लॉ संस्थानों में दाखिले का काउंटडाउन शुरू
देशभर के टॉप लॉ संस्थानों में दाखिले के लिए आयोजित होने वाले कॉ
जागरण संवाददाता, देहरादून: देशभर के टॉप लॉ संस्थानों में दाखिले के लिए आयोजित होने वाले कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लैट-2019) की अधिसूचना जारी कर दी गई है। आवेदन प्रक्रिया 10 जनवरी से शुरू होगी। आवेदक 31 मार्च तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
परीक्षा के जरिये देशभर की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के एलएलएम पाठ्यक्रम में दाखिला प्रदान किया जाएगा। करियर लॉन्चर के निदेशक अमित मित्तल ने बताया कि अभ्यर्थी 31 मार्च तक आवेदन कर सकते हैं। ऑफलाइन परीक्षा का आयोजन 12 मई को होगा। परीक्षा क्वालिफाई करने वाले परीक्षार्थियों को देश की 21 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज की 2600 सीटों पर ऐडमिशन दिया जाएगा।
लॉ प्रेप दून के निदेशक एसएन उपाध्याय ने बताया कि प्रवेश परीक्षा कुल 200 अंको की होती है। जिसमें अंग्रेजी के 40, जनरल नॉलेज के 50, लीगल एप्टीट्यूड के 50 व रीजनिंग के 40 अंकों के साथ ही 20 अंकों का गणित का सेक्शन होता है। परीक्षा में निगेटिव मार्किग होगी। एक प्रश्न का उत्तर गलत होने पर अभ्यर्थी को 0.25 अंक काट दिए जाएंगे। यानी 4 प्रश्न गलत होने पर एक अंक कट जाएगा। अभ्यार्थी ऑनलाइन आवेदन के लिए www.ष्द्यड्डह्लष्श्रठ्ठह्यश्रह्मह्लद्बह्वद्वश्रद्घठ्ठद्यह्व.ड्डष्.द्बठ्ठ/ पर लॉइन कर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ----------------------
आइआइएम से पीएचडी का समान मौका
शोध कार्य के ग्राफ को दुरुस्त करने के लिए फैसला
जागरण संवाददाता, देहरादून: उच्च-शिक्षण संस्थानों में लगातार गिरते शोध कार्य के ग्राफ को दुरुस्त करने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक नया फैसला किया है। जिसमें न केवल बीटेक करने वाले छात्रों को भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आइआइएम) से अब सीधे पीएचडी करने का मौका मिलेगा, बल्कि न्यूनतम अंक पात्रता यानी सीजीपीए को 8 से घटाकर 6.5 भी कर दिया गया है।
बता दें, देश में कुल 20 आइआइएम हैं। इन संस्थानों की ओर से कई बार औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह से मंत्रालय के समक्ष मामला उठाया गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए बीते 27 दिसंबर को इस संबंध में आदेश जारी किया गया है। जिसकी प्रति सभी आइआइएम को अनुपालना भेज दी गई है। इस फैसले से बीटेक के दौरान जरूरी पात्रता से कुछ कम परीक्षा परिणाम लाने वाले सामान्य छात्रों और बेहतर प्रदर्शन करने वाले होनहार छात्रों सभी को पीएचडी करने के समान अवसर मिलेंगे। इतना ही नहीं अब उनके सामने इसके लिए किसी विषय में परास्नातक (पीजी) होना भी अनिवार्य नहीं होगा। आइआइएम से पीजी करने के बाद नौकरी की तलाश में संस्थान छोड़ने वाले वह छात्र भी इससे लाभावित होंगे, जिन्हें अच्छे रोजगार के अवसर नहीं मिल सके और वह वापस उच्च-शिक्षा या शोध कार्य से जुड़ना चाहते हैं।