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पहाड़ों पर हांफ गया मानव विकास, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट में उक्त तथ्य सामने आए हैं। देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर सबसे ज्यादा धनी हैं। इनकी तुलना में पर्वतीय जिले गरीब हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 04:48 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 09:12 AM (IST)
पहाड़ों पर हांफ गया मानव विकास, रिपोर्ट में हुआ खुलासा
पहाड़ों पर हांफ गया मानव विकास, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

देहरादून, राज्य ब्यूरो। दूरदराज के विषम पर्वतीय क्षेत्रों के विकास की जिस मूल अवधारणा को लेकर अलग उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया, 18 साल गुजरने पर भी वह अधूरा ही है। आमदनी और खुशहाली के मामले में पर्वतीय जिले फिसड्डी बने हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर से जुड़ी सुविधाएं पहाड़ चढ़ने के नाम पर हांफ रही हैं।

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नतीजतन आमदनी और खुशहाली के लिहाज से राज्य के 13 जिलों में तीन मैदानी जिले देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर सबसे ज्यादा धनी हैं। इनकी तुलना में पर्वतीय जिले गरीब हैं। दूरस्थ जिलों चमोली, चंपावत और पिथौरागढ़ से खुशहाली दूर है। अलबत्ता, लैंगिक विकास की बात करें तो उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर जिले उक्त तीनों मैदानी जिलों से बेहतर स्थिति में हैं यानी उक्त पर्वतीय जिलों में महिलाओं की स्थिति हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून की तुलना में ज्यादा अच्छी है।

राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) में उक्त तथ्य सामने आए हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वेक्षण के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। सचिवालय में सोमवार को वित्त मंत्री प्रकाश पंत की अध्यक्षता में आयोजित कार्यशाला में उक्त रिपोर्ट पर स्टेक होल्डर्स और सलाहकार संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ मंथन किया गया। एचडीआर को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर से संबंधित सूचकों के आधार पर तैयार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मानव विकास में पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर की अच्छी रैंकिंग की वजह प्रति व्यक्ति उच्च आमदनी रही है। आमदनी के मामले में रुद्रप्रयाग, चंपावत और टिहरी क्रमश: 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर रहे। आमदनी के आधार पर टिहरी जिला सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है। वहीं पर्वतीय जिलों में प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में चमोली और पौड़ी जिले अपेक्षाकृत बेहतर हैं। ये दोनों ही जिले क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर हैं। पिथौरागढ़ छठे, नैनीताल सातवें, बागेश्वर आठवें, अल्मोड़ा नवें और उत्तरकाशी दसवें स्थान पर रहा है।

पहाड़ों पर जीवन यापन की खराब गुणवत्ता

मानव विकास रिपोर्ट से ये भी साफ हो रहा है कि पर्वतीय क्षेत्रों में गरीबी को दूर करने के लिए काफी मशक्कत करने की जरूरत है। जीवन स्तर की गुणवत्ता के मामले में पर्वतीय जिलों में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने चिकित्सा व स्वास्थ्य के प्रमुख संकेतांकों संस्थागत प्रसव, टीकाकरण, शिशु मृत्यु दर और माध्यमिक शिक्षा में नामांकन में सुधार के लिए मिशन मोड पर कार्य करने के निर्देश दिए हैं। 

बहुस्तरीय गरीबी सूचकांक (मल्टीपल पावर्टी इंडेक्स) शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर, संपत्ति, पक्के आवास, घरेलू ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, संस्थागत प्रसव, शिक्षा, विद्यालयों की उपलब्धता और उनमें छात्रों व शिक्षकों की उपस्थिति से संबंधित सूचनाओं के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें चमोली, चंपावत और पिथौरागढ़ क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून क्रमश: 11वें, 12वें व 13वें स्थान पर हैं। खुशहाली से जुड़ा ये सूचकांक गवाही दे रहा है कि विषम भौगोलिक क्षेत्रों यानी पर्वतीय क्षेत्रों तक खुशहाली की पहुंच की रफ्तार सुस्त है। दूरदराज के पर्वतीय जिले लैंगिक विकास (जीडीआइ) यानी महिलाओं के विकास और स्थिति के मामले में मैदानी जिलों ऊधमसिंहनगर, देहरादून और हरिद्वार से काफी बेहतर स्थिति में हैं। उक्त तीनों जिले आश्चर्यजनक ढंग से जीडीआइ में क्रमश: 11वें, 12वें व 13वें स्थान पर हैं। 

