हार्क ने संवारी 25 हजार किसानों की सूरत, बाजार में उतारे 40 से अधिक उत्पाद
उत्तरकाशी की रंवाई घाटी और चमोली आदि क्षेत्रों के 25 हजार किसानों के 40 से अधिक उत्पाद बाजार में पैठ बना चुके हैं। इनकी आमदनी का आंकड़ा 85 करोड़ पार कर गया है।
देहरादून, जेएनएन। उत्तरकाशी की रंवाई घाटी और चमोली आदि क्षेत्रों के 25 हजार किसानों के 40 से अधिक उत्पाद बाजार में पैठ बना चुके हैं। किसानों के 320 से अधिक समूह पहले ही तय कर लेते हैं कि कौन सा गांव किस फूल, फल-सब्जी व अनाज का उत्पादन करेगा। फसल तैयार हो जाने पर ये किसी बाजार विशेषज्ञ की भांति अपने उत्पादों के दाम भी तय करते हैं और फिर उन्हें उत्तराखंड समेत दिल्ली, उत्तर प्रदेश व बेंगलुरू के बाजारों में पहुंचाते हैं। आज इनका करीब 40 हजार टन से अधिक माल सप्लाई होता है और आमदनी का आंकड़ा 85 करोड़ पार कर गया है।
किसानों की यह स्थिति वर्ष 2004 तक हालात ऐसे नहीं थे। खेतों की शान बने यही किसान खेतीबाड़ी से जी चुराते थे और सिर्फ पारंपरिक खेती तक ही सिमटे थे। आमदनी के नाम पर एक किसान सालभर में कृषि से बामुश्किल 12 हजार रुपये कमा पाता था। लेकिन, बीते 16 सालों में जो तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है, उसका श्रेय हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) संस्था के आर्थिक मैनेजमेंट गुरु एवं संचालक महेंद्र कुंवर को जाता है।
महेंद्र कुंवर ने किसानों के समूह बनाने की रणनीति पर काम शुरू किया। अलग-अलग बाजार में पहुंच रहे माल को एक जगह एकत्रित करवाया। जिससे माल बड़ी मात्र में एक साथ बाजार पहुंचने लगा। सहयोग मिलने पर ग्रामीणों के समूह खुद ही यह तय करने लगे कि कौन सा गांव, कब, कौन सी सब्जियां या अनाज उगाएगा।
इन्हें मिला बाजार (37 हजार टन सालाना)
टमाटर, मटर, सेब, नाशपाती, मिर्च, अदरक, लहसुन, संतरा, माल्टा, सिमला मिर्च, धनिया, आलू, राजमा, तूर, कुलथ, लोबिया, उड़द, गुलदावदी, कर्नेशन, ग्लेडिलस, लिलियम (फूल) आदि।
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इन उत्पादों की बाजार में पैठ
अचार, तुलसी उत्पाद, जैम-जेली, जूस, फलों की कैंडी, मुरब्बा आदि।
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