मतदान के दिन नजर आया डैमेज कंट्रोल का असर, जानिए
नगर निकाय चुनाव के लिए हुए मतदान के दिन भाजपा और कांग्रेस के डैमेज कंट्रोल का असर भी देखने को मिला।
देहरादून, केदार दत्त। भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने नगर निकाय चुनाव में मतदान के दिन डैमेज कंट्रोल का असर भी देखने को मिला। शुरुआती दौर में सियासी दल जिन खतरों को लेकर आशंकित थे और इन्हें कुछ हद तक मैनेज करने के दावे हो रहे थे, चुनावी मैदान में उसकी तस्वीर भी नजर आई। सत्ताधारी दल में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री-विधायक व निचले स्तर तक के नेता सक्रिय दिखे तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सक्रियता बढ़ाई। इसके जरिये सभी ने एकजुटता का संदेश देने की कोशिश भी की।
दोनों ही दलों, भाजपा व कांग्रेस के लिए निकाय चुनाव खासे महत्व वाले हैं। अगले साल लोकसभा चुनाव होना है और निकायों का असर उस पर भी दिखेगा। देखा जाए तो यह एक प्रकार से लोकसभा चुनाव की रिहर्सल ही है। इसके असर को दोनों ही दल भांप रहे थे और इसी के हिसाब से उनकी तैयारियां भी थीं।
हालांकि, टिकट बंटवारे के बाद दोनों दलों में बगावती तेवर, कार्यकर्ताओं में मनमुटाव, नाराजगी जैसी बातें तेजी से उभरीं। इसके लिए नेतृत्व की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें की गईं। भाजपा की बात करें तो उसके लिए यह चुनाव राज्य सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। इसका प्रमाण है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की देहरादून के नगर निगम से लेकर राज्यभर के तमाम निकायों में की गई सभाएं और लगातार सक्रियता।
यही नहीं, भाजपा ने नगर निगमों की जिम्मेदारी मंत्री-विधायकों से लेकर वरिष्ठ पदाधिकारियों और निचले स्तर तक के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सौंपी गई। यही नहीं, नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए बाकायदा टास्क दिए गए। साथ ही यह अहसास कराने की कोशिश भी की गई कि किसी निकाय में परफॉर्मेंस गिरने पर उन्हें ही जिम्मेदार माना जाएगा। इस रणनीति का असर आखिरी दिनों में चुनाव प्रचार अभियान से लेकर मतदान तक में साफ नजर आया।
इसी तरह कांग्रेस ने भी टिकट बंटवारे के बाद उपजे असंतोष के मद्देनजर रूठों को मनाने और पूरी दमदारी से चुनाव लड़ने का इरादा जताया। वजह ये कि लोस और विस चुनाव में उसे जिस तरह मात खानी पड़ी, इससे उबरने और साख बचाने के लिहाज से निकाय चुनाव अहम हैं। बावजूद इसके धड़ों में बंटी कांग्रेस में एका के मद्देनजर शुरुआती दौर में उसकी सबको साथ लेकर चलने की मुहिम अपेक्षानुरूप कुछ रंग लाती भी दिखी। मगर, कुछ नेताओं की चुनाव में कम सक्रियता ने कांग्रेस नेतृत्व के लिए चिंता का विषय बनी रही। इसने पार्टी को संशय में भी डाले रखा।
कुल मिलाकर, दोनों ही दलों ने प्रचार से लेकर मतदान तक पूरी ताकत झोंके रखी। इसमें किसको नफा हुआ और किसको नुकसान, यह तो 20 नवंबर को नतीजे ही बताएंगे। फिलवक्त दोनों ही दल इसे लेकर राहत में हैं कि उनकी जो तैयारियां थी, उसके अनुरूप सियासी धरातल को मजबूत बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
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