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उत्तराखंड में अब अगर प्रदूषण फैलाया, तो रोजाना 22 हजार का जुर्माना

उत्तराखंड में अब अगर प्रदूषण फैलाया तो पर्यावरण क्षति के हिसाब से 22.5 हजार रुपये प्रतिदिन की दर से जुर्माना लग सकता है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 05:32 PM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 08:32 PM (IST)
उत्तराखंड में अब अगर प्रदूषण फैलाया, तो रोजाना 22 हजार का जुर्माना
उत्तराखंड में अब अगर प्रदूषण फैलाया, तो रोजाना 22 हजार का जुर्माना

देहरादून, जेएनएन। अगर अब पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया, तो पर्यावरण क्षति के हिसाब से 22.5 हजार रुपये प्रतिदिन की दर से जुर्माना लग सकता है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के आकलन के लिए तैयार किए गए नियमों को हरी झंडी दे दी गई है। 

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शुक्रवार को सहस्रधारा रोड स्थित गौरा देवी पर्यावरण भवन में बोर्ड की बैठक प्रमुख सचिव आनंद बद्र्धन की अध्यक्षता में आयोजित की गई। तय किया गया कि कोई भी प्रतिष्ठान या व्यक्ति पर्यावरण को क्षति पहुंचाएगा तो प्रकरण की गंभीरता के हिसाब से उस पर 900 रुपये प्रतिदन से लेकर अधिकतम 22.5 हजार रुपये का जुर्माना पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में वसूल किए जाएंगे। बोर्ड बैठक में बताया गया कि उत्तराखंड में जल से संबंधित तत्वों की जांच के लिए केंद्र सरकार से 16 करोड़ रुपये मिले हैं। 

इसके तहत प्रदेश में तीन अत्याधुनिक एनएबीएल (नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेट्रीज) प्रमाणित लैब स्थापित की जाएंगी। तय किया गया कि एक लैब देहरादून में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्यालय में स्थापित की जाएगी। इस लैब में 56 पैरामीटर पर पानी की गुणवत्ता जांची जाएगी। अब तक बोर्ड पानी के महज 12 पैरामीटर की जांच करता है। इसके अलावा एक-एक लैब काशीपुर और रुड़की में स्थापित की जाएगी। इन लैब में पानी की गुणवत्ता की जांच 36 पैरामीटर पर की जाएगी। इसके अलावा भी बोर्ड की बैठक में कई अन्य अहम प्रस्ताव पास किए गए। बैठक में प्रमुख वन संरक्षक डॉ. जयराज, बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि आदि उपस्थित रहे। 

पानी में हैवी मेटल का लगेगा पता 

अब तक पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पानी में बीओडी, डीओ, टोटल कॉलीफॉर्म, पीएच आदि की जांच करती है, जबकि अब पानी में कैंसर के कारक हैवी मेटल की जांच भी की जाएगी। जिससे पता चलेगा कि पानी में कहीं आर्सेनिक, लैड, ग्रीस आदि की मात्रा तो नहीं पाई जा रही। 

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और स्लॉटर हाउस स्थापित करने का शुल्क माफ 

बोर्ड की बैठक में जल संस्थान को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व स्लाटर हाउस के संचालन में रियायत दी गई है। नियमानुसार जल संस्थान को सीवेज प्लांट और नगर निकायों को स्लाटर हाउसों के लिए बोर्ड के साथ समझौता करना होता है, जिससे बोर्ड यह तय कर पाए कि प्लांट से निस्तारित होकर छोड़ा जाने वाला पानी मानकों के अनुरूप है या नहीं। इसी तरह स्लॉटर हाउस से निकलने वाले वेस्टेज का उचित तरीके से निस्तारण किया जा रहा है। इसके लिए बोर्ड 50 हजार रुपये तक स्थापना शुल्क लेता है। इस शुल्क को बोर्ड ने पांच साल तक के लिए माफ कर दिया है। वहीं, दूसरी तरफ जंगलों में आग का कारण बनने वाले पिरूल से ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहित करने का भी निर्णय लिया गया। इसके तहत जो भी कंपनी ऐस इकाइयां लगाएंगी, उनसे पांच साल तक स्थापना व संचालन शुल्क वसूल नहीं किया जाएगी। 

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सूक्ष्म और लघु उद्योगों पर नहीं लगेगा विलंब शुल्क 

सूक्ष्म और लघु उद्योग प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी के दायरे में आ पाएं, इसके लिए स्थापना व संचालन में लगने वाले शुल्क या विलंब शुल्क को पांच साल तक वसूल नहीं किया जाएगा। इस तरह संभावित शुल्क माफी डेढ़ करोड़ रुपये के आसपस बैठ रही है। बोर्ड ने यह निर्णय इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन के आग्रह के आधार पर लिया।   

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बोर्ड तैयार कराएगा राज्य पर्यावरणीय प्लान 

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक में राज्य पर्यावरणीय प्लान तैयार कराने का निर्णय लिया गया है। यह प्लान जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट (कोसी कटारमल) के माध्यम से तैयार किया जाएगा। इसके तहत देखा जाएगा कि राज्य में कूड़े की क्या स्थिति है, इसमें से कितने का निस्तारण हो रहा है और निस्तारण की प्रक्रिया को किस तरह और प्रभावी बनाया जा सकता है। 

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