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जैव संसाधनों पर लाभांश देने में कन्नी काट रहीं कंपनियां, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड में तमाम कंपनियां और संस्थाएं यहां के जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग तो कर रही हैं मगर लाभांश में ग्रामीणों को हिस्सेदारी देने में कन्नी काट रही हैं।

By Edited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 03:00 AM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2019 10:20 PM (IST)
जैव संसाधनों पर लाभांश देने में कन्नी काट रहीं कंपनियां, पढ़िए पूरी खबर
जैव संसाधनों पर लाभांश देने में कन्नी काट रहीं कंपनियां, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, केदार दत्त। जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड में तमाम कंपनियां और संस्थाएं यहां के जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग तो कर रही हैं, मगर लाभांश में ग्रामीणों को हिस्सेदारी देने में कन्नी काट रही हैं। राज्य में जैव संसाधनों का उपयोग करने वाली 1256 कंपनियां व संस्थाएं चिह्नित हैं, जिनमें से सिर्फ 80 ही यह हिस्सेदारी दे रही हैं। आनाकानी कर रही कंपनियों को उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड अब फिर से नोटिस जारी करने जा रहा है। बोर्ड के सदस्य सचिव एसएस रसायली के अनुसार यदि कंपनियां अपने रुख में बदलाव नहीं लाती हैं तो उनसे एक अपै्रल 2014 से अब तक की एकमुश्त राशि वसूलने के निर्देश जारी किए जा सकते हैं।

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जैव संसाधनों के संरक्षण के मद्देनजर केंद्र सरकार ने जैव विविधता संरक्षण अधिनियम-2002 लागू किया। 2014 में इसकी नई गाइडलाइन जारी की। जैव विविधता के मामले में धनी उत्तराखंड में भी वर्ष 2016 में राज्य का जैव विविधता अधिनियम तैयार हुआ, जिसे वर्ष 2017 में लागू किया गया। इसमें साफ है कि राज्य के जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाली कंपनियां व संस्थाएं अपने लाभांश में से एक से पांच फीसद तक की हिस्सेदारी स्थानीय ग्रामीणों के लिए देंगे। यह राशि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के जरिये ग्रामीणों तक पहुंचेगी, ताकि वे जैव संसाधनों का संरक्षण कर सकें।

इससे उम्मीद जगी कि अब जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाले व्यक्तियों, कंपनियों व संस्थाओं से लाभ में हिस्सेदारी सुनिश्चित होने से स्थानीय समुदाय को लाभ मिलेगा। इस कड़ी में ग्राम पंचायत स्तर पर जैव विविधता प्रबंध समितियों (बीएमसी) के गठन की कवायद शुरू की गई। साथ ही बोर्ड ने कंपनियों व संस्थाओं को लाभांश में से ग्रामीणों को हिस्सेदारी देने के क्रम में कवायद शुरू की।

बोर्ड के सदस्य सचिव एसएस रसायली बताते हैं कि प्रदेश में ऐसी 1256 कंपनियां, संस्थाएं चिह्नित की गई, जो यहां के जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग कर रही हैं। इन्हें लाभांश से ग्रामीणों को हिस्सेदारी देने के मद्देनजर नोटिस भेजे गए। इनमें से 650 ने जवाब दिया, जबकि 606 ने अभी तक कोई जवाब देने की जहमत नहीं उठाई है। 650 कंपनियों ने हिस्सेदारी पर सहमति तो जताई, मगर अभी तक सिर्फ 80 कंपनियां व संस्थाएं ही हिस्सेदारी जमा करा रही हैं।

उन्होंने बताया कि कंपनियों व संस्थाओं की इस हीलाहवाली को देखते हुए अब रिमांइडर नोटिस जारी करने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि जैव संसाधनों के उपयोग पर लाभांश में हिस्सेदारी एक अपै्रल 2014 से देनी अनिवार्य है। यदि कंपनियां रिमांइडर के बाद भी नियमित रूप से हिस्सेदारी जमा नहीं करती हैं तो उन्हें एकमुश्त जमा करानी होगी।

