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उत्तराखंड में जन्म लेने वाले शिशुओं को मिलेगी आधुनिक उपचार सुविधा

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं के उपचार की आधुनिक सुविधा मिल सकेगी। चाइल्ड लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम अपग्रेड करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने तैयारियां की हैं।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 09:10 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 08:27 PM (IST)
उत्तराखंड में जन्म लेने वाले शिशुओं को मिलेगी आधुनिक उपचार सुविधा
उत्तराखंड में जन्म लेने वाले शिशुओं को मिलेगी आधुनिक उपचार सुविधा

देहरादून, जेएनएन। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं के उपचार की आधुनिक सुविधा मिल सकेगी। शिशु मृत्यु दर के बढ़ते आंकड़ों में सुधार करने एवं चाइल्ड लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम अपग्रेड करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने तैयारियां की हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत छह न्यूबॉर्न स्टेब्लाइच्ड यूनिट (एनबीएसयू) को सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में उच्चीकृत किया जा रहा है। 

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स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के तमाम दावों के बावजूद प्रदेश में शिशु मृत्युदर के आंकड़े में कमी नहीं आ रही है। समय से पहले जन्म लेने वाले एवं प्रसव उपरांत शिशुओं की तबीयत खराब होने पर तत्काल लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है और ऐसा होने पर शिशुओं को अन्यत्र रेफर किया जाता है। इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास करता रहा है। 

इसके बावजूद परिणाम नहीं मिल पाए हैं। ऐसे में अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सुविधाओं को अपग्रेड किया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश में पांच एसएनसीयू, जबकि 29 एनबीएसयू हैं। ऊधमसिंहनगर के एनबीएसयू को अपग्रेड कर दिया गया है। इसके अलावा रुड़की, गोपेश्वर, विकासनगर, ऋषिकेश व कोटद्वार में एनबीएसयू उच्चीकृत किए जा रहे हैं। बता दें, एसएनसीयू में एनबीएसयू की अपेक्षा अधिक सुविधाएं होती हैं। एसएनसीयू शुरू होने पर चिकित्सा स्टाफ में भी भी बढ़ोतरी होगी। 

कंगारू यूनिट से मिलेगी नवजातों को जिंदगी

प्री-मेच्योर और कम वजन के बच्चों को मौत के मुंह से बचाने के लिए अब कंगारू केयर की मदद ली जाएगी। प्रदेश में जहां भी सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) हैं, वहां इसके लिए अलग से वार्ड तैयार किया जाएगा। शुरुआत के तौर पर हरिद्वार व अल्मोड़ा में कंगारू केयर यूनिट स्थापित की गई हैं।

दरअसल, कंगारू मदर केयर शिशु के लिए संजीवनी है। कंगारू की तरह अपने बच्चे को अपने से लगाकर रखने की वजह से ही इसे कंगारू केयर कहा जाता है। इस विधि में समय से पहले हुए व कम वजन के शिशु को प्रतिदिन कुछ घंटों तक मां आपने सीने से लगाकर रखती है। 

विशेषज्ञों का मानना है कि त्वचा के संपर्क से शिशु के विकास में सहायता मिलती है, बच्चे का वजन बढ़ता है और उसे सांस लेने में आसानी होती है। यह तकनीक वहां बेहद कारगर साबित हुई है, जहां इनक्यूबेटर आदि की सुविधा मौजूद नहीं है। इसी के तहत प्रसूताओं के लिए विशेष केएमसी (कंगारू मदर केयर) बैग व चेयर का इंतजाम भी किया जा रहा है। चेयर पर लेटकर नवजात को स्तनपान कराने में मां को काफी सुविधा होगी। 

फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर पर फोकस

स्वास्थ्य विभाग अब सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) के तिलिस्म को भी तोडऩे में जुटा है। इसके लिए फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर यानि परिवार की सहभागिता के साथ देखभाल पर फोकस किया जा रहा है। इसका प्रमुख ध्येय स्वास्थ्य कर्मियों व परिजनों के बीच तालमेल है। जिसके तहत परिजनों को भी यह अनुमति रहेगी कि वह वार्ड में जाकर बच्चे की देखभाल में सहयोग करें।

दरअसल, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया है कि यदि माता-पिता बीमार नवजात शिशुओं को सहायक देखभाल प्रदान करने के लिए शिशुओं के अस्पताल में रहने के दौरान प्रशिक्षित होते हैं, तो यह न केवल डिस्चार्ज के बाद शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार में मदद करता है, बल्कि मानसिक-सामाजिक और विकासात्मक जरूरतों को भी पूरा करता है। इसके तहत पौड़ी,टिहरी,देहरादून व हरिद्वार में एसएनसीयू में तैनात स्टाफ को प्रशिक्षण दिया गया है। 

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. रविंद्र थपलियाल के अनुसार, मां का स्पर्श बच्चों के लिए जीवनदायी होता है। कंगारू केयर की अवधारणा इसी पर आधारित है।  इसके अलावा फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर पर भी खास फोकस किया जा रहा है। 

स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास को रोडमैप

किसी भी प्रदेश की तरक्की का ग्राफ इस बात पर निर्भर करता है कि उसके लोग कितने सेहतमंद हैं। पर स्वास्थ्य सूचकांक की कसौटी पर प्रदेश में स्थिति चिंताजनक है। छोटे-छोटे कई प्रयास जरूर किए गए, पर अब भी कई चुनौतियां मुंह बाहे खड़ी हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने इसे लेकर कमर कस ली है।

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. रविंद्र थपलियाल ने महानिदेशालय में अधिकारियों की बैठक ली। उन्होंने बताया कि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के समयबद्ध विकास के लिए 2020 तक का रोडमैप तैयार कर लिया गया है। 

इसके तहत आठ प्रमुख योजनाओं के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। जिसमें मातृ मृत्यु दर 100/लाख, शिशु मृत्यु दर 30/हजार, 05 वर्ष से कम आयु के बच्चों में शिशु मृत्यु दर 36/हजार, अस्पताल में 90 प्रतिशत प्रसव, 13 जनपदों में ट्रॉमा सेंटर, ब्लड बैंक, आइसीयू की सुविधा, राज्य के समस्त परिवारों को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ। और राज्य के प्रत्येक गांव/तोक के 10 किमी दायरे में स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता और शत-प्रतिशत टीकाकरण शामिल है। 

उन्होंने इसकी प्रगति की समीक्षा की व अधिकारियों को जनपदवार रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा है। स्वास्थ्य महानिदेशक ने कहा कि उक्त आठ बिंदुओं की नियमित समीक्षा की जा रही है। अधिकारियों से उनके सुझाव भी उन्होंने लिए। इस दौरान सभी निदेशक, अपर निदेशक व सहायक निदेशक मौजूद रहे।

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