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उत्तराखंड: यहां हुआ पौधा उगाने के लिए अभिनव प्रयोग, पॉलीथिन की जगह अब इसका होगा इस्तेमाल; जानिए

पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं पॉलीथिन बैग की जगह अब उत्तराखंड में पौधा उगाने के लिए बायो बैग का इस्तेमाल किया जाएगा।

By Edited By: Published: Tue, 15 Sep 2020 08:00 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 11:13 PM (IST)
उत्तराखंड: यहां हुआ पौधा उगाने के लिए अभिनव प्रयोग, पॉलीथिन की जगह अब इसका होगा इस्तेमाल; जानिए
उत्तराखंड: यहां हुआ पौधा उगाने के लिए अभिनव प्रयोग, पॉलीथिन की जगह अब इसका होगा इस्तेमाल; जानिए

देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में हरियाली के लिए हर साल करीब चार करोड़ पौधों का रोपण सुकून देता है, लेकिन इन पौधों को उगाने में प्रयोग किए गए पॉलीथिन बैग पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं। बीते 20 वर्षों में ही पौधारोपण के बाद 80 करोड़ पॉलीथिन बैग यत्र-तत्र छोड़ दिए गए, जो यहां की मिट्टी, हवा और पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। इन सब खतरों को देखते हुए पौधे उगाने में पॉलीथिन की बजाए ईको फ्रेंडली बायो बैग के इस्तेमाल की ठानी गई है।

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नरेंद्रनगर वन प्रभाग के अंतर्गत ऋषिकेश के नजदीक मुनिकीरेती में इसका अभिनव प्रयोग किया गया है। बायो बैग की लागत भी पॉलीथिन बैग के बराबर ही आई है। मुनिकी रेती स्थित नर्सरी में करीब सवा लाख पौधे इन्हीं बायो बैग में तैयार किए जा रहे हैं। धीरे-धीरे इस पहल को वन विभाग अन्य नर्सरियों में भी अपनाएगा, जिससे पॉलीथिन के खतरों से जंगल की जमीन को निजात मिल सके। यह किसी से छिपा नहीं है कि दुनियाभर में पर्यावरण के लिए पॉलीथिन बड़े खतरे के रूप में उभरा है। 

जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। गाव, शहर हों या जंगल, सभी जगह पॉलीथिन कचरा मुसीबत बना है। बेहतर आबोहवा और आर्थिकी के मद्देनजर वन, उद्यान समेत अन्य विभागों द्वारा प्रतिवर्ष रोपे जाने वाले करीब चार करोड़ पौधे भी पॉलीथिन फैलाने का जरिया बन रहे हैं। जिन बैग में पौधे उगाए जाते हैं, वे पॉलीथिन के होते हैं। पौधा लगाने के बाद इन्हें यूं ही छोड़ दिया जा रहा है। ऐसे में वन महकमे की पेशानी पर बल पड़े हैं, मगर पॉलीथिन की तरह सस्ता, टिकाऊ विकल्प नहीं मिल रहा था। इसे देखते हुए नरेंद्रनगर वन प्रभाग के अंतर्गत हर्बल गार्डन मुनिकीरेती में जूट के बैग में गत वर्ष पौधे उगाने की पहल हुई, लेकिन यह काफी महंगी पड़ी। इसके बाद 70 जीएसएम के नॉन वॉवन कपड़े से बने बैग का प्रयोग किया गया, जो पॉलीथिन की तरह सस्ता और टिकाऊ है। इन्हें बायो बैग भी कहा जाता है। 

बायो बैग की मुहिम का जिम्मा संभाले नरेंद्रनगर वन प्रभाग के उपप्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन बिष्ट बताते हैं कि पॉलीथिन बैग के अपघटित होने में सौ साल से ज्यादा का वक्त लगता है, जबकि बायो बैग डेढ़-दो साल में अपघटित हो जाता है। वह बताते हैं कि वर्तमान में प्रति बायो बैग की कीमत 1.23 रुपये पड़ रही है। वहीं, पॉलीथिन बैग की कीमत 1.04 रुपये है। बड़े पैमाने पर बायो बैग बनने से इसकी लागत घट सकती है।

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बिष्ट के अनुसार मुनिकी रेती के बाद अब ऋषिकेश में लीसा डिपो पौधशाला में भी यह प्रयोग शुरू किया गया है।

नरेंद्रनगर डीएफओ डीएस मीणा का कहना है कि पौधा उगाने को पॉलीथिन के विकल्प के तौर पर बायो बैग का प्रयोग किया जा रहा है। हालाकि, अभी बायो बैग में करीब दो प्रतिशत प्लास्टिक है, लेकिन इसे और कम करने पर शोध जारी है। बायो बैग से पर्यावरण संरक्षण तो होगा ही, आजीविका के द्वार भी खुलेंगे।

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