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अमेरिका का दीपावली कार्यक्रम जो यादगार बन गया

वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर धीरेंद्र शर्मा के साथ अमेरिका के एक कॉलेज में आयोजित दीपावली समारोह का एक वाकया उनके इस दौरे को यादगार बना गया है। आइए जानते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 19 Oct 2017 11:29 AM (IST)Updated: Thu, 19 Oct 2017 03:51 PM (IST)
अमेरिका का दीपावली कार्यक्रम जो यादगार बन गया
अमेरिका का दीपावली कार्यक्रम जो यादगार बन गया

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: भारत में एक आम धारणा बन रही है कि आधुनिकता की दौड़ में युवा अपने में ही सिमट कर रह गए हैं। एक दूसरे पर विश्वास की जड़ें खोखली हो रही हैं। इन्हीं परिस्थितियों में यदि अमेरिका में रह रहे भारतीयों की बात की जाए तो जाहिर है कि उनकी छवि आधुनिकता में रंगे युवाओं की है। बावजूद इसके यह भारतीय संस्कृति ही है जिस कारण विदेशों में आज भी विश्वास की डोर कायम है। वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर धीरेंद्र शर्मा के साथ अमेरिका के एक कॉलेज में आयोजित दीपावली समारोह का एक वाकया उनके इस दौरे को यादगार बना गया है। 

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प्रोफेसर धीरेंद्र शर्मा बताते हैं कि कुछ समय पूर्व वह अमेरिका गए थे। वहां एक दिन बोस्टन में घूमते हुए दीपावली नाइट का एक हस्तलिखित पोस्टर नजर आया। यह आयोजन हारवर्ड कालेज के हॉस्टल में किया जा रहा था। एक भारतीय होने के नाते उनकी भी इच्छा हुई कि वे इसे देखें। पोस्टर में दी गई तारीख को तकरीबन रात साढ़े आठ बजे वह हॉस्टल के हॉल में पहुंच गए। 

इस दौरान कुछ भारतीय जोड़े इस हॉल को सजाने में लगे हुए थे। धीरे-धीरे युवक व युवतियां इस हॉल में पहुंचने लगे। अपने देशवासियों से वे ऐसे मिल रहे थे जैसे सालों से बिछड़े दोस्त मिलते हैं। कुछ ही देर में हॉल सैकड़ों जोड़ों से भर गया। हॉल में भारतीय पॉप संगीत के बीच-बीच में भजन व आरती सुनाई दे रही थी।

रात नौ बजे अचानक एक 20 वर्षीय युवती उनके पास पहुंची। उसने गुजराती ड्रेस घाघरा पहना हुआ था। उसने उनके हाथ में एक एक रंगीन रुमाल में बंधा छोटा पैकेट पकड़ाते हुए कहा कि अंकल आप इसे थोड़ी देर के लिए संभाल के रखिए तब तक मैं इन्हें गरबा नृत्य सीखा कर आती हूं। इसके बाद वह भीड़ में खो गई। उस युवती को गए दो घंटे हो गए थे पर वह समान वापस लेने नहीं आई थी।

उन्हें सुबह जल्दी भारत आने के लिए फ्लाइट लेनी थी। इसलिए उन्हें जल्दी होटल भी पहुंचना था। आधी रात हो चुकी थी, लेकिन युवती का कोई अता पता नहीं था। उनके पास अभी भी रंगीन रुमाल में बंधा वह डिब्बा पड़ा था। उन्होंने पैकेट के भीतर झांक कर देखा तो उसमें सोने के आभूषण थे। ऐसा लगा कि शायद वह डांस करते हुए इन आभूषणों को नहीं पहनना चाहती थी।

उन्होंने हॉल के भीतर देखा तो वहां एक भी युवती स्लेक्स अथवा जींस में नजर नहीं आई। उन्होंने उस युवती को ढूंढ़ना शुरू किया, लेकिन 200 लोगों की भीड़ में उस युवती को पहचानना आसान नहीं था। वह किसी से यह पूछ भी नहीं सकते थे कि क्या ये सोना तुम्हारा है। रात के एक बज चुके थे। संगीत थम गया।

उनकी परेशानी से अनजान वह युवती दीपावली कार्यक्रम के नृत्य कार्यक्रम का आनंद उठाने के बाद उनके पास पहुंची और आभूषण का डिब्बा वापस लेते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने पूछा कि अमेरिका में एक अपरिचित व्यक्ति पर इतना विश्वास। वह बोली कभी नहीं.. लेकिन एक बुजुर्ग भारतीय पर...यह एक अलग बात है। 

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