अखतीर मेले में परियों से मिलने देववन पहुंचे पवासी महासू, जानिए क्या है मान्यता
महासू देवता मंदिर हनोल से सटे बंगाण क्षेत्र के देववन जंगल में सालभर में एक बार आयोजित होने वाले अखतीर मेले में परियों से मिलने पवासी महासू प्रवास पर देववन जंगल के मंदिर पहुंचे।
By Edited By: Published: Sat, 13 Jun 2020 08:53 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jun 2020 04:57 PM (IST)
चकराता(देहरादून), चंदराम राजगुरु। सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल से सटे बंगाण क्षेत्र के देववन जंगल में सालभर में एक बार आयोजित होने वाले अखतीर मेले में परियों से मिलने पवासी महासू प्रवास पर देववन जंगल के मंदिर पहुंचे। गाजे-बाजे के साथ पहुंची देव पालकी की अखतीर यात्रा में स्थानीय लोग सीमित संख्या में शामिल रहे।
मान्यता है कि देववन जंगल के मंदिर में देवता की दो दिन पूजा-अर्चना होने के बाद पवासी महासू वापस मूल मंदिर लौट जाएंगे। जौनसार-बावर के सबसे बड़े धाम और प्रमुख पर्यटन स्थल हनोल मंदिर से दस किमी की खड़ी चढ़ाई नापने के बाद बंगाण क्षेत्र के ऊंची चोटी पर स्थित देववन जंगल में पवासी महासू का प्राचीन मंदिर है। यहां साल भर में एक बार मई और जून माह के बीच में शुभ लग्न में अखतीर का परंपरागत मेला लगता है। मंदिर की परंपरागत व्यवस्था से जुड़े कारसेवकों ने कहा कि केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि घोषित होने से बंगाण क्षेत्र के देववन मंदिर में अखतीर मेले की तैयारी शुरू होती है।
14 जून को होता है अखतीर मेले का आयोजन
मान्यता के अनुसार मई और जून माह के बीच में आयोजित होने वाले परंपरागत मेले में परियों से मिलने का वचन निभाने को पवासी महासू सालभर में एक बार प्रवास पर देववन जंगल के मंदिर जाते हैं। इस बार 13 और 14 जून को अखतीर मेले का आयोजन होने से पवासी महासू की देव पालकी गाजे-बाजे के साथ ठडियार मंदिर से दस किमी की पदयात्रा कर शनिवार शाम को प्रवास पर देववन जंगल पहुंची, जहां बंगाण क्षेत्र से जुड़े मासमोर, पिंगल पट्टी, कोठीगाड पट्टी और बावर क्षेत्र से अखतीर मेले में जुटे श्रद्धालुओं ने देवता के दर्शन कर मनौती मांगी।
अखतीर मेले में दो दिन के प्रवास पर देववन जंगल पहुंचे पवासी महासू ने परंपरानुसार सबसे पहले मंदिर के पास स्थित विशालकाय पत्थर की शिला में विराजमान कहे जाने वाली परियों से भेंट की। देव पालकी और शिला की पूजा-अर्चना के बाद पवासी महासू देववन मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हुए। इस दौरान कई ग्रामीण महिलाओं पर देव परियों की छाया आने से भाव प्रकट हो गए। देवता ने सभी को अपना आशीर्वाद दिया। मंदिर के सामने स्थित दो प्राचीन जलकुंड में श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाने के बाद देवता के दर्शन किए।
अखतीर मेले में जुटे लोग रात्रि में देवता का जागरण करते हैं। अखतीर मेले को मनाने की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही परंपरा का स्थानीय लोग धार्मिक परंपरा अनुसार निर्वहन करते आ रहे हैं। सालभर में एक बार प्रवास पर देववन मंदिर पहुंचे पवासी महासू की यहां दो दिन में तीन पहर की विशेष पूजा-अर्चना होती है। इसके बाद देव पालकी की पूजा-अर्चना एक माह तक देवती गांव में बने मंदिर में होती है। जिसके बाद पवासी महासू वापस मूल मंदिर ठडियार लौट जाते हैं। पांशीबिल क्षेत्र के बजीर जयपाल सिंह पंवार ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण के चलते इस बार अखतीर मेले में श्रद्धालु सीमित संख्या में देववन मंदिर आए। लोगों ने देवता से देश-दुनिया में छाए कोरोना महामारी के संकट से मानव जीवन के सुरक्षा की फरियाद की।
साल में दो दिन खुलते हैं देववन मंदिर के कपाट
टोंस वन प्रभाग के देवता रेंज ठड़ियार से जुड़े देववन जंगल के बीच में पवासी महासू का प्राचीन मंदिर है। देवदार व कैल वृक्षों के घने जंगल के बीच स्थित खाली मैदान में देवता के मंदिर के पास एक विशालकाय पत्थर की शिला है। इस शिला में देव परियों का वास बताया जाता है। कहते हैं परियों को दिए गए वरदान का वचन निभाने को पवासी महासू सालभर में एक बार परियों से भेंट करने प्रवास पर आते है। देवता के आगमन की खुशी में लोग अखतीर मेले का परंपरागत तरीके से जश्न मनाते हैं।
जंगल के बीच देववन मंदिर में दो दिन प्रवास के बाद पवासी महासू के वापस लौटने से मंदिर के कपाट सालभर के लिए बंद हो जाते हैं। आबादी क्षेत्र से मीलों दूर देववन मंदिर में सिर्फ दो दिन देवता की विशेष पूजा-अर्चना होती है। मंदिर के ठीक सामने दो जलकुंड में पानी हमेशा स्थिर रहता है। जबकि पत्थर की बड़ी शिला के पास से गुजरने पर लोगों को मधुमक्खियों के झुंड में विचरण करने जैसी गुनगुनाने वाली आवाज जोर से सुनाई पड़ती है, बताते हैं यह आवाज परियों की है।
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