देहरादून में अब ना सुकून है ना ताजगी, घंटाघर छोड़ सब बदल गया
राजधानी देहरादून पहुंचे एड गुरू प्रह्लाद का कहना कि घंटाघर को छोड़ पूरे देहरादून का रूप बदल चुका है। अब यहां ना तो सुकून है और ना ही ताजगी।
देहरादून, [जेएनएन]: राजधानी देहरादून में ना तो पहले जैसा सुकून रहा और ना ही ताजगी। यह शहर अपना पुराना स्वरूप खोता जा रहा है। यह कहना है एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ का। जो दून में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे।
देहरादून में एक स्कूल के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे प्रह्लाद ने कहा कि इस शहर को देख अब ताज्जुब होता है। सिर्फ घंटाघर नहीं बदला बाकी सब बदल गया है। प्रह्लाद ने बताया कि उन्होंने आठवीं तक पढ़ाई दून के सेंट थॉमस कॉलेज से की। वह भी वक्त था जब स्कूल ही नहीं पिकनिक भी साइकिल पर जाया करते थे। उस समय सड़कों पर ऐसी रेलमपेल नहीं थी। दून की दशा देख आहत प्रह्लाद कहने लगे आप जरा मसूरी जाकर देखिए। बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए मसूरी एक आकर्षण था, जिसे हमने बर्बाद कर दिया है।
उन्होंने कहा कि चकराता कुछ हद तक फौज के नियंत्रण में रहा तो ठीक है। प्रह्लाद ने कहा कि विकास प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए। अन्यथा विकास और विनाश में ज्यादा फर्क नहीं बचेगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा विज्ञान समाज का ही चेहरा हैं। जैसे-जैसे समाज की नीयत और तासीर बदल रही है, उसी मुताबिक विज्ञापनों में भी बदलाव आ रहा है। कहने लगे कि साल की सौ टॉप एड फिल्म निकालिए और सामाजिक विज्ञान की किसी कक्षा में बच्चों को दिखाईये। उन्हें कहिये कि इसके आधार पर अपना विश्लेषण करें। वह बता देंगे कि क्या सही और क्या गलत है।
सेंसरशिप पर कहा कि हम अब भी मैच्योर नहीं हुए हैं। या कहें कि हमारे भीतर आत्मविश्वास की कमी है। हम डिबेट से भागते हैं, असहमति हमें विचलित करती है और मजाक सहने की हमारी शक्ति भी क्षीण है। यह कह सकते हैं कि हम कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि एक निर्देशक को इतनी लिबर्टी तो दी ही जानी चाहिए कि वह खुलकर अपनी बात रख सके।
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