपिडोटम 12 हजार फीट व अधिक
अर्जुन वृक्ष पर भी सामने आया असर
एफआरआइ की इकोलॉजी, क्लाइमेंट चेंज एवं इनफ्लुएंस डिविजन ने जलवायु परिवर्तन का असर जानने के लिए औषधीय गुणों वाले अर्जुन पेड़ पर भी अध्ययन किया। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ हुकुम सिंह के अनुसार अर्जुन के पेड़ को कृत्रम विधि से 2.5 डिग्री अधिक तापमान दिया गया था, तब इस प्रभाव यह निकलकर आया कि जो नई पत्तियां मार्च में बनती थीं, वह फरवरी में ही बनना शुरू हो गई।
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