दिव्य शक्तियों का अंगीकार ही है भागवत का सार
भागवत कथा हमारे अंदर के अज्ञान को समाप्त कर ज्ञान के चक्षुओं को खोलती है। कथा के माध्यम से मनुष्य स्वयं से जुड़ता है।
ऋषिकेश, [जेएनएन]: श्रीमद्भागवत कथा मर्मज्ञ गोपालानंद महाराज ने कहा कि भागवत कथा हमारे अंदर के अज्ञान को समाप्त कर ज्ञान के चक्षुओं को खोलती है। कथा के माध्यम से मनुष्य स्वयं से जुड़ता है साथ ही कथा हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर की समिपता का एहसास कराती है। उन्होंने कहा कि अज्ञान को परमात्मा की शरण में त्याग कर यहां विद्यमान दिव्य शक्तियों को अंगीकार करना ही भागवत कथा का है सार है।
परमार्थ निकेतन के सत्संग हॉल में शुक्रवार को सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का शुभारंभ किया गया। कथा के शुभारंभ अवसर पर परमार्थ निकेतन के महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद सरस्वती महाराज ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि भगवत कथा मन की व्यथा को हरती है, कथा के श्रवण मात्र से जीवन में अमोघ शक्तियां प्राप्त होती है। इन शक्तिओं को समाज कल्याण के लिए भी लगाएं।
श्रेष्ठ जीव पहले जन कल्याण की बात करते हैं फिर स्व कल्याण की। उन्होंने कहा कि हमारे देश में समाज में आज भी लोगों को सेवा, सहायता और सहयोग की आवश्यकता है अत: आगे बढ़कर उनकी सहायता करें यही तो सच्ची साधना है तथा जीवन का सार भी यही है।
श्रद्धालुओं को भेजे अपने संदेश में स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भारत ऋषियों की भूमि है, दुनिया के कोने-कोने से साधक यहां शांति की तलाश में आते है। भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन ने सदियों से शांति और सदाचार को आत्मसात करने की शिक्षा एवं संस्कार प्रदान किए हैं। वर्तमान समय में भी कथाओं के आयोजन का उद्देश्य आपसी प्रेम, सद्भाव और शांति के साथ जीवन जीने का संदेश प्रेषित करना है।
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