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बारिश में उत्तराखंड रोडवेज की बसों में छाता लेकर करें सफर, जानिए वजह

अगर आप उत्तराखंड रोडवेज की बसों में सफर कर रहे हैं तो बारिश की बूंदों से बचने का इंतजाम साथ लेकर चलें। सड़कोंं पर दौड़ रही जर्जर बसों में बारिश में पानी टपकने लगता है।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 01:36 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jul 2019 09:17 PM (IST)
बारिश में उत्तराखंड रोडवेज की बसों में छाता लेकर करें सफर, जानिए वजह
बारिश में उत्तराखंड रोडवेज की बसों में छाता लेकर करें सफर, जानिए वजह

देहरादून, जेएनएन। अगर आप उत्तराखंड रोडवेज की बसों में सफर कर रहे हैं तो बारिश की बूंदों से बचने का इंतजाम साथ लेकर चलें। यहां सड़कों पर आयु सीमा पूरी करने के बावजूद दौड़ रही निगम की जर्जर बसों की स्थिति यही है। स्थानीय मार्गों पर ही नहीं, बल्कि लंबी दूरी के लखनऊ जैसे मार्ग पर बसों की छत टपक रही और यात्री खड़े होकर सफर करने को मजबूर हो रहे। बसें कहां दम तोड़कर खड़ी हो जाएं, कोई गारंटी नहीं। कमोवेश यह स्थिति हर डिपो की है। 

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रोडवेज की करीब 450 बसें आयु सीमा पूरी कर चुकी हैं मगर प्रबंधन इन्हें रास्ते पर दौड़ाए जा रहा। लंबे अर्से से इन बसों की जर्जर हालात ठीक करने की मांग कर्मचारी उठाते रहे हैं, लेकिन प्रबंधन एवं सरकार की उदासीनता से बसों की हालत ठीक नहीं हो पा रही है। 

सरकार पिछले आठ माह से सूबे में 300 नई बसें लाने का दावा कर रही है, मगर बसें कब आएंगी, इसका कुछ मालूम नहीं। मौजूदा समय में प्रदेश में बारिश की वजह से रोडवेज के बस अड्डे तो पानी से जलमग्न हो ही रहे, बसें भी इसमें पीछे नहीं हैं। 

कहीं बसों में खिड़कियों से पानी अंदर आ रहा तो कहीं छतों के जरिए। देहरादून से पांवटा, ऋषिकेश, सहारनपुर, हरिद्वार आदि स्थानीय मार्गों पर चलने वाली बसों में छत टपकना तो आम बात है ही, अब लखनऊ जाने वाली ग्रामीण डिपो की साधारण सेवा में छत टपकने की शिकायतें आ रहीं। दून के ग्रामीण डिपो से ज्यादातर मैदानी मार्गों पर साधारण बसों का संचालन होता है और इसी डिपो की हालत सबसे जर्जर है। 

लखनऊ जाने वाली 3043 नंबर की बस की पूरी छत गुरूवार को टपकने लगी। यह हालात बने कि यात्रियों को सीट से उठकर खड़े होकर सफर करना पड़ा। सामान तक भीग गया। ग्रामीण डिपो समेत हरिद्वार और रुड़की, ऋषिकेश, कोटद्वार, काशीपुर तक में जर्जर बसों की समस्या से यात्रियों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा। सबसे ज्यादा मुसीबत उस वक्त खड़ी होती है जब बस में जगह नहीं होती और रास्ते में बारिश होने लगती है। 

बसों में वाइपर तक नहीं

तेज बारिश में वाइपर की कमी चालकों को खटक रही है। बसों में वाइपर लगाने के नाम पर कितना पैसा पानी में बहा यह तो प्रबंधन जाने, लेकिन चालकों का कहना है कि डिपो कार्यशाला के जिम्मेदार उन्हें मौत के मुंह में ढकेलने का पूरा इंतजाम किए हुए हैं। बसों की मरम्मत के नाम पर कागजों में काम हो हरा।

चालकों ने बताया कि पुरानी बसों में शीशे के फ्रेम भी खराब हैं, जिससे खिड़की रास्ते पानी बसों के अंदर आता है। बसों में वाइपर नहीं होने से तेज बरसात में हादसे का खतरा बना रहता है। 

अगले माह तक मिलेंगी 300 नई बसें

रोडवेज के महाप्रबंधक दीपक जैन के मुताबिक, आयु सीमा पूरी कर चुकी ज्यादातर बसों को हटाया जा चुका है। मार्गों पर जिन बसों को भेजा जाता है, वह कार्यशाला से जांच के बाद जाती हैं। जिन पुरानी बसों में छतों के टपकने की शिकायत आ रही, उन्हें ठीक कराया जाएगा। निगम की 300 नई बसें अगले माह तक पहुंच जाएंगी।

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