कोरोनाकाल में एंबुलेंस चालकों की मनमानी के किस्से हैं सबसे ज्यादा वायरल, फिर नकेल को इंतजार क्यों
फिलवक्त प्रदेश में कोरोना के बाद अगर किसी की मनमानी के किस्से सबसे ज्यादा वायरल हैं तो एंबुलेंस संचालकों के। चंद रोज पहले ये किस्से शिकायतों के रूप में अधिकारियों के कान तक पहुंचे तब जाकर राजधानी में सरकारी सिस्टम की आंख खुली।
देहरादून, विजय मिश्रा। फिलवक्त प्रदेश में कोरोना के बाद अगर किसी की मनमानी के किस्से सबसे ज्यादा वायरल हैं तो एंबुलेंस संचालकों के। चंद रोज पहले ये किस्से शिकायतों के रूप में अधिकारियों के कान तक पहुंचे, तब जाकर राजधानी में सरकारी सिस्टम की आंख खुली। अब जनता को इसका भान तो कराना था। सो, आनन-फानन एलान कर दिया कि एंबुलेंस का किराया तय होगा।
हाकिम के आदेश पर जिम्मेदारों ने भी प्रस्ताव बनाकर मुख्यालय को भेज दिया। इसके बाद से हर होंठ पर चुप्पी है। वैसे हाकिम चाहें तो फौरी तौर पर खुद भी एंबुलेंस का किराया तय कर सकते हैं। सरकार ने इस बाबत उन्हें अधिकारित कर रखा है। हरिद्वार में इस अधिकार का इस्तेमाल भी हो रहा है। फिर भी दून में इंतजार की कोई वाजिब वजह तो होगी ही। खैर, जनता भी जानती है कि काम सरकारी है तो देरी होनी ही है। इसलिए चुपचाप मनमानी सह रही है।
साहब, समय सभी का कीमती है
ऐसा कम ही देखने में आता है कि सियासतदानों को किसी आयोजन में बुलाया जाए और वह समय पर पहुंच जाएं। इससे भी कम देखने में आती है जनता की इस लेतलतीफी पर प्रतिक्रिया। बीते रोज प्रदेश की विधानसभा के अध्यक्ष जनता की इसी प्रतिक्रिया के कोपभाजन बन गए। टीकाकरण का उद्घाटन करने के लिए दो घंटा देरी से पहुंचने पर युवाओं ने उनको आड़े हाथ ले लिया।
हालात को भांपते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने उद्घाटन के कुछ देर बाद ही वापसी की राह पकड़ ली। हालांकि, बाद में उन्होंने जनता के इस गुस्से को गलतफहमी बताकर अपनी लेतलतीफी पर भी पर्दा डाल दिया। तर्क यह कि टीकाकरण नौ नहीं, 11 बजे शुरू होना था। सच्चाई यह है तो सवाल टीकाकरण के लिए समय जारी करने वाले पोर्टल के नीति नियंताओं से भी पूछा जाना चाहिए। आखिर, समय सभी का कीमती है। फिर वो आम आदमी हो यो कोई वीआइपी।
वैक्सीन के लिए यह दर्द क्यों
देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी कोरोना संक्रमण फिर तेजी से पैर पसार रहा है। अच्छी बात यह है कि अब हमारे पास वैक्सीन के रूप में इस महामारी से लड़ने के लिए एक हथियार है। प्रदेश में वैक्सीन लगवाने के लिए उत्साह के साथ जागरूकता भी नजर आ रही है। यह अच्छा संकेत है। लेकिन, 18 से 44 आयु वर्ग को वैक्सीन का दर्द आंखों में महसूस हो रहा है।
अब आप सोच रहे होंगे कि वैक्सीन तो हाथ में लग रही है, फिर दर्द आंख को कैसे? अरे भाई, स्लॉट की बुकिंग के चक्कर में। जिसके लिए न तो कोई समय तय किया गया है और न ही संख्या। ऐसे में एक ही रास्ता है कि लैपटॉप और मोबाइल पर नजरें गड़ाए रखिए।..तो साहब युवा वर्ग का यह दर्द अभी महसूस कर लीजिए। कहीं ऐसा न हो कि वैक्सीनेशन आंखों की किरकिरी बन जाए।
संकट की घड़ी है, मददगार बनिए
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए हमारे विज्ञानियों ने वैक्सीन जरूर ईजाद कर ली है। मगर, इसका उपचार तलाशने की दिशा में अभी भी लंबा सफर तय किया जाना है। फिलहाल जो उपचार कारगर बताया जा रहा है, वो है प्लाज्मा थेरेपी। इसमें कोरोना को शिकस्त दे चुके व्यक्ति के रक्त से इस वायरस से लड़ने वाली एंटी बॉडी निकालकर मरीजों के शरीर में डाली जाती हैं।
विडंबना यह है कि अधिकांश लोग प्लाज्मा दान करने के लिए आगे नहीं आ रहे, जबकि देश में कोरोना से जंग जीतने वालों की संख्या लाखों में है। ऐसे में उत्तराखंड पुलिस ने स्वस्थ पहल की है। कोरोना को मात दे चुके प्रदेश के पुलिसकर्मी प्लाज्मा दान के लिए आगे आए हैं। इस पहल से बाकी कोरोना योद्धाओं को भी प्रेरित होने की जरूरत है। यह संकट की घड़ी है। इसमें एक-दूसरे की मदद से ही सभी सुरक्षित रह सकते हैं।
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