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महेंद्र सिंह धौनी और सचिन तेंदुलकर को मसूरी में जमीन देने की घोषणा

केंद्र सरकार ने टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी को खेल रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की। उत्तराखंड सरकार ने धौनी और सचिन तेंदुलकर को मसूरी में जमीन देने की घोषणा की।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 21 Aug 2020 09:07 AM (IST)Updated: Fri, 21 Aug 2020 10:20 PM (IST)
महेंद्र सिंह धौनी और सचिन तेंदुलकर को मसूरी में जमीन देने की घोषणा
महेंद्र सिंह धौनी और सचिन तेंदुलकर को मसूरी में जमीन देने की घोषणा

देहरादून, विकास गुसाईं। वर्ष 2011 में क्रिकेट विश्वकप जीतने वाली टीम को पूरे देश में सिर आंखों पर बिठाया गया। उत्तराखंड भी इसमें पीछे नहीं रहा। केंद्र सरकार ने टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी को खेल रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की। उत्तराखंड सरकार ने धौनी और सचिन तेंदुलकर को मसूरी में जमीन देने की घोषणा की। टीम का उत्तराखंड में सम्मान करने की बात भी कही गई। घोषणाएं मीडिया की सुर्खियां बनीं और सरकार की खूब वाहवाही हुई। दरअसल, महेंद्र सिंह धौनी उत्तराखंड के मूल निवासी हैं। उनका पैतृक गांव ल्वाली उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में है। धौनी के मूल रूप से उत्तराखंड से होने के कारण सरकार ने इसे प्रदेश की उपलब्धि भी माना। घोषणाएं हुए आठ साल गुजर गए। पहले सचिन तेंदुलकर और अब महेंद्र सिंह धौनी भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं लेकिन उत्तराखंड सरकार की ये घोषणाएं अब तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। 

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दो साल में भी नहीं हटाए अतिक्रमण 

राजधानी को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए दो साल पहले कवायद शुरू की गई। इसमें शासन की इच्छा कम और हाईकोर्ट की सख्ती ज्यादा थी। हालांकि, हाईकोर्ट के आदेशों का भी पूरी तरह पालन नहीं किया गया। आलम यह कि जो कार्य चार सप्ताह में पूरे किए जाने थे, वे अब दो वर्ष गुजरने के बावजूद भी पूर्ण नहीं हो पाए हैं। शहर में अभी भी 50 फीसद से ज्यादा अतिक्रमण जस की तस हालत में है। चिह्नित किए गए नौ हजार अतिक्रमण में से साढ़े चार हजार को महज लाल निशान लगा कर छोड़ दिया गया, जबकि हटाए गए अतिक्रमण को वैसे ही छोड़ देने से दोबारा अतिक्रमण हो गया। आज अतिक्रमण पर लगाए गए लाल निशान मिट चुके हैं। जहां अतिक्रमण हटाए गए थे, वहां फिर से बाजार सज चुके हैं। कोरोना काल के चलते बीते छह माह से शासन और प्रशासन भी इससे आंखें मूंदे है। 

हाईस्कूल में व्यावसायिक शिक्षा का लंबा इंतजार 

राज्य के 200 विद्यालयों के लगभग 10 हजार विद्यार्थियों को नौ ट्रेड में व्यावसायिक शिक्षा देने की योजना। मकसद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कौशल विकास के ड्रीम प्रोजेक्ट को देखते हुए तैयार की गई केंद्र सरकार की नई व्यावसायिक शिक्षा नीति को अमल में लाना और युवाओं के लिए बेहतर भविष्य तय करना। योजना को लेकर विद्यार्थी भी उत्सुक रहे। सरकार व विभाग की लापरवाही के कारण योजना दो साल से टेंडर की शर्तें तय न होने के कारण धरातल पर नहीं उतर पाई है। दरअसल, सरकारी विद्यालयों में इस योजना को स्किल इंडिया के तहत संचालित करने का निर्णय लिया गया। पुराने ट्रेड के स्थान पर नए ट्रेड चिह्नित किए गए। इनकी संख्या चार से बढ़ाकर नौ कर दी गई। तमाम प्रयासों के बावजूद व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए पार्टनर का चयन नहीं किया जा सका। अब एक बार फिर नए सिरे से टेंडर प्रक्रिया शुरू की जा रही है। 

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प्रदेश में नहीं बन पाया नेत्र बैंक 

प्रदेश का पहला सरकारी नेत्र बैंक। गांधी नेत्र चिकित्सालय के निर्माण के साथ ही यहां नेत्र बैंक बनाने की बात कही गई। उम्मीद जगी कि अब गरीब नेत्रहीन इस बैंक के जरिये आंखें लेकर खूबसूरत दुनिया को देख सकेंगे। अफसोस, अभी तक गांधी नेत्र चिकित्सालय में नेत्र बैंक बनाने का काम शुरू नहीं हो पाया है। ऐसा नहीं कि प्रदेश में अभी नेत्र बैंक नहीं हैं लेकिन ये गैरसरकारी हैं। सरकारी स्तर पर नेत्र बैंक बनाने की कवायद जनवरी 2019 में शुरू हुई। यहां एक धर्मार्थ ट्रस्ट के माध्यम से इसकी स्थापना की बात हुई। तब कहा गया कि बैंक बनाने के साथ ही नेत्र प्रत्यारोपण की व्यवस्था भी की जाएगी। नेत्र चिकित्सालय में अभी आंखों से संबंधित बीमारियों का इलाज और ऑपरेशन तो हो रहे हैं लेकिन नेत्र बैंक बनने की दिशा में काम नहीं हो पाया है। विभाग भी इस मामले में अभी चुप्पी ही साधे हुए है। 

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