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बंटवारे के बाद पाकिस्तान से दून आया यह परिवार, नदी से पत्थर बीनकर चलाई आजीविका; कड़े परिश्रम से बने पुरुषार्थी

Azadi Ka Amrit Mahotsav वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद एक परिवार पाकिस्तान के बन्नू जिले से देहरादून आ गया। इस परिवार ने अपनी कड़ी मेहनत से अभूतपूर्व सफलता हासिल की। आइए जानते हैं इस परिवार की सफलता की कहानी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 05:06 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 05:06 PM (IST)
बंटवारे के बाद पाकिस्तान से दून आया यह परिवार, नदी से पत्थर बीनकर चलाई आजीविका; कड़े परिश्रम से बने पुरुषार्थी
Azadi Ka Amrit Mahotsav: देहरादून के पटेलनगर इंडस्ट्रीयल क्षेत्र में स्थित भाटिया परिवार की अल्फा पैकेजिंग इंडस्ट्री में कामगार।

अशोक केडियाल, देहरादून। बंटवारे के बाद लाखों लोगों को अपने घरों से दूर जाकर अपनी नई दुनिया बसानी पड़ी थी। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है, तो हमें उन शरणार्थियों को भी याद रखना चाहिए, जिन्होंने कठिन और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने हिस्से का आसमान छुआ।

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बंटवारे (Partition) के बाद पाकिस्तान (Pakistan) के बन्नू जिले से देहरादून (Dehradun) आए नंदलाल भाटिया के परिवार ने भी अपनी कड़ी मेहनत और जीवटता से अभूतपूर्व सफलता हासिल की। कभी नदी से पत्थर बीनकर आजीविका चलाने वाला यह परिवार आज हीरे-सा चमक रहा है।

पाकिस्तान के बन्नू जिले से पहुंचे देहरादून

दून के प्रेमनगर स्थित भाटिया मिष्ठान भंडार की नींव रखने वाले नंदलाल भाटिया के पोते राकेश भाटिया बताते हैं, हमारा परिवार पाकिस्तान के बन्नू जिले में रहता था। विभाजन (Partition) के बाद दंगे शुरू हुए तो कई परिचित पलायन कर भारत आ गए।

उनमें से कुछ ने देहरादून में प्रेमनगर स्थित शरणार्थी शिविरों (Refugee Camp) में शरण ली। पाकिस्तान में हिंदू परिवारों पर हो रहे अत्याचार देख 27 अगस्त 1947 को दादा जी ने भी पाकिस्तान छोड़ने का निर्णय लिया और रावलपिंडी एक्सप्रेस से भारत के लिए रवाना हो गए। यहां पहुंचकर उन्होंने भी देहरादून के प्रेमनगर में शरण ली।

पत्थर बीनने से शुरू हुई नई यात्रा

राकेश बताते हैं कि दून के शांत और सौहार्दपूर्ण वातावरण ने उनके परिवार को नई शुरुआत करने का हौसला दिया। मगर, दादा नंदलाल के पास न तो कोई नौकरी थी और न ही व्यवसाय शुरू करने को जमा-पूंजी।

  • ऐसे में उन्होंने टौंस नदी के पत्थरों को आजीविका का साधन बनाया। हर रोज उनका परिवार नदी से पत्थर बीनता और उन्हें रोड़ी में बदलकर बाजार में बेचता। करीब एक दशक तक यह प्रक्रम चलता रहा।
  • इस बीच दादा नंदलाल ने पाई-पाई जोड़कर प्रेमनगर में पैतृक दूध का व्यवसाय शुरू किया। गुणवत्ता और ईमानदारी के दम पर काम चल निकला। कुछ समय बाद पिता सूरज लाल भाटिया भी दादा का हाथ बंटाने लगे।
  • दूध के साथ परिवार ने मिठाई का व्यवसाय भी शुरू कर दिया। उनका कारोबार साल दर साल बढ़ता गया और 1980 में प्रेमनगर क्षेत्र में भाटिया मिष्ठान भंडार प्रसिद्ध हो गया।

200 से अधिक व्यक्तियों को दिया रोजगार

सूरज लाल भाटिया के पांच पुत्र और दो पुत्री हैं। भाटिया परिवार की इस तीसरी पीढ़ी ने पारिवारिक व्यवसाय की परंपरा को न सिर्फ शिखर पर पहुंचाया, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी सफलता के झंडे गाड़े।

  • बड़े बेटे सोमनाथ ने पैतृक व्यवसाय संभाला। वर्तमान में उनके प्रेमनगर में तीन होटल हैं।
  • दूसरे पुत्र राकेश भाटिया पैकेजिंग उद्योग में नाम कमा रहे हैं। पटेलनगर और सेलाकुई औद्योगिक क्षेत्र में उनकी दो औद्योगिक इकाइयां हैं।
  • तीन अन्य पुत्र रेशम और कैटरिंग के कारोबार से जुड़े हैं।

यह परिवार वर्तमान में 200 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार दे रहा है। राकेश कहते हैं कि उनके दादाजी आज संसार में नहीं हैं। उन्होंने लंबे समय तक दून में अनाथ लोगों का अंतिम संस्कार अपने हाथ से किया।

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