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BJP National President JP Nadda का लक्ष्य को साधने का मंत्र

राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस दौरे का त्वरित असर तो यह दिखा कि जिलों के प्रभारी मंत्रियों के जिला भ्रमण के कार्यक्रम बन गए हैं। सभी मंत्रियों को क्षेत्र में रात्रि प्रवास अनिवार्य रूप से करना होगा। 20 दिनों के भीतर पूरी रिपोर्ट राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंपी जाएगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 09 Dec 2020 09:17 AM (IST)Updated: Wed, 09 Dec 2020 09:18 AM (IST)
BJP National President JP Nadda का लक्ष्य को साधने का मंत्र
जेपी नड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। फाइल

देहरादून, कुशल कोठियाल। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों से चुनावी धार देने में लगा है। धार भी ऐसी कि कोई कसर कहीं रह न जाए। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ दिनों से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद पार्टी के छोटी-बड़ी इकाइयों को मथ रहे हैं। प्रदेश में सवा साल बाद 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होना है। सरकार के सामने पार्टी की पिछली चुनावी सफलता ही पहाड़ बनी खड़ी है। 70 सदस्यीय विधानसभा में 56 भाजपाई (भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन से एक सीट अभी रिक्त है) सदस्यों की उपस्थिति को दोहराना प्रदेश सरकार और संगठन के लिए बड़ी चुनौती है।

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जेपी नड्डा ने इस चुनौती को भांपा और समय रहते स्वीकारा भी। हरिद्वार से संतों का आशीर्वाद लेकर वह देहरादून में सुबह से शाम तक संगठन की सभी इकाइयों का नाप-जोख करते रहे। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्षों के दौरे पहले भी होते रहे हैं, लेकिन नड्डा का दौरा जिस बात को लेकर चर्चा में है, उसकी अहमियत भाजपा ही नहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता भी दबी जुबान स्वीकार कर रहे हैं। सामान्य तौर पर पार्टी के बड़े नेता पहली जमात के नेताओं तक ही संवाद कायम करते रहे हैं, लेकित जेपी नड्डा ने मंडल और बूथ स्तर के नेताओं के साथ भी पूरी शिद्दत के साथ मंच साझा किया। इस पहल से कार्यकर्ता उत्साहित हैं। कुछ तो इस बहाने अपनी ही पार्टी के प्रदेश स्तरीय नेताओं को भी आईना दिखा रहे हैं। राजनीति की इस व्यावहारिक गणित को समझने और उस पर काम करने की चर्चा कांग्रेसी कैंप में भी हो रही है।

नड्डा चार दिवसीय दौरे में यह संदेश देने में तो कामयाब रहे कि पार्टी की अंतिम पांत ही चुनावी कामयाबी का आधार है। इसे समय रहते प्रोत्साहित नहीं किया और इससे संवाद नहीं किया, तो संगठन कमजोर होगा। 70 सदस्यीय सदन में अगर 60 का आंकड़ा हासिल करने का लक्ष्य रखा है, तो बूथ और मंडल इकाइयों के महत्व को समझना होगा तथा सम्मान भी देना होगा। नड्डा का यह सबक वास्तव में सभी के लिए ग्रहणीय है। 

यहां तस्वीर का दूसरा रुख बताना भी जरूरी है कि जिलों के भ्रमण के दौरान वे मंत्री क्या कर लेंगे जो चार सालों से नौकरशाही के हावी होने की शिकायत करते रहे हैं। क्या पार्टी अध्यक्ष के इस दौरे के बाद जनसमस्याओं के समाधान में अधिकारी भी मंत्रियों के निर्देशों का अनुपालन करने लगेंगे, इसका उत्तर आने वाले दिनों में मिलेगा।

गुलदारों पर रेडियो कॉलर की मुहिम : उत्तराखंड की वन्यजीव विविधता भले ही बेजोड़ हो, लेकिन चर्चा के केंद्र में तो गुलदार ही रहते हैं। पिछले 20 वर्षो की तस्वीर और गुलदार के हमलों के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। इस वर्ष ही जनवरी से अक्टूबर तक गुलदार के हमलों में 50 से अधिक व्यक्तियों की जान चली गई थी, जबकि घायलों का आंकड़ा इससे चार गुना अधिक है। ऐसे में समझा जा सकता है कि गुलदार किस कदर यहां जनसामान्य के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं। साथ ही यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गुलदार इतने आक्रामक क्यों हो रहे हैं।

जनसामान्य के साथ ही गुलदारों की सुरक्षा के लिहाज से यह पता लगाना समय की मांग है। आखिरकार वन महकमे ने भी इसे महसूस किया और गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाकर उनके व्यवहार पर अध्ययन का निर्णय लिया। अब तक हरिद्वार में दो, टिहरी में एक और बागेश्वर जिले में एक गुलदार की रेडियो कॉलरिंग की गई है।

रेडियो कॉलर के जरिये इनकी गतिविधियों का अध्ययन किया जा रहा है। फिर इस अध्ययन रिपोर्ट के बाद गुलदार-मानव वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए कदम उठाए जाएंगे। राज्य में गुलदारों की सक्रियता मानव के लिए चुनौती बनती जा रही है। इन हालात में गुलदारों के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन और उसके अनुरूप मानव गतिविधियों को संचालित करना जरूरी हो गया है।

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]


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