राष्ट्रीय फलक पर दिखेगी जैव विविधता संरक्षण की मुहिम

प्रदेशभर में जैव विविधता संरक्षण के लिए चल रही मुहिम अब राष्ट्रीय फलक पर नजर आएगी। राज्य की जैव विविधता संरक्षण की कार्ययोजना व रणनीति का मसौदा तैयार होने के बाद यह उम्मीद जगी है। 10159 करोड़ की कार्ययोजना में 380 एक्शन प्लान और 114 रणनीति शामिल की गई हैं। कार्ययोजना में 25 विभाग व बोर्ड, 28 अनुसंधान एवं शिक्षण संस्थान, 26 गैर सरकारी संगठन और तीन औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है। उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की ओर से शुक्रवार को वन मुख्यालय के मंथन सभागार में आयोजित कार्यशाला में इस मसौदे को विभागों व संस्थाओं के समक्ष रखा गया। साथ ही उनसे सुझाव भी लिए गए।

वर्तमान में जैव विविधता संरक्षण के लिए तमाम विभाग व संस्थाएं कार्य कर रहे हैं, लेकिन इन कार्यों की जानकारी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं हो पा रही थी। इसे देखते हुए जैव विविधता संरक्षण की मुहिम को तेज करने और इसमें सभी विभागों, बोर्ड और संस्थाओं की सक्रिय भागीदारी के मद्देनजर उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने 'द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूटÓ (टैरी) के जरिये राज्य की 10 वर्षीय जैव विविधता कार्ययोजना तैयार कराई है।

बोर्ड की ओर से शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में कार्ययोजना के सभी पहलुओं के बारे में संबंधित विभागों व संस्थाओं को विस्तार से जानकारी दी गई। बताया गया कि कार्ययोजना में वर्तमान में विभिन्न सरकारी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे कार्यों को इस प्रकार से सम्मिलित किया गया है कि समस्त संस्थाएं अपने नियमित कार्यों के साथ सरलता से लागू कर सकें। इस मौके पर विभागों व संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने कई सुझाव भी दिए, जिसे कार्ययोजना में शामिल किया जाएगा। बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. धनंजय मोहन की अध्यक्षता में हुई कार्यशाला का संचालन सदस्य सचिव एसएस रसायली ने किया। बोर्ड के सदस्य सचिव ने बताया कि कार्ययोजना के लागू होने के बाद राज्य में होने वाले जैव विविधता संरक्षण से संबंधित सभी कार्य राष्ट्रीय स्तर पर दिखेंगे। इन्हें राष्ट्रीय जैव विविधता बोर्ड की सातवीं रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।

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मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने को सामूहिक कार्य

जैव विविधता संरक्षण कार्ययोजना में वन, कृषि, उद्यान, सिंचाई, आवास विकास, पंचायतीराज, ग्राम्य विकास समेत अन्य विभागों के एक्शन प्लान में मानव- वन्यजीव संघर्ष थामने पर खास फोकस है। इसके लिए सभी महकमे व संस्थाएं मिलकर कार्य करेंगे।

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बीएमसी का गठन बड़ी चुनौती

जैव विविधता संरक्षण में ग्राम पंचायतों में जैव विविधता प्रबंध समितियों (बीएमसी) की भूमिका महत्वपूर्ण है। वर्तमान में 2700 ग्राम पंचायतों में बीएमसी का गठन नहीं हो पाया है, जो बड़ी चुनौती है। हालांकि, बोर्ड के सदस्य सचिव का कहना है कि पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद अगले साल जनवरी तक सभी ग्राम पंचायतों में बीएमसी का गठन कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि बीएमसी ही जैव संसाधनों के उपयोग की अनुमति कंपनियों व संस्थाओं को जारी करती हैं। जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाली कंपनियों, संस्थाओं से लाभांश की हिस्सेदारी भी बीएमसी को ही मिलती है।

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