आज भी गरज रही है अस्सी के दशक की आवाज, इस शख्सियत के बारे में जानें
अवधेश कौशल ने तमाम अव्यवस्थाओं के खिलाफ जो आवाज अस्सी के दशक में बुलंद की थी। उसकी गरज आज भी सुनवाई पड़ती है।
देहरादून, जेएनएन। सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री अवधेश कौशल ने तमाम अव्यवस्थाओं के खिलाफ जो आवाज अस्सी के दशक में बुलंद की थी, उसकी गरज आज भी सुनवाई पड़ती है। बात चाहे वन गुर्जरों के अधिकारों को लेकर हो, पर्यावरण संरक्षण को लेकर हो या फिर नियमों के विपरीत पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास की सुविधा देने की हो। अवधेश कौशल ने न सिर्फ उनके खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाकर भी दम लिया।
शुरुआत कौशल के हालिया प्रयासों से करते हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जा रही सरकारी आवास की सुविधाओं को गैरकानूनी करार देते हुए हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। जिसके क्रम में वर्ष 2016 में कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी आवास की सुविधा वापस लेने के आदेश दिए। साथ ही उनसे किराया भी वसूल करने को कहा। इससे पहले उन्होंने अस्सी के दशक में वन गूजरों के अधिकारों को लेकर भी आवाज उठाई थी।
जिसके क्रम में केंद्र सरकार ने वर्ष 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेल्र्स एक्ट में वन गूजरों के अधिकारों को संरक्षित किया। यही कारण रहा कि गूजरों को जंगलों से खदेडऩे की सरकारी मंशा पर न सिर्फ लगाम लग पाई, बल्कि जंगल छोडऩे पर उन्हें तमाम सुविधाएं देने के नियम भी बने। निरक्षर वन गूजर स्वयं भी अपने हक को आवाज उठा पाएं, इसके लिए उनके लिए अवधेश कौशल ने अपनी संस्था 'रूलक' के माध्यम से स्कूल भी खोले।
अस्सी के ही दशक में पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील दूनघाटी में लाइम की माइनिंग जोरों पर थी और तमाम हरे-भरे पहाड़ खुदाई के चलते सफेद हो गए थे। इसके लिए भी कौशल में कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी। नतीजा यह हुआ कि लाइम की माइनिंग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया।
देहरादून के राजपुर क्षेत्र में यूपी कार्बाइड केमिकल फैक्ट्री, आदित्य बिड़ला केमिकल्स व आत्माराम चड्ढा सीमेंट फैक्ट्री से फैल रहे वायु प्रदूषण को लेकर भी अवधेश कौशल ने आवाज उठाई थी और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने के बाद वर्ष 1985 के आसपास तीनों फैक्ट्रियों को बंद करा दिया गया। पद्मश्री अवधेश कौशल का मानना है कि बुराई की पैठ चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो, यदि उसके खिलाफ आवाज बुलंद की जाए तो एक दिन जीत सच्चाई की ही होती है।
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