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ट्रैकिंग दलों की निगरानी न होने से खड़ी हो रही मुश्किलें, जानें- कितनी तरह की होती है ट्रैकिंग; क्या है व्यवस्था

Adventure Tourism आपदा में दर्जनभर ट्रैकर की मौत के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिंग को लेकर चिंता के बादल मंडराने लगे हैं। ट्रैकिंग के लिए तय व्यवस्था होने के बावजूद इस तरह की घटनाओं का सामने आना सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 09:37 AM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 02:58 PM (IST)
ट्रैकिंग दलों की निगरानी न होने से खड़ी हो रही मुश्किलें, जानें- कितनी तरह की होती है ट्रैकिंग; क्या है व्यवस्था
ट्रैकिंग दलों की निगरानी न होने से खड़ी हो रही मुश्किलें।

केदार दत्त, देहरादून। Adventure Tourism उत्तराखंड में आई आपदा में दर्जनभर ट्रैकर की मौत के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिंग को लेकर चिंता के बादल मंडराने लगे हैं। ट्रैकिंग के लिए तय व्यवस्था होने के बावजूद इस तरह की घटनाओं का सामने आना सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर रहा है। समग्र रूप से देखें तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह मशीनरी से लेकर ट्रैकिंग दलों तक की बेपरवाही है। ट्रैकिंग के लिए अनुमति मिलने के बाद वन विभाग, पर्यटन व स्थानीय प्रशासन के साथ ही टूर आपरेटर की व्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन इनमें हर स्तर पर समन्वय का अभाव जोखिम का सबब बन रहा है। आलम ये है कि सिंगल विंडो सिस्टम से अनुमति जारी होने पर भी जिलों तक यह सूचना नहीं पहुंच पा रही कि किसे अनुमति दी गई है और ट्रैकिंग दल में शामिल सदस्य कौन-कौन हैं। ये हाल तब है जबकि, उत्तराखंड की सीमाएं चीन और नेपाल से सटी हैं। आश्चर्यजनक यह कि उत्तराखंड ट्रैकिंग एवं हाइकिंग नियमावली भी अभी तक आकार नहीं ले पाई है।

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रोमांच के शौकीनों के लिए उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के ट्रैकिंग रूट हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहे हैं। सरकार भी चाहती है कि सीमांत क्षेत्रों से पलायन की रोकथाम के मद्देनजर वहां साहसिक पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए। इसी के मद्देनजर वर्तमान में राज्य की 84 चोटियां पर्वतारोहण व ट्रैकिंग के लिए खुली हैं और अब इनमें 42 अन्य चोटियोंं को भी शामिल किया गया है। ट्रैकिंग के लिए व्यवस्था बनाई गई है, लेकिन इससे संबंधित नियमों का हर स्तर पर मखौल उड़ रहा है और जिम्मेदार एजेंसियां इसकी तरफ आंखें मूंदे हुए हैं।

तीन तरह की होती ट्रैकिंग

उत्तराखंड में ट्रैकिंग की तीन श्रेणियां हैं। इनमें हाइकिंग, ट्रैकिंग व हाई एल्टीट्यूड ट्रैकिंग शामिल हैं। हाइकिंग के तहत दिन-दिन में निश्चित दूरी तय कर वापस लौटना होता है, जबकि ट्रैकिंग व हाई एल्टीट्यूड टै्रकिंग के लिए ट्रैकिंग दलों को कैंप भी करना होता है। उन्हें अपने साथ प्रशिक्षित गाइड ले जाना अनिवार्य है। सामान ढोने के लिए वे दल की संख्या के हिसाब से पोर्टर अपने साथ ले जा सकते हैं। गाइड व पोर्टर का उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यूटीडीबी) में पंजीकरण आवश्यक है।

