राजनीतिक व्यक्तित्व में छिपा था राष्ट्रवादी रचनाओं का पुरोधा
अटल बिहारी वाजपेयी जितने बेहतर राजनीतिज्ञ थें, उतने ही बेहतर कवि भी थे।
जागरण संवाददाता, देहरादून: अटल बिहारी वाजपेयी जितने बेहतर राजनीतिज्ञ थें, उतने ही बेहतर कवि भी थे। उनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भरी थी। बात जब काव्य की होती थी, तो पूर्व प्रधानमंत्री विचारधारा से परे सिर्फ कवि और उनकी कृति को महत्व देते थे। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान की खबर से साहित्य जगत भी गहरे सदमे में है।
प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी अटल बिहारी के कविता प्रेम को याद करते हुए बताते हैं कि वर्ष 1997 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। अटल तब प्रधानमंत्री और लखनऊ से सांसद थे और वो सूचना विभाग में उप निदेशक पद पर तैनात थे। जगूड़ी बताते हैं कि एक दिन सूचना विभाग के तत्कालीन निदेशक अशोक प्रियदर्शी ने उन्हें फोन कर बताया कि वह आज कार्यालय न आएं और घर पर ही रहें। आश्चर्य से भरे जगूड़ी ने जब इसका कारण पूछा तो उन्हें पता चला कि प्रधानमंत्री उनसे मिलने आ रहे हैं। दोपहर दो बजे अटल उनके इंदिरानगर स्थित आवास पर पहुंचे और पुरस्कार के लिए उन्हें बधाई दी। वरिष्ठ साहित्यकार बुद्धिनाथ मिश्र के हृदय में भी पूर्व प्रधानमंत्री की कुछ ऐसी ही सुखद यादें बसी हैं। वो बताते हैं, वर्ष 1991 में दिल्ली में आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन में उन्हें प्रतिनिधित्व का जिम्मा मिला था। मंच पर जब उन्होंने मां गंगा पर आधारित 'दोने में धरे किसी दीप की तरह वक्त की नदी में हम बह रहे उधर, शोक लहर हमें ले जाए जिधर..' रचना प्रस्तुत की तो अटल बिहारी वाजपेयी मंच पर आकर बोल उठे कि 'आज तुमने ¨हदी की लाज रख ली'।
वहीं, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रो. दिनेश चमोला 'शैलेष' का कहना है कि एक शीर्ष राजनीतिक व्यक्तित्व के पीछे सहृदयी कवि को बसाए रखने का हुनर सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी के पास था। राष्ट्रीयता से ओत-पोत जैसी कविताएं पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लिखीं, वो जोश किसी और रचना में नजर नहीं आता। यादों के झरोखों को टटोलते हुए वह बताते हैं कि एक दशक से अधिक समय पहले दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की पुस्तक 'खड़े हुए प्रश्न' के विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे, जबकि मंच संचालन का जिम्मा उनके पास था। संचालन में जब प्रो. चमोला ने उनकी रचनाओं का समावेश किया तो वह हतप्रभ हो गए थे।