भांग की खेती अभी धरातल से दूर
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में व्यावसायिक रूप से भांग की खेती को लेकर प्रदेश सरकार की कवायद अभी
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में व्यावसायिक रूप से भांग की खेती को लेकर प्रदेश सरकार की कवायद अभी तक परवान नहीं चढ़ पाई है। इसके लिए अभी भी लाइसेंस जारी करने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। नारकोटिक्स विभाग की ओर से मिले पत्र के बाद प्रदेश सरकार ने खेती के लिए विधिवत रूप से आवