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नेताजी बहुत खुश हैं, सालों बाद जो पूरी होने जा रही है मुराद

नेताजी बहुत खुश हैं सालों बाद मुराद जो पूरी होने जा रही है। दरअसल नेताजी इसलिए बावरे हुए जा रहे हैं क्योंकि ढाई साल बाद ही सही मंत्री की कुर्सी अब सामने दिख रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 11:37 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 11:37 AM (IST)
नेताजी बहुत खुश हैं, सालों बाद जो पूरी होने जा रही है मुराद
नेताजी बहुत खुश हैं, सालों बाद जो पूरी होने जा रही है मुराद

देहरादून, विकास धूलिया। नेताजी बहुत खुश हैं, सालों बाद मुराद जो पूरी होने जा रही है। जैसे ही पता चला, फटाक से टेलर को दो बंद गला सूट का नाप दे आए। फूलवाले को भी एडवांस में आर्डर दे दिया कि जैसे ही नाम घोषित हो, बुके और पुष्पहार सप्लाई करने में देर न करे। लडडू तो खुद ही नुक्कड़ वाला हलवाई पहुंचा देगा। दरअसल, नेताजी इसलिए बावरे हुए जा रहे हैं क्योंकि ढाई साल बाद ही सही, मंत्री की कुर्सी अब सामने दिख रही है। परसों ही मुखियाजी दिल्ली में हाईकमान से कैबिनेट एक्सपेंशन की परमीशन हासिल कर लौटे हैं। इशारों-इशारों में बता दिया है कि तीनों खाली सीट भरनी हैं। मजेदार यह कि ऐसा उतावलापन एक, दो नहीं, सूबे में सत्तासीन भाजपा के 40 से ज्यादा विधायकों में दिख रहा है। अब उम्मीदों पर तो दुनिया कायम है, लिहाजा हर कोई मुगालते में है कि अबकी नंबर तो उसी का लगेगा।

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क्या अजब इत्तेफाक है

सियासत में इत्तेफाक की खासी अहमियत है। ऐसा एक से ज्यादा मामलों में हो तो कहना ही क्या। ऐसा ही कुछ नेताजी के साथ है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद जनाब चारों विधानसभा चुनाव जीते, तीन बार कांग्रेस और एक बार भाजपा से। सबसे ज्यादा समय मंत्री या इसके समकक्ष पद पर यही विराजे हैं। कांग्रेस की दो और मौजूदा भाजपा सरकार में मंत्री, तो एक बार नेता प्रतिपक्ष के रूप में। ये किस्मत वाले नेता हैं हरक सिंह रावत। इनसे दूसरा इत्तेफाक ये जुड़ा है कि इनके पास रहे मंत्रालयों में अकसर भर्तियों में विवाद होता है। कांग्रेस सरकार में इनके पास राजस्व महकमा था, तब पटवारी भर्ती घोटाला कई अफसरों का कॅरियर चौपट कर गया। अब इनके पास आयुष और वन विभाग हैं। पहले आयुर्वेद विवि और अब फारेस्ट गार्ड भर्ती में गड़बड़झाला सामने आया, अजब इत्तेफाक। हालांकि इस सब में नेताजी का कोई कुसूर नहीं।

अब तो भरेगी तिजोरी

महंगाई के दौर में किसी चीज के दाम एक बार बढ़ जाएं तो कम होना नामुमकिन, लेकिन सूबे में सरकार तिजोरी भरने के लिए यही हथकंडा इस्तेमाल कर रही है। सस्ती भी वह चीज हो रही, जिसकी डिमांड शायद ही कभी कम हो। जी हां, सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए जो एक्साइज पॉलिसी तय की है, उसमें शराब की कीमतों में गिरावट तय है। न न, सरकार के इस फैसले की कोई और व्याख्या न करें, दरअसल आबकारी राजस्व में भारी कमी के कारण यह कदम उठाया गया है। पिछले साल सौ से ज्यादा दुकानों को कोई लेने वाला नहीं मिला, तो टार्गेट कैसे पूरा होता। उस पर पड़ोसी राज्यों में कीमतें यहां के मुकाबले काफी कम, तस्करी बढ़ेगी ही। सरकार इसी चिंता में घुली जा रही कि इस साल भी ऐसा हुआ तो कोष कैसे भरेगा। लिहाजा मय के शौकीनों की बाछें खिलाने वाला फैसला सामने आया।

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बाज आओ अब विघ्नसंतोषियों

सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले हफ्ते दिल्ली क्या गए, सत्ता के गलियारों में नेतृत्व परिवर्तन की अफवाह उड़ा दी गई। वह भी तब, जब मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा पहले से तय था। सोशल मीडिया में यह बात कुछ ऐसी उछली कि सरकार और पार्टी संगठन तक असहज हो गए। आखिर में मुख्यमंत्री को खुद आगे आना पड़ा, तब जाकर अटकलों पर विराम लगा। दरअसल, सियासी अस्थिरता उत्तराखंड की पैदाइश के साथ ही इसकी नियति बन गई। डेढ़ साल की पहली अंतरिम सरकार में दो मुख्यमंत्री। एनडी तिवारी यूं तो अब तक पूरे पांच साल टिके अकेले मुख्यमंत्री, लेकिन उस दौर में भी कांग्रेस भारी अंतर्कलह का शिकार थी। अगली भाजपा सरकार में तीन मुख्यमंत्री, भुवन चंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, फिर खंडूड़ी। कांग्रेस में पहले विजय बहुगुणा, फिर हरीश रावत। यह पहली सरकार है, जो मजबूती से चल रही है, शायद विघ्नसंतोषियों को यही रास नहीं आ रहा।

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