चाय बागान को लीज पर 30 एकड़ से ज्यादा भूमि
उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को गति देने और पर्वतीय क्षेत्रों में चाय बागान प्रसंस्करण और वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पट्टे पर 30 एकड़ भूमि ली जा सकेगी।
राज्य ब्यूरो, देहरादून
उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को गति देने और पर्वतीय क्षेत्रों में चाय बागान, प्रसंस्करण और वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पट्टे पर 30 एकड़ भूमि ली जा सकेगी। विशेष परिस्थितियों यह सीमा 30 एकड़ से अधिक होगी। पट्टा किराया सहित 30 वर्षो के लिए दिया जा सकेगा। वहीं राज्य में दिव्यांगजनों को कृषि व आवासीय उपयोग के लिए सरकारी भूमि के आवंटन में पांच फीसद आरक्षण दिया जाएगा। ऐसे आवंटन में दिव्यांग स्त्रियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
उत्तराखड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)(संशोधन) विधेयक को सोमवार को सदन में पारित किया गया। इस विधेयक प्रमुख रूप से दो बिंदुओं पर संशोधन किए गए हैं। मूल अधिनियम की धारा 156 की उपधारा(1) के खंड(ग) में कृषि, बागवानी, जड़ी बूटी उत्पादन, बेमौसमी सब्जियों, औषधीय पादपों एवं सुगंधित पुष्पों, मसालों के उत्पादन, वृक्षारोपण, पशुपालन व दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन व पशुधन प्रजनन, कृषि एवं फल प्रसंस्करण, चाय बागान व वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं के लिए किसी संस्था को अधिकतम 30 वर्षो के लिए पट्टा देने का प्रावधान जोड़ा गया है। उपखंड (11) के स्थान पर उपखंड (आठ) में पट्टाधारक को अधिकतम 30 एकड़ भूमि पट्टे पर देने और विशेष परिस्थितियों में 30 एकड़ से अधिक भूमि आवश्यकतानुसार पट्टे पर लेने का प्रावधान शामिल किया गया है।
इसीतरह मूल अधिनियम की धारा 198 की उपधारा(9) के बाद एक नई उपधारा(10) को जोड़कर कृषि व आवासीय उपयोग के लिए भूमि आवंटन में दिव्यांगजन को पांच फीसद आरक्षण देने और ऐसे आवंटन में दिव्यांग स्त्रियों को प्राथमिकता देने की व्यवस्था की गई है।