बजट में झलका पलायन का दर्द और पहाड़ की चिंता
बजट प्रावधानों में उत्तराखंड के गांवों से निरंतर हो रहे पलायन की पीड़ा का दर्द भी झलका है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड के गांवों से निरंतर हो रहे पलायन की पीड़ा का दर्द भी बजट प्रावधानों में झलका है। इस कड़ी में गांवों में मूलभूत सुविधाओं पर फोकस किया गया है तो रोजगार के अवसर मुहैया कराने पर भी। रिवर्स माइग्रेशन को प्रोत्साहित करने को 175 करोड़ का प्रावधान किया गया है। यही नहीं, ग्रामीण आजीविका में सुधार के कदमों पर भी ध्यान केंद्रित करने की मंशा जताई गई है।
गांवों से निरंतर हो रहा पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है और ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट इसकी तस्दीक भी करती है। रिपोर्ट पर गौर करें तो राज्य में निर्जन हो चुके गांवों की संख्या अब 1702 पहुंच चुकी है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटे राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के गांवों से पलायन थामना सबसे बड़ी चुनौती है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही रोजगार के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव सरकार को दिया था। वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में पलायन के बहाने ही सही पहाड़ की चिंता की गई है।
ग्राम्य विकास एवं पंचायती राज को सशक्त करते हुए गांवों में आधारभूत संरचनात्मक विकास और ग्राम स्तर पर रोजगार सृजन की दिशा में जोर दिया गया है। गांवों में मांग आधारित रोजगार व स्थायी परिसंपत्तियों के सृजन को 282 करोड़ का प्रावधान किया गया है। गांव सड़क से जुड़ें, इसके लिए 900 करोड़ का प्रावधान है। मुख्य फोकस ग्रामीण आजीविका पर है।
इसमें स्वयं सहायता समूहों पर तो फोकस है ही। रिवर्स माइग्रेशन के जरिये गांव फिर से आबाद हों वहां रोजगार के अवसर भी मिलें, इसके लिए 175 करोड़ का बजट प्रावधानित है। लघु एवं मझोले उद्यमों को बढ़ावा देने के साथ ही न्याय पंचायत स्तर पर ग्रोथ सेंटर योजना को तेजी से अमल में लाने का इरादा जाहिर किया गया है। इसके अलावा कृषि, सिंचाई एवं पेयजल, पशुपालन, समेत मूलभूत सुविधाओं पर भी फोकस करने की बात कही गई है।
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