उत्तराखंड की दो सौ ग्राम पंचायतों में विकास कार्यों पर पेच, जानिए वजह
राज्य की 202 ग्राम पंचायतों में अभी तक पंचायत का गठन नहीं हो पाया है। ऐसे में चिंता सालने लगी है कि इन पंचायतों में विकास कार्य कैसे होंगे।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। वित्तीय वर्ष 2020-21 शुरू होने को कुछ ही समय शेष रह गया है, मगर राज्य की 202 ग्राम पंचायतों में अभी तक पंचायत का गठन नहीं हो पाया है। वह भी तब जबकि, सामान्य निर्वाचन के बाद उप निर्वाचन भी हो चुका है। ऐसे में चिंता सालने लगी है कि इन पंचायतों में विकास कार्य कैसे होंगे। इसे देखते हुए अब वहां उपनिर्वाचन के मद्देनजर शासन ने संबंधित जिलों से रिक्त पदों की संख्या के साथ ही आरक्षण में बदलाव के मद्देनजर रिपोर्ट मांगी है।
हरिद्वार को छोड़ राज्य के शेष 12 जिलों में अक्टूबर में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न हुए, लेकिन तब साढ़े चार हजार ग्राम पंचायतों में पंचायतों का गठन नहीं हो पाया था। इसका सबसे बड़ा कारण ग्राम पंचायत सदस्यों के 30 हजार से अधिक पद रिक्त रहना था। कुछ पंचायतें ऐसी भी थीं, जहां सदस्य तो चुने गए, लेकिन ग्राम प्रधान का पद रिक्त था।
बाद में उपचुनाव भी हुआ, लेकिन आरक्षण समेत अन्य कारणों के चलते 202 ग्राम पंचायतें ऐसी रह गईं, जिनमें पंचायत का गठन फिर भी नहीं हो पाया। अल्मोड़ा में ऐसी पंचायतों की संख्या सर्वाधिक 61 है, जबकि दूसरे नंबर पर पौड़ी जिला है।
अब जबकि वित्तीय वर्ष शुरू होने को है और सरकार बजट की तैयारियों में जुटी है, तो इन 202 पंचायतों में विकास की चिंता सताने लगी है। वजह ये कि वर्तमान में ये न तो प्रशासकों के हवाले हैं और न वहां निर्वाचित बोर्ड ही अस्तित्व में है। गांव के निवासियों के साथ ही अब शासन की भी इसे लेकर चिंता बढ़ने लगी है।
ऐसे में इन ग्राम पंचायतों में उपचुनाव की तैयारियां शुरू की गई हैं। सचिव पंचायतीराज हरबंश सिंह चुघ के अनुसार सभी संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों से ग्राम पंचायतों में रिक्त पदों का ब्योरा मांगा गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि किसी ग्राम पंचायत में किन्हीं पदों के सापेक्ष आरक्षण में बदलाव किया जाना है तो इसका भी जल्द प्रस्ताव भेजा जाए।
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उन्होंने बताया कि कुछ जिलों से प्रस्ताव आ चुके हैं। सभी जिलों से प्रस्तावों का परीक्षण कर रिक्त पदों व आरक्षण से संबंधित मसले का निस्तारण कर राज्य निर्वाचन आयोग को सूचना भेजी जाएगी, ताकि इन पंचायतों में उपचुनाव कराकर पंचायत गठन का मार्ग प्रशस्त हो सके।
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