बांग्लादेश सीमा पर तस्करों से गठजोड़ में हुआ था बर्खास्त
खुद को डीआइजी बताकर गैंग के सदस्यों पर रौब गालिब करने वाला वीरेंद्र अपराध की दुनिया में कदम रखने से पहले से ही बेहद शातिर दिमाग का था। सीमा सुरक्षा बल की नौकरी के दौरान उसने जो कुछ सीखा उसके बलबूते उसने न सिर्फ अपना गैंग खड़ा किया बल्कि कई बड़ी वारदातों को अंजाम देने के बाद भी पुलिस की नजरों से बचने में कामयाब भी रहा।
जागरण संवाददाता, देहरादून:
खुद को डीआइजी बताकर गैंग के सदस्यों पर रौब गालिब करने वाला वीरेंद्र अपराध की दुनिया में कदम रखने से पहले से ही बेहद शातिर दिमाग का था। सीमा सुरक्षा बल की नौकरी के दौरान उसने जो कुछ सीखा, उसके बलबूते उसने न सिर्फ अपना गैंग खड़ा किया, बल्कि कई बड़ी वारदातों को अंजाम देने के बाद भी पुलिस की नजरों से बचने में कामयाब भी रहा। मगर उसकी सारी पैंतरेबाजी देहरादून में आकर ऐसी ठिठकी कि झूठ और फरेब की बुनियाद पर खड़ी 'सल्तनत' ढहने में देर नहीं लगी।
वीरेंद्र ठाकुर मूलरूप से जयपुर का रहने वाला है, लेकिन उसका परिवार विगत कई वर्षो से दिल्ली में ही बसा हुआ है। ईश्वरन डकैती कांड की तफ्तीश करते हुए जब पुलिस अदनान तक पहुंची और उससे सख्ती से पूछताछ की तो उसने मुख्य सरगना डीआइजी का नाम दिया। पुलिस चौंकी कि यह डीआइजी कौन है, तब पता चला कि गिरोह के मास्टरमाइंड वीरेंद्र को सभी इसी नाम से बुलाते हैं। इसकी तह तक जाने पर पता चला कि वीरेंद्र सीमा सुरक्षा बल से डिप्टी कमांडेंट के पद से बर्खास्त है। पुलिस ने सीमा सुरक्षा के उस यूनिट के अधिकारियों से संपर्क साधा तो पता चला कि नौकरी के समय से ही वीरेंद्र की गतिविधियां संदिग्ध रही हैं। साल 2000 में उसकी तैनाती बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा पर थी। इस दौरान वह सीमा से होने वाली तस्करी में लिप्त रहा। वीरेंद्र के बारे में आ रही सूचनाओं पर बीएसएफ के अधिकारियों को पहले तो यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब एक मामले में तस्कर पकड़ा गया और उसके बयानों में वीरेंद्र का नाम सामने आया तो सबकुछ शीशे की तरह साफ हो गया। कड़ी जांच के बाद वीरेंद्र को सजा तो नहीं दी गई, लेकिन उसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्त देकर बल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस कार्रवाई को बर्खास्तगी के ही बराबर माना जाता है। इसके बाद वीरेंद्र दिल्ली आ गया और अपने शातिर दिमाग का इस्तेमाल की पूंजीपति बनने का ख्वाब देखने लगा। नौकरी चले जाने के बाद उसकी शानो-शौकत में कोई कमी नहीं आई। माना जा रहा है कि वीरेंद्र ने उसी समय अपराध जगत में कदम रख दिया था, लेकिन कभी पुलिस के हत्थे न चढ़ने के कारण उसका दुस्साहस बढ़ता ही गया। इस दौरान लोगों को गुमराह करने के लिए कभी खुद को प्रापर्टी डीलर, बिजनेसमैन बताता, ताकि उसके झूठ-फरेब की दुनिया के सच से लोग अंजान रहें और वह अपना काम आसानी से करता रहे।
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कई बार टूटा-बिखरा गिरोह
अदनान और हैदर वीरेंद्र के सबसे पुराने राजदार है। पुलिस की मानें तो दोनों उससे वर्ष 2015 से जुड़े हैं। लेकिन सूत्रों की मानें तो इससे पहले भी वीरेंद्र का गैंग था, जिसके जरिए उसने कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया। इस आशंका को बल इसलिए मिला कि 2015 में वीरेंद्र ने दिल्ली में एक साथ दो फ्लैट खरीदे थे। ऐसे में माना जा रहा है कि वीरेंद्र ने कई बार गैंग बनाए और वह कई बार बिखरा। उसकी एक और खासियत थी, वह नौजवानों से मिलने के दौरान उसमें अपराध जगत में उतरने और उसमें साथ निभाने की संभावनाएं तलाशता। इसी कोशिश के दौरान उसकी मुलाकात हैदर से हुई। हैदर उसे इतना भाया कि उसे अपने घर में परिवार के सदस्य की तरह रख लिया।