यह है व्यवस्था

ट्रैकिंग के लिए अनुमति लेना आवश्यक है। टै्रकिंग व हाई एल्टीट्यूड ट्रैकिंग के लिए अमूमन इंडियन माउंटेनियरिंग फेडरेशन (आइएमएफ) और टूर आपरेटर वन विभाग से अनुमति लेते हैं। पूर्व में इस व्यवस्था में लंबा वक्त लगने के मद्देनजर अब अनुमति के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया गया है। इसके तहत आइएमएफ व टूर आपरेटर से आवेदन और निर्धारित शुल्क जमा होने के बाद वन विभाग अनुमति जारी करता है। इसकी सूचना और ट्रैकिंग दल में शामिल व्यक्तियों का पूरा ब्योरा यूटीडीबी, संबंधित जिला पुलिस व प्रशासन को दिया जाना आवश्यक है। साथ ही ट्रैकिंग दलों व टूर आपरेटर की भी जिम्मेदारी है कि वे अभियान शुरू होने पर इसकी सूचना समेत दल का पूरा ब्योरा वन विभाग और स्थानीय पुलिस, प्रशासन व एसडीआरएफ को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराएं।

समन्वय के मोर्चे पर धड़ाम

टै्रकिंग के लिए सिंगल विंडो सिस्टम से अनुमति मिलने के बाद इसका पूरा ब्योरा इसी सिस्टम से जिलों तक पहुंचना चाहिए, लेकिन यह नहीं पहुंच पा रहा। इसके साथ ही ट्रैकिंग के मामले में संबंधित विभागों, स्थानीय प्रशासन, टूर आपरेटर व ट्रैकिंग दलों के मध्य समन्वय का अभाव है। स्थिति ये हो चली है कि अनुमति मिलने के बाद स्थानीय पुलिस, प्रशासन को सूचना दिए बगैर ही लोग ट्रैकिंग रूट पर निकल पड़ रहे हैं। यह बेपरवाही तब भारी पड़ती है, जब मौसम का मिजाज बिगडऩे अथवा रास्ता भटकने पर टै्रकर उच्च हिमालयी क्षेत्र में फंस जाते हैं। नतीजतन, उन्हें तलाशने के लिए मशीनरी को नाकों चने चबाने पड़ते हैं। यही नहीं, बिना सूचना दिए ट्रैकिंग के नाम पर कोई सीमांत क्षेत्र में चला जाए तो इसे सुरक्षा के लिहाज से उचित नहीं माना जा सकता।

नियमावली कब लेगी आकार

राज्य में हाइकिंग एवं ट्रैकिंग के लिए पूर्व में यूटीडीबी ने नियमावली का मसौदा तैयार किया था। इसमें पंजीकरण, अनुमति, टै्रकर, गाइड व पोर्टर के दायित्व, विभिन्न विभागों में समन्वय, निगरानी समेत अन्य बिंदुओं को शामिल किया गया है। यह मसौदा और सुझावों के लिए वन विभाग को भेजा गया है, लेकिन यह अभी तक यूटीडीबी को वापस नहीं लौटी है। नतीजतन इसे कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिल पाई है।

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ये आ रही दिक्कतें

-ट्रैकिंग के लिए वन समेत संबंधित विभागों में समन्वय का अभाव

-अनुमति के बाद समुचित ढंग से विभागों को नहीं मिल पा रही ट्रैकर दलों की सूचना

-कई मर्तबा ये बातें भी सामने आई कि बगैर अनुमति के ही ट्रैकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहुंच गए

सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर ने बताया कि सिंगल विंडो सिस्टम को लेकर कुछ दिक्कतें हैं। जिलों तक सभी सूचनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं, जबकि स्वाभाविक रूप से ये सूचनाएं मिल जानी चाहिए। इस दिक्कत को दूर कराया जा रहा है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी संबंधित विभागों, स्थानीय पुलिस, प्रशासन के पास ट्रैकिंग दलों का पूरा ब्योरा हो। साथ ही ट्रैकिंग व पर्वतारोहण के लिए मानक प्रचालन कार्यविधि तैयार की जा रही है। अभियान दलों के लिए जीपीएस आधारित रिस्टबैंड की व्यवस्था करने की दिशा में भी काम चल रहा है।

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