मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में बेड का संकट
जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड के एकमात्र मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, सेलाकुई में बेड की कमी के
जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड के एकमात्र मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, सेलाकुई में बेड की कमी के कारण महिला रोगियों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। यहां पहले से भर्ती कई मरीज ऐसे हैं, जिनकी स्थिति अब सामान्य है। लेकिन या तो यह लावारिस हैं, या इन्हें ले जाने वाला कोई नहीं। ऐसे में खामियाजा नए मरीज भुगत रहे हैं।
दरअसल प्रदेश में मानसिक रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए साल 2010 में 30 बेड के साथ मानसिक स्वास्थ्य संस्थान सेलाकुई की शुरुआत हुई। इसे 100 बेड किए जाने की योजना थी, लेकिन यह प्रस्ताव फाइलों में धूल फांक रहा है। वर्तमान समय में यहां नए मरीजों को भर्ती तक करने में दिक्कत आ रही है। भर्ती मरीजों में 14 को अब अस्पताल में रखने की जरूरत नहीं है और वह घर जाने की स्थिति में हैं। इनमें भी तीन महिलाएं बिल्कुल ठीक हैं और अस्पताल छोड़ने के बाद भी उन्हें दवा की जरूरत नहीं है। फिर भी सिस्टम की खामी के कारण वह अस्पताल में ही भर्ती हैं। इस कारण उन रोगियों को दिक्कत उठानी पड़ रही है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती रहकर उपचार की जरूरत है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ कुमार खगेंद्र सिंह के अनुसार जिला प्रशासन को इस स्थिति के बारे में सूचित किया गया है। कई बार इन मरीजों के परिवार के सदस्यों से भी संपर्क किया गया, लेकिन वह इन्हें ले जाने को तैयार नहीं हैं। इस वजह से किसी महिला रोगी को भर्ती नहीं किया जा रहा है। हालिया स्थिति में केवल निजी वार्ड उपलब्ध हैं। जिसके लिए 293 रुपये प्रति दिन का भुगतान करना होता है। लेकिन अधिकाश लोग इसमें भी असमर्थ हैं।
यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि सेलाकुई केवल गंभीर मरीज भेजे जाते हैं। यहां आधुनिक चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। राज्य के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों दून मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से भी मरीज यहां रेफर होकर आते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया पर विराम लग गया है। बता दें कि उत्तराखंड में मानसिक रोगियों की स्थिति चिंताजनक है। क्योंकि दूरस्थ क्षेत्रों में इलाज की व्यवस्था नहीं है। स्वास्थ्य विभाग में सिर्फ एक नियमित मनोचिकित्सक है जिनकी जनपद देहरादून में तैनाती है। जबकि अन्य सभी मनोचिकित्सक मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत हैं। चिकित्सा संसाधनों और उचित बुनियादी ढाचे की कमी के कारण रोगियों के उपचार में दिक्कत आती है।