उत्तराखंड परिवहन विभाग में मिनिस्ट्रीयल कर्मियों के 30 पद सृजित
कैबिनेट ने परिवहन विभाग के प्रशासनिक ढांचे के साथ ही मिनिस्ट्रीयल ढांचे को भी मंजूरी प्रदान की है। इसके तहत मिनिस्टीरियल ढांचे में 30 पदों की बढ़ोतरी की गई है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। कैबिनेट ने परिवहन विभाग के प्रशासनिक ढांचे के साथ ही मिनिस्ट्रीयल ढांचे को भी मंजूरी प्रदान की है। इसके तहत जहां प्रशासनिक ढांचे में 116 पद बढ़ाए गए हैं, वहीं मिनिस्टीरियल ढांचे में 30 पदों की बढ़ोतरी की गई है।
परिवहन विभाग में लंबे समय से कार्मिकों की संख्या बढ़ाने की मांग चल रही है। इस क्रम में प्रशासनिक और मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के अलग-अलग ढांचे शासन को स्वीकृति के लिए भेजे गए। मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के पीछे तर्क यह दिया गया कि परिवहन विभाग में कई नए उपसंभागीय कार्यालय बने हैं, जहां मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की कमी महसूस की जा रही है। ऐसे में इनके लिए भी नए पद सृजित किए जाएं। शनिवार को हुई कैबिनेट में इसे भी मंजूरी प्रदान की गई।
अभी तक मिनिस्ट्रीयल ढांचे में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी से लेकर कनिष्ठ सहायक तक के 310 पद सृजित हैं। अब इसमें 30 नए पद स्वीकृत किए गए हैं। नए स्वीकृत किए गए पदों में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी का एक पद, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारी के दो-दो पद, प्रशासन सहायक के पांच पद और वरिष्ठ सहायक व कनिष्ठ सहायक के पदों में 10-10 नए पद सृजित किए गए हैं। इस तरह विभाग के मिनिस्ट्रीयल ढांचे में अब 340 पद हो गए हैं। अब प्रशासनिक व मिनिस्ट्रीयल ढांचे में कुल 146 नए पद सृजित हुए हैं, जिन पर अब जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है।
नियमावली के इंतजार में खर्च नहीं हुए 83 करोड़ रुपये
शहरी क्षेत्रों में परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने और प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर वसूले जा रहे ग्रीन सेस का अभी तक इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इस मद में अब तक 83 करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। विभाग द्वारा इसे खर्च करने के लिए नियमावली आड़े आ रही है। इसे देखते हुए अब शहरी परिवहन नियमावली तैयार की जा रही है, जिसे जल्द ही कैबिनेट के जरिये पारित करने की तैयारी है।
परिवहन विभाग ने वाहनों से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए इन्हें नियंत्रित करने के लिए ग्रीन सेस लागू किया था। 12 दिसंबर 2012 को इस योजना को लागू किया गया। इसका मकसद वाहनों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए एक निधि स्थापित करना है, जिससे शहरी क्षेत्रों में परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ करने और प्रदूषण नियंत्रण के लिए नए कदम उठाए जा सकें। ग्रीन सेस के तहत नए वाहनों के पंजीकरण में, पेट्रोल चलित चौपहिया वाहनों से 1500 रुपये, डीजल चलित चौपहिया वाहनों से 3000 रुपये और दुपहिया वाहनों से छह सौ रुपये ग्रीन सेस लिया जाता है।
वहीं व्यावसायिक वाहनों से फिटनेस के दौरान यही शुल्क लिया जाता है। निजी वाहनों में 15 वर्ष बाद रिन्यूअल के समय इसी दर से ग्रीन सेस लिया जाता है। इस तरह अब तक विभाग ग्रीन सेस से 83 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जमा कर चुका है। बावजूद इसके इसे खर्च नहीं किया जा रहा है। दरअसल, इसे खर्च करने के लिए अभी तक कोई नियमावली बनी ही नहीं है। इस कारण विभाग को अभी भी छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए शासन का मुंह ताकना पड़ता है।
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अब इसके लिए शहरी परिवहन नियमावली तैयार की जा रही है। इस नियमावली में शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय व जागरूकता के लिए इसे खर्च करने का प्रविधान किया जा रहा है। इसके साथ ही इस मद से शहरी क्षेत्रों में अवस्थापना विकास का कार्य भी किया जाएगा। मसलन, इससे बस अड्डे, बस शेल्टर, यातायात के चिह्न आदि लगाए जा सकेंगे। उप परिवहन आयुक्त एसके सिंह का कहना है कि नियमावली का खाका तकरीबन तैयार हो चुका है। इसे अनुमोदन के लिए शासन को भेज दिया गया है।
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