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घटने लगी लोक वाद्य यंत्रों की गूंज

संवाद सूत्र, चकराता: जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में लोक वाद्य यंत्रों से बाजगी समुदाय के युवा किनारा

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Dec 2017 09:27 PM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 09:27 PM (IST)
घटने लगी लोक वाद्य यंत्रों की गूंज
घटने लगी लोक वाद्य यंत्रों की गूंज

संवाद सूत्र, चकराता: जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में लोक वाद्य यंत्रों से बाजगी समुदाय के युवा किनारा करते नजर आ रहे हैं। जिससे पौराणिक वाद्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं। सरकार व संस्कृति विभाग की उपेक्षा के चलते युवा पीढ़ी का पौराणिक वाद्य यंत्रों की तरफ रुझान घटा है। लोक संस्कृति के लिए धनी माने जाने वाले जौनसार में कहीं कोई कला केंद्र नहीं है और न ही कभी वाद्य यंत्रों को सिखाने की पहल की गई। पुश्तैनी लोक वाद्यकों को भी किसी तरह का सरकारी सहयोग न मिलने से अब लोक वाद्य यंत्रों की थाप की गूंज घटती जा रही है। जिससे क्षेत्र के लोक कलाकर बेहद परेशान हैं।

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देश में अनूठी लोक संस्कृति के लिए विख्यात जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर पर पाश्चात्य संस्कृति का असर दिखने लगा है। ढोल, दमोऊ, हुडका, रण¨सगा, नगाड, भैराई जैसे लोक वाद्य यंत्रों को सिखाने वाले कम रह गए हैं, बाजगी समुदाय की युवा पीढ़ी में सीखने की ललक नहीं है, जिस कारण अब पर्व पर कई वाद्य यंत्रों की थाप कम ही सुनाई देती है। एक समय था जब हर रोज पंचायती आंगनों में शाम को ढोल दमोऊ के साथ लोग लोक गीत गाते थे, लेकिन अब साल में किसी बेहद महत्वपूर्ण अवसर पर ही लोक वाद्य यंत्र की धमक सुनाई देती है। जौनसार-बावर क्षेत्र में बच्चे के जन्म पर बधाई, शबद बजाने का रिवाज था। शादी अवसर पर वियापात बजाया जाता था, किसी के मरने पर अंतिम विदाई के दौरान वाद्य यंत्र से ढोलाकरी बजाई जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सरकार व संस्कृति विभाग की उपेक्षा ने सब कुछ खत्म कर दिया है। स्वर्ण जाति के कुछ लोगों ने स्वयं वाध्य यंत्र बजाकर एक अच्छा संदेश देने का काम किया है। हाल ही में कोटा डिमऊ गांव में स्वर्ण जाति के लोक संस्कृति के प्रति प्रेम रखने वाले पंचम चौहान, खेम ¨सह चौहान व शूरवीर ¨सह चौहान ने अपने कंधों पर वाद्य यंत्र उठाकर एक अच्छा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि इसमें शर्म की बात नहीं है, वाद्य यंत्र हमारी संस्कृति के हिस्सा हैं। लोक रंगकर्मी व जौनसार सांस्कृतिक लोक कला मंच के निर्देशक नंदलाल भारती व लोक गायक सीताराम शर्मा कहते हैं कि वास्तव में सरकार ने जौनसार-बावर क्षेत्र की लोक संस्कृति को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। जिससे क्षेत्र के पौराणिक लोक वाद्य यंत्र अपनी पहचान खो रहे हैं। उनके पास जौनसार-बावर में बजाए जाने वाले सभी वाद्य यंत्र हैं, लेकिन सरकार द्वारा कला केंद्र न खोलने जाने के कारण नए कलाकार नहीं बन रहे हैं। क्षेत्र की युवा लोक गायिका किरन व युवा गायक अज्जू तोमर कहते हैं कि जौनसार बावर क्षेत्र में बजाए जाने वाले हर वाद्य यंत्र का अपना अलग महत्व है। ढोल का नाता मनुष्य से नागवंश के समय से रहा है। जौनसार-बावर क्षेत्र में ढोल दमोऊ, नगाडे़, करनाई जैसे वाद्य यंत्र देव स्थलों के साथ ही हर गांव में देखने को मिलते थे, लेकिन पिछले पांच-सात साल से इनका चलन कम हुआ है जो ¨चता का विषय है। क्षेत्र के लोक गायक व यूपी में अभियोजन अधिकारी महेंद्र राठौर का कहना है कि लोक वाद्य यंत्र हमारी पहचान हैं। संस्कृति विभाग ने अगर प्रयास किए होते तो जौनसार बावर क्षेत्र से एक से एक युवा प्रतिभाओं को आगे आने का मौका मिलता, लेकिन पूरे क्षेत्र में कला केंद्र तक नहीं है। सरकार को चाहिए की जौनसार बावर में कला केंद्र खोले। प्रसिद्ध लोक गायिका रेशमा शाह का कहना है कि जौनसार बावर की लोक संस्कृति का देश ही नहीं विश्व मुरीद है, लेकिन प्रदेश सरकार ने कोई खास काम नहीं किया।


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