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आपदा से उपजी दुश्वारियों के बीच जीवन की तलाश, पढ़िए पूरी खबर

उत्तरकाशी जिले की आराकोट त्रासदी को एक माह का समय बीत चुका है और लोग धीरे-धीरे जख्मों पर मरहम लगाकर उजाड़ हो चुके जीवन में उम्मीद की किरण तलाशने लगे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 01:47 PM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 01:47 PM (IST)
आपदा से उपजी दुश्वारियों के बीच जीवन की तलाश, पढ़िए पूरी खबर
आपदा से उपजी दुश्वारियों के बीच जीवन की तलाश, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। उत्तरकाशी जिले की आराकोट त्रासदी को एक माह का समय बीत चुका है और लोग धीरे-धीरे जख्मों पर मरहम लगाकर उजाड़ हो चुके जीवन में उम्मीद की किरण तलाशने लगे हैं। सदियों से मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी रही है कि बाढ़ एवं विकटताओं के झंझावत से निकलकर वह जीवन जीने की राह तलाशने लगता है। आराकोट में भी जीवन धीरे-धीरे व्यवस्थित हो रहा है और और लोग आजीविका के काम-धंधों में जुटने लगे हैं। रही बात सरकारी तंत्र की तो यहां भी सड़क मार्ग खोलने और बिजली के तार खींचने के अलावा बाकी कुछ नजर नहीं आ रहा है। दुश्वारियों का पहाड़ अभी भी व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहा है। विदित हो कि जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 220 किमी दूर आराकोट क्षेत्र में बीते 18 अगस्त की सुबह आई आपदा ने भारी तबाही मचाई थी। 

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भविष्य पर भी त्रासदी की बड़ी मार

त्रासदी की मार न सिर्फ वर्तमान, बल्कि भविष्य पर भी पड़ी है। राइंका टिकोची के उजाड़ भवन में खतरे के बीच शिक्षकों ने पढ़ाना और बच्चों ने पढऩा शुरू कर दिया है। लेकिन, अभी तक स्कूल तक पहुंचने का रास्ता नहीं बना है और परिसर में भी मलबा भरा हुआ है। प्रधानाचार्य महेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि विद्यालय में 204 बच्चे पंजीकृत हैं, लेकिन फिलहाल 130 बच्चे ही विद्यालय आ पा रहे हैं। मोंडा, बलावट व खकवाड़ी के नौनिहाल अभी स्कूल नहीं आ पा रहे। माकुड़ी गांव के तीन छात्रों ने त्यूणी (देहरादून) में पढ़ाई करने के लिए टीसी मांगी तो स्कूल प्रशासन कोई भी दस्तावेज न होने के कारण टीसी नहीं दे पाया। हालांकि, प्रधानाचार्य ने उन्हें एक कोरे कागज पर लिख कर दिया है कि विद्यालय के सभी दस्तावेज बाढ़ में बह चुके हैं। इसी विद्यालय के एनएसएस प्रभारी वाइएस रावत कहते हैं कि वीरानी के बीच पढऩे और पढ़ाने का माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल एक पुराने भवन में विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। बताया कि विद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक के समस्त दस्तावेज बाढ़ की भेंट चढ़ चुके हैं। छात्रों और शिक्षकों को बैठने के लिए फर्नीचर तक नहीं बचा। चिवां के प्राथमिक विद्यालय और जूनियर हाईस्कूल भी अव्यवस्थाओं के बीच पठन-पाठन चल रहा है।

अभी तक नहीं खुली सड़क

आराकोट से लेकर टिकोची, माकुड़ी, किराणू और चिवां तक लोनिवि ने कामचलाऊ सड़क बना दी है। इस पर जान जोखिम में डालकर छोटे वाहनों का संचालन हो रहा है। सड़क की बदहाल स्थिति के कारण उत्तरकाशी से आराकोट तक अभी बस सेवा भी शुरू नहीं हो पाई है। चिवां से आगे खकवाड़ी, मोंडा व बलावट गांव को जोडऩे वाली सड़क बंद पड़ी है। चिवां के पास दलदल और लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण लोनिवि को सड़क बनाने में खासी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। इसके अलावा न तो चिवां गांव को जोडऩे वाले झूलापुल की एप्रोच बन पाई है और न टिकोची के पास बेली ब्रिज का ही निर्माण हो सका।

तीन गांवों में नहीं पहुंची बिजली

आराकोट क्षेत्र के खकवाड़ी, मोंडा व बलावट गांव में अभी तक बिजली आपूर्ति सुचारु नहीं हो पाई है। ऐसे में ग्रामीणों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मोंडा गांव के अब्बल ङ्क्षसह चौहान कहते हैं कि ग्रामीणों को लालटेन भी उपलब्ध नहीं कराई गई है। ऐसे में रात के वक्त तो वह घर से बाहर भी नहीं निकल पा रहे।

सेब की फसल को 60 फीसद नुकसान

मोरी के आराकोट क्षेत्र में उत्तरकाशी जिले का सबसे अधिक सेब पैदा होता है। यहां हर वर्ष 12500 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है, लेकिन अभी तक सिर्फ पांच हजार मीट्रिक टन सेब ही मंडियों तक पहुंच पाया। काश्तकारों का अनुमान है कि उनकी फसल को 60 फीसद नुकसान हुआ है। अगस्त में सेब तैयार हो चुका था, लेकिन सुदूरवर्ती क्षेत्रों के बागीचों से अभी तक उसे मंडियों में नहीं पहुंचाया जा सका।

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डॉ. आशीष चौहान (जिलाधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि जिन तीन गांवों में बिजली नहीं पहुंची है, वहां 20 सितंबर तक आपूर्ति बहाल कर दी जाएगी। चिवां के पास मोंडा-बलावट मार्ग पर दलदल होने के कारण कुछ परेशानियां हो रही हैं। यहां पर भी जल्द सड़क खुल जाएगी। लेकिन, आराकोट से चिवां तक बस सेवा शुरू होने में अभी समय लगेगा। मोंडा क्षेत्र के सेब को सड़क मार्ग तक पहुंचाने के लिए फिलहाल बलावट से चिवां तक ट्रॉली लगाई गई है। 

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