कार्यशाला में वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने मानव विकास सूचकांक को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक विभाग के बजट में आउटकम बजट को तरजीह दी गई है। नियोजन विभाग को इसका नियमित अनुश्रवण करना होगा। उन्होंने कहा कि यूएनडीपी की ओर से जारी मानव विकास रिपोर्ट 2018 में देश की रैंकिंग में चार वर्षों में निरंतर सुधार दर्ज किया गया है। मानव विकास रिपोर्ट को विजन 2030 के साथ जोड़कर अपेक्षित परिणाम के लिए ठोस नीति बनानी आवश्यक है। नियोजन सचिव अमित नेगी ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को लेकर जारी विजन 2030 के प्रभावी क्रियान्वयन को एचडीआर के आधार पर कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता है। कार्यशाला में सचिव डॉ भूपिंदर कौर औलख, आर मीनाक्षी सुंदरम, प्रभारी सचिव बीएस मनराल, अर्थ एवं संख्या निदेशक सुशील कुमार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, उद्यान समेत विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, अधिकारी, कंसल्टेंट एजेंसीज के विशेषज्ञ मौजूद थे।

आबकारी लक्ष्य अभी चार सौ करोड़ रुपये दूर

आबकारी विभाग मौजूदा वित्तीय वर्ष में अपने निर्धारित लक्ष्य से अभी 400 करोड़ रुपये पीछे चल रहा है। आबकारी विभाग ने अभी तक 2650 करोड़ रुपये के सापेक्ष 2277 करोड़ हासिल कर लिए हैं। विभाग अगले वित्तीय वर्ष यानी वर्ष 2019-20 के लिए कुल लक्ष्य में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी की तैयारी कर रहा है। इसके अलावा अवैध शराब की तस्करी को रोकने के लिए नियमों को और सख्त बनाने की तैयारी चल रही है।आबकारी महकमा प्रदेश में सबसे अधिक राजस्व देने वाले महकमों में शामिल है। हालांकि बीते कुछ वर्षों से विभाग निर्धारित लक्ष्य को छूने में नाकाम रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में विभाग अपने निर्धारित लक्ष्य से काफी पीछे रहा था। इस कारण बीते वर्ष विभाग ने आबकारी नीति में परिवर्तन करते हुए ई-टेंडरिंग के माध्यम से दुकानों का आवंटन किया। सभी दुकानों की बोली लगे, इसके लिए समूहों में दुकानों की बोली भी लगाई गई। विभाग ने बीते वर्ष 626 दुकानों की बोली लगाई थी। इन दुकानों से विभाग को तकरीबन 1500 करोड़ रुपये मिले थे। हालांकि, यह रकम एकमुश्त न मिलकर विभागों को किश्तों में मिली। इतना ही नहीं, बीते वर्ष विभाग ने नीति में अहम परिवर्तन करते हुए अवैध शराब की तस्करी में जुर्माने की रकम में भी बढ़ोतरी की थी। 

विभाग को अभी तक मिले राजस्व के आंकड़ों पर नजर डालें तो विभाग ने जनवरी माह तक के लिए 2418 करोड़ रुपये का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके सापेक्ष सभी वसूली मिलाकर विभाग 2277 करोड़ तक ही पहुंच पाया है। इसके बाद विभाग के पास कुल लक्ष्य यानी 2650 करोड़ तक पहुंचने के लिए केवल दो माह शेष हैं। हालांकि, विभाग उम्मीद जता रहा है कि वह इन दो माह में निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लेगा।

आबकारी मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि विपरीत परिस्थितियों के कारण वर्ष 2017-18 में आबकारी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया था। इस बार स्थिति बदली है और विभाग निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लेगा। इस बार भी दुकानों का आवंटन पारदर्शी तरीके से किया जाएगा। इस बार अवैध तस्करी पर रोक लगाकर शराब का कारोबार करने वालों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाएगा। 

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