उत्तराखंड: प्रतिबंधित प्लास्टिक कोरोनाकाल में बना जीवन रक्षक, पढ़िए पूरी खबर
प्रदेश में जिस प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया कोरोनाकाल में वही सबसे बड़ा जीवनरक्षक बना। पीपीई किट से लेकर संक्रमितों के सामान को रखने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा। उत्तराखंड में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक की तैयारी लंबे समय से चल रही है।
विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश में जिस प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया, कोरोनाकाल में वही सबसे बड़ा जीवनरक्षक बना। पीपीई किट से लेकर संक्रमितों के सामान को रखने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल, उत्तराखंड में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक की तैयारी लंबे समय से चल रही है। इसके खतरे को देखते हुए इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया।
शुरुआत में प्रदेश सरकार ने पांच शहरों को वर्ष 2020 तक सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का लक्ष्य रखा। कहा गया कि शेष जिलों में इसे बाद में लागू किया जाएगा। इस कड़ी में प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के लिए सख्ती भी की गई। प्रदेश में कोरोना की दस्तक के बाद प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ गया। जिस प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था, वही बचाव का सबसे बड़ा माध्यम बन गया। ऐसे में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध केवल नाम के लिए है।
जनगणना में अटके राजस्व ग्राम
प्रदेश की प्रशासनिक इकाइयों के ढांचे को दुरुस्त करने के लिए नए राजस्व ग्राम बनाने की योजना तैयार की गई। उम्मीद जताई गई कि नए राजस्व ग्राम बनने से इन्हें केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न विकास योजनाओं का लाभ मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्र में विकास होगा और स्थानीय निवासी भी आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। इस योजना को 2015 में लागू भी किया गया। सरकारी मशीनरी की सुस्त चाल के कारण बीते छह सालों में कुल 39 राजस्व ग्राम ही बने। 2018 में 24 नए राजस्व ग्राम बनाने का निर्णय हुआ। इसके लिए प्रदेश सरकार ने जिलों व तहसीलों में समितियों का गठन किया। समितियों को कहा गया कि सभी क्षेत्रों से प्रस्ताव मांगे जाएं। इस बीच केंद्र ने एक पत्र भेजकर साफ किया कि अब 2021 की जनगणना के बाद ही नए ग्रामों का गठन किया जाएगा। इससे पूरी कवायद ही ठंडे बस्ते में चली गई।
जेलों में बदलेंगे पुराने कानून
जेलों में कैदियों की दुर्दशा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को वर्षों पुराने कानूनों को बदलने के निर्देश दिए। प्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाए। पुराने कानूनों का अध्ययन करने के लिए बाकायदा अपर सचिव गृह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसमें अपर सचिव न्याय व महानिरीक्षक जेल को शामिल किया। उम्मीद जताई गई कि समिति वर्षों पुराने कानूनों के स्थान पर माडल जेल मैनुअल को जगह देगी। उम्मीद जगी कि इससे जेलों में निर्धारित क्षमता से अधिक बंद किए गए कैदियों की दुर्दशा कुछ सुधरेगी और जेलों के जरिये चल रही आपराधिक गतिविधियों पर भी नकेल कसी जा सकेगी। समिति की यह संस्तुति कैबिनेट के समक्ष रखी जानी थी। समिति ने यह रिपोर्ट तो तैयार कर दी है, लेकिन अभी तक इसका अध्ययन ही चल रहा है। ऐसे में इसके अस्तित्व में आने में और समय लगेगा।
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एकीकरण के इंतजार में महकमे
केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद के बटवारे में आ रही दिक्कत को देखते हुए प्रदेश सरकार ने विभागों के एकीकरण की राह पर कदम बढ़ाए। दावा किया गया कि इससे न केवल विभागीय कार्यों में मितव्ययता आएगी, बल्कि प्रशासन भी बेहतर होगा। केंद्रीय योजनाओं के तहत मिलनी वाली आर्थिक सहायता का दुरुपयोग नहीं होगा और यह सही तरीके से खर्च की जा सकेगी। तीन साल पहले सरकार ने कृषि-उद्यान और खेल एवं युवा कल्याण विभाग के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए। इसके लिए कैबिनेट से अनुमोदन भी प्राप्त कर लिया गया। यहां तक कि अधिकारियों को जिम्मेदारी भी बांटने की तैयारी कर ली गई। इस पर विभाग में विरोध की आवाज उठने लगी। नफा नुकसान बताया गया। नतीजतन महकमों का एकीकरण नहीं हो पाया है। अब स्थिति यह है कि केंद्रीय योजनाओं के तहत मिलने वाली आर्थिक सहायता को खर्च करने में खासी दिक्कतें महसूस हो रही हैं।
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