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रामायण सर्किट की तरह अब देवभूमि उत्तराखंड महाभारत सर्किट बनाने की कवायद में जुटी

उत्तराखंड सरकार महाभारत सर्किट बनाने की कवायद में जुटी है। इसके लिए स्वदेश दर्शन योजना के तहत केंद्र को 98 करोड़ का प्रस्ताव भेजा है। यदि प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो लाखामंडल से केदारनाथ तक के स्थलों को कैसे विकसित किया जाएगा पर्यटन से कैसे जुड़ेगा की पड़ताल करती रिपोर्ट..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 11:44 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 11:44 AM (IST)
रामायण सर्किट की तरह अब देवभूमि उत्तराखंड महाभारत सर्किट बनाने की कवायद में जुटी
पौराणिक गाथाएं सुनाएंगी यह गुफा.. लाखामंडल स्थित पांडव गुफा। जागरण

केदार दत्त, देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में कदम-कदम पर पसरे पांडवकालीन निशान फिर से जीवंत होंगे और सैलानियों के आकर्षण का केंद्र भी बनेंगे। इस कड़ी में सरकार ने राज्य में महाभारत सर्किट विकसित करने की ठानी है। सर्किट में देहरादून के जनजातीय जौनसार-बावर क्षेत्र के लाखामंडल और हरिद्वार के भीमगौड़ा से लेकर केदारनाथ तक के क्षेत्र को शामिल किया गया है। लाखामंडल वही स्थल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों को जीवित जलाने के लिए कौरवों ने वहां लाक्षागृह का निर्माण कराया था।

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सरकार ने केंद्रीय पर्यटन मंत्रलय की स्वदेश दर्शन योजना में इस सर्किट के लिए 98 करोड़ का प्रस्ताव भेजा है। पर्यटन मंत्रलय में इसका प्रस्तुतिकरण हो चुका है। केंद्र से धनराशि मंजूर होने के बाद महाभारत सíकट में पाए जाने वाले अवशेषों के संरक्षण के साथ ही वहां पर्यटन से जुड़ी तमाम सुविधाएं विकसित की जाएंगी।देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे अनेक स्थल हैं, जहां पौराणिक और ऐतिहासिक अवशेष आज भी दृष्टिगोचर होते हैं।

माना जाता है कि पांडवों का भी देवभूमि से गहरा नाता रहा है। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव हरिद्वार से होते हुए यहां आए थे। कौरवों ने पांडवों व उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए देहरादून जिले के जनजातीय जौनसार-बावर क्षेत्र के लाखामंडल में लाक्षागृह (लीसे का घर) बनाया था। इस जगह वह गुफा आज भी मौजूद है, जिससे पांडव सुरक्षित बाहर निकल आए थे। इसके अलावा जौनसार-बावर के चकराता, नागथात, हनोल, ग्वासा से लेकर बाड़वाला (विकासनगर), उत्तरकाशी के पुरोला तक पांडवकाल के तमाम निशान मौजूद हैं।

केदारनाथ में पांडवों ने भगवान शिव तक पहुंचने में सफलता पाई थी। पांडवों की अंतिम यात्र का प्रसंग भी उत्तराखंड से जुड़ा है। कहते हैं कि पांडवों ने बद्रीनाथ होते हुए सशरीर स्वर्ग जाने की कोशिश की थी। वहां भी भीमपुल, कुलदेवी, वसुधारा, चंतोली बुग्याल, लक्ष्मी वन समेत अन्य स्थान पांडवों से जुड़े माने जाते हैं। स्वर्गारोहिणी से युधिष्ठर के सशरीर स्वर्ग जाने की भी मान्यता है।

पांडवकाल के इन निशां को देखते हुए ही सरकार ने उत्तराखंड में महाभारत सर्किट विकसित कर इसे पर्यटन से जोड़ने का निश्चय किया। पहले इसमें लाखामंडल से पुरोला तक ही क्षेत्र शामिल कर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन बाद में केंद्र के निर्देश पर इसमें कुछ और क्षेत्रों को जोड़ा गया। वर्ष 2019 में संशोधित प्रस्ताव स्वदेश दर्शन योजना में मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया। इस पर दो बार केंद्रीय पर्यटन मंत्रलय के अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुतिकरण हो चुका है। अब निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी हैं कि वह कब इस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान करती है। केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद पर्यटन मंत्रलय की टीम यहां आकर स्थलीय निरीक्षण करेगी और फिर केंद्र इसके लिए बजट जारी करेगा।

महाभारत सर्किट में ये होंगे काम : उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के वरिष्ठ शोध अधिकारी सुरेंद्र सामंत बताते हैं कि महाभारत सर्किट में शामिल किए गए क्षेत्रों में विभिन्न कार्य कराए जाएंगे। इनमें साइनेज, मंदिरों का संरक्षण व जीर्णोद्धार, पांडव चूल्हा, किलों समेत अन्य अवशेषों का संरक्षण, जगह-जगह दीवारों पर म्यूरल का निर्माण, पांडवों से जुड़े प्रसंगों की जानकारी देने को स्टोरी टेलिंग, पर्यटकों के लिए टै्रकिंग रूट समेत अन्य सुविधाओं से संबंधित कार्य होंगे। बजट की मंजूरी का इंतजार है।

उत्तराखंड के पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि केंद्र सरकार संभवत: स्वदेश दर्शन योजना में कुछ बदलाव भी करने जा रही है। इसीलिए महाभारत सर्किट की मंजूरी का मसला अटका हुआ है। उम्मीद है कि पहले तो इसी वित्तीय वर्ष अथवा अगले वित्तीय वर्ष में केंद्र से महाभारत सर्किट को मंजूरी मिल जाएगी।’


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