उत्तराखंड में दिलचस्प होगा आप के आने से 2022 का चुनावी दंगल
उत्तराखंड की सियासत में अब आम आदमी पार्टी (आप) की एंट्री से वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव दिलचस्प साबित हो सकते हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उत्तराखंड में वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के एलान के बाद उत्तराखंड में भी सियासी हलचल बढ़ने के आसार हैं। आप का दावा है कि बदली परिस्थितियों में उत्तराखंड की जनता भाजपा और कांग्रेस से इतर तीसरा विकल्प चाहती है। पार्टी ने इस सिलसिले में कराए गए सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि राज्य के 62 फीसद लोग चाहते हैं कि आप यहां चुनाव लड़े। जनता चाहती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के मसले पर दिल्ली का मॉडल यहां धरातल पर उतारे। इसे देखते हुए आप अब तैयारियों में जुट भी गई है। ऐसे में वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव यहां काफी दिलचस्प हो सकता है। माना जा रहा है कि उत्तराखंड में निरंतर जनाधार खो रही कांग्रेस के स्थान पर आप खुद को मतदाताओं के सामने स्वयं को बड़ी सियासी ताकत के रूप में पेश करने की रणनीति पर चल रही है।
उत्तराखंड की सियासी तस्वीर देंखें तो राज्य गठन के बाद से यहां भाजपा और कांग्रेस ही बारी-बारी सत्ता में आते रहे हैं। उत्तराखंड क्रांति दल समेत क्षेत्रीय ताकतें यहां उभर नहीं पाई हैं। सपा यहां पनप नहीं पाईं तो बसपा का जनाधार भी बुरी तरह सिमटा है। बीते छह वर्षों के परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो इस वक्फे में भाजपा अत्यंत मजबूत होकर उभरी है तो इसके ठीक उलट कांग्रेस बिखरी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर विस, लोस के साथ ही स्थानीय निकाय और सहकारिता के चुनावों में भाजपा ताकतवर होकर उभरी है। यही नहीं, वर्ष 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस के कई दिग्गज भाजपा का दामन थाम चुके हैं। इसका असर कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन पर साफ तौर पर दिखा है। राज्य में पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर तो हुई ही, महज 11 सीटों तक भी सिमट गई। पंचायत और निकाय चुनाव में भी कांग्रेस अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा से पिछड़ गई। कांग्रेस ने इस सबसे कोई सबक भी नहीं लिया। अब भी पार्टी के अंदरूनी मतभेद अक्सर सतह पर नजर आते रहे हैं।
इस परिदृश्य के बीच अब आम आदमी पार्टी की धमक से नए सियासी समीकरण बन सकते हैं। दरअसल, आप की रणनीति कांग्रेस की जगह राज्य में दूसरी सबसे बड़ी सियासी ताकत के तौर पर खुद को पेश करने की हो सकती है। हालांकि, अगले डेढ़ साल के भीतर कांग्रेस जैसी पुरानी और मजबूत संगठन वाली पार्टी के विकल्प के रूप में खुद को तैयार करना आप के लिए इतना आसान भी नहीं होगा। यह भी समझा जा रहा है कि अन्य पार्टियों के कुछ ऐसे बड़े चेहरे आप के प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने का रास्ता चुन सकते हैं, जो स्वयं को हाशिये पर पा रहे हैं। आप अपने मकसद में कितना कामयाब होती है, इसकी झलक आने वाले दिनों में दिखने लगेगी।
यह भी गौर करना समीचीन होगा कि उत्तराखंड में आप ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी पांचों सीटों पर प्रत्याशी उतारे, मगर उसे निराश होना पड़ा था। अब आम आदमी पार्टी ने 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार जैसे मुद्दों पर सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान किया है। बता दें कि ये मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर सभी सियासी दल चुनाव लड़ते आ रहे हैं।
हर चुनाव में हावी रहे हैं तीनों मुद्दे
