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लॉक डाउन के बीच बेजुबानों की दिक्कत को मिली जुबान

सही वक्त पर आगे आईं पशुपालन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य उन्होंने लॉकडाउन के चलते बेजुबान पशुओं की सुध लेते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 06 Apr 2020 09:21 AM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 12:02 PM (IST)
लॉक डाउन के बीच बेजुबानों की दिक्कत को मिली जुबान
लॉक डाउन के बीच बेजुबानों की दिक्कत को मिली जुबान

देहरादून, विकास धूलिया। कोरोना के कारण लॉक डाउन को उत्तराखंड में दो सप्ताह हो गए, समाज के हर तबके के लिए सरकार ने कुछ न कुछ किया। इस सबके बीच शायद ही किसी की तवज्जो उन बेजुबानों की तरफ गई, जो हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा हैं। सही समझे आप, बात हो रही है उन निरीह पशुओं की, जो चारे के अभाव की अपनी दिक्कत किसी को बता भी नहीं सकते। सही वक्त पर आगे आईं पशुपालन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य, उन्होंने लॉकडाउन के चलते बेजुबान पशुओं की सुध लेते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के कारण पशु चारे की समस्या खड़ी हो गई है। उन्होंने जिलाधिकारियों को आपदा मद में पशु चारे के लिए धन देने के निर्देश देने और इस कार्य के लिए विधायक निधि का उपयोग करने की अनुमति देने की मांग की। आप ही बताइए, तालियां तो बनती हैं न इसके लिए।

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सियासत दरकिनार, हरदा की अपील जोरदार

बात चाहे राजनीति की हो, या फिर कोरोना जैसी महामारी की, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरदम मोर्चे पर आगे नजर आते हैं। वैसे तो हरदा भाजपा और उसकी केंद्र व सूबाई सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं चूकते मगर इन दिनों कोरोना से निबटने के लिए शायद उन्होंने सियासत को पूरी तरह दरकिनार कर दिया है। हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 31 मार्च को वाहनों को जिलों में इधर से उधर आने-जाने को पूरे दिन छूट का एलान किया। फिर केंद्र की सख्ती के बाद इसे वापस भी ले लिया, तो हरदा पहले कांग्रेस नेता थे, जो उनके दोनों फैसलों पर साथ खड़े हुए। अब जबकि, जमातों को लेकर कोरोना पॉजिटिव मामलों में बेहिसाब तेजी दर्ज की गई तो फिर हरीश रावत ही थे, जिन्होंने जमातियों से स्वयं की पहचान जाहिर कर कोरोना टेस्ट कराने की अपील की।

परोपकार की शुरुआत घर से ही

अंग्रेजी में कहावत है ‘चैरिटी बिगिंस एट होम’। यानी, परोपकार की शुरुआत घर से होती है। जब ऐसा होगा, तब जाकर ही दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित किया जा सकता है। खासकर समाजसेवा के क्षेत्र में तो यह बात कुछ ज्यादा ही मायने रखती है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस बात को स्वयं पर पूरी तरह लागू किया। कोरोना संकट से निबटने के मद्देनजर राज्यवासियों से मुख्यमंत्री राहत कोष में योगदान देने की अपील से पहले मुख्यमंत्री के साथ ही उनके परिवार ने खुद इसकी पहल की। मुख्यमंत्री ने पांच माह का वेतन तो उनकी पत्‍नी ने एक लाख रुपए, एक बेटी ने 50 हजार और दूसरी बेटी ने दो हजार रुपये का योगदान राहत कोष में किया। मुख्यमंत्री और उनके परिवार की इस पहल का अच्छा संदेश भी गया। लोगों ने न सिर्फ इसे सराहा, बल्कि वे बढ़-चढ़कर मुख्यमंत्री राहत कोष में सहयोग भी दे रहे हैं।

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कोरोना के नाम पर भी ब्रांडिंग

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को भी कुछ लोगों ने सियासी पैंतरा मान अपनी ब्रांडिंग का मौका तलाश लिया। ऐसे ही कुछ सियासतदां को लेकर आजकल सियासी गलियारों में चर्चा सरगर्म है। दरअसल, इनकी मीडिया टीम की अति सक्रियता इसके लिए जिम्मेदार है। मंत्रीजी दिन में भले ही एक बैठक करें, लेकिन इसे लेकर इतने जुमले सोशल मीडिया में उछाल दिए जा रहे हैं, मानों इनसे बड़ा कोराना वॉरियर कोई है ही नहीं। इस तरह की सबसे ज्यादा सक्रियता वन एवं पर्यावरण मंत्री हरक सिंह रावत और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की टीम में नजर आ रही है। मंत्रीजी के सुबह योग करने से लेकर किचन गार्डन में थोड़ा वक्त गुजारने तक के वीडियो सोशल मीडिया में वायरल किए जा रहे हैं। इससे कैसे कोरोना के संक्रमण पर लगाम लगेगी, भले ही इनके टीम मेंबर्स इसे लेकर कुछ नहीं कह पा रहे हों, लेकिन हंसी के पात्र जरूर बन रहे हैं।

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