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वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बना : उनियाल

काबीना मंत्री सुबोध उनियाल ने बंकिम चंद्र चटर्जी को जन्मदिन पर याद करते हुए कहा कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बना।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 07:38 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 07:38 PM (IST)
वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बना : उनियाल
वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बना : उनियाल

जागरण संवाददाता, देहरादून : काबीना मंत्री सुबोध उनियाल ने बंकिम चंद्र चटर्जी को जन्मदिन पर याद करते हुए कहा कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बना। आजादी के दीवाने वंदे मातरम गाते हुए निकल पड़ते थे और अपनी जान पर खेलने को तैयार रहते थे। यह बात उन्होंने रविवार को भारत विकास परिषद की सभी शाखाओं की ओर से आयोजित सामूहिक वंदे मातरम गायन कार्यक्रम में बतौर मुख्यअतिथि कही।

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श्रीगुरु राम राय मेडिकल कालेज के सभागार में भारत विकास परिषद की ओर से आजादी काअमृत महोत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रम में काबीना मंत्री ने बंकिम चंद्र चटर्जी को श्रदांजलि अर्पित की। उन्होंने युवाओं को देश की रक्षा एवं प्रबुद्धता को बचाने का संदेश दिया। विशिष्ट अतिथि महापौर सुनील उनियाल गामा ने भविष्य में इस कार्यक्रम के लिए पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। राज्यसभा सदस्य नरेश बंसल ने भारत विकास परिषद के प्रयास की प्रंशसा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील खेड़ा ने की। इस दौरान देहरादून के प्रसिद्ध बैंड ने देशभक्ति के गीतों से सभागार को देश प्रेम से भर दिया। कार्यक्रम के संयोजक एसएस कोठियाल ने भारत विकास परिषद के विषय एवं सेवा और संस्कार के प्रकल्पों की जानकारी दी। डा. मुकेश गोयल कार्यक्रम का संचालन किया। 'आनंदमठ' ने जगाई अलख: कुलपति

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दून विवि की कुलपति डा. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी बांग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि और पत्रकार थे। राष्ट्रगीत वंदेमातरम उनकी ही रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्त्रोत बन गया था। भारत के इस महान सपूत का जन्म 26 जून 1838 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठल पाड़ा गांव में हुआ था। आनंदमठ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास था, जो 1882 में प्रकाशित हुआ, जिससे प्रसिद्ध गीत वंदे मातरम लिया गया है। यह पुस्तक हिदू और मुसलमानों के बीच एकता का आह्वान करती है।


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