जहां तक शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार जैसे मुद्दों की बात है तो हर चुनाव में ये हावी रहे हैं। सरकारी स्कूलों की दशा किसी से छिपी नहीं है। स्कूलों में शिक्षकों के साथ ही अन्य सुविधाओं की कमी दूर करने की तरफ ध्यान न देने का ही नतीजा है कि आज भी यहां के नागरिक अपने पाल्यों की पढ़ाई के लिए पहले निजी स्कूलों की तरफ रुख करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पहाड़ में स्थिति विकट है। ये बात अलग है कि चिकित्सकों के पद भरे गए हैं, मगर पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और आधुनिकीकरण की दरकार आज भी बनी हुई है। आलम ये है कि पर्वतीय क्षेत्र में छोटी-छोटी बीमारियों की दशा में भी उपचार के लिए कई-कई किमी पैदल नापकर शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों तक पहुंचना पड़ता है। यही नहीं, रोजगार की दशा किसी से छिपी नहीं है। पहाड़ों पर उद्योग चढ़ाने की मुहिम आज तक परवान नहीं चढ़ पाई है।
बोले सियासी दल
(फोटो: कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक)
सबकी नजरों में है काठ की हांडी
राज्य सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक कहते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, मगर दिल्ली की क्या स्थिति है सभी देख रहे हैं। आप की काठ की हांडी सबकी नजरों में है। लोकतंत्र में कोई भी कहीं से चुनाव लड़ सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य की जो परिस्थितियां हैं, उसमें केवल नारों से काम नहीं चलता। नारों से विकास नहीं होता।
(फोटो: कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना)
आप के लिए नहीं कोई गुंजाइश
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि चुनाव लड़ने से किसी को नहीं रोका जा सकता। इसके लिए हर कोई स्वतंत्र है। सवाल चुनाव लड़ने का नहीं, बल्कि ये देखने का है कि गुंजाइश किसके लिए है। यहां तो सीधी लड़ाई कांग्रेस व भाजपा के बीच है। जनता अब समझ चुकी है कि शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य जैसे मसले केवल कांग्रेस ही हल कर सकती है। आप के लिए यहां कोई गुंजाइश नहीं है। आप पार्टी को यह भी बताना चाहिए कि दिल्ली विस चुनाव में उसने पहाड़ के कितने लोगों को टिकट दिया। जब जिम्मेदारी की बात आती है तो आप इसे केंद्र पर डाल देती है और जब वाहवाही की बात होती है तो इसे लूट ले जाती है।
उत्तराखंड को भा रहा दिल्ली मॉडल
उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के मीडिया समन्वयक अमित रावत के मुताबिक राज्य की जनता भाजपा और कांग्रेस से परेशान है और वह विकल्प के रूप में आप की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है। राज्य की जनता को दिल्ली के विकास का मॉडल खूब भा रहा है। इस सबको देखते हुए पार्टी ने जनता की राय जानने को सर्वे कराया तो 62 फीसद लोग चाहते हैं कि आप यहां आकर चुनाव लड़े। शिक्षा व स्वास्थ्य का मॉडल राज्यवासियों को अच्छा लगा है और वे यहां भी दिल्ली जैसी कसरत चाहते हैं। दिल्ली के मुहल्ला क्लीनिक की तरह उत्तराखंड में भी ग्राम पंचायत स्तर पर क्लीनिक खुलें तो स्वास्थ्य की बड़ी समस्या दूर हो जाएगी। इसी तरह सरकारी स्कूलों को भी दिल्ली की तर्ज पर दुरुस्त करना होगा।
विशेषज्ञ की राय
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि ज्यादा से ज्यादा सियासी दल जनता के समक्ष अपनी बात रखें। विमर्श में जितने अधिक विचार आते हैं, वह विकास के दृष्टिकोण से बेहतर है। आप अथवा अन्य कोई दल भी यहां आता है और चुनाव लड़ता है तो ये उसकी स्वतंत्रता है। अलबत्ता, सवाल राज्य के विकास और राज्यवासियों के हितों को लेकर होना चाहिए। चुनाव कोई भी लड़े, फैसला जनता को ही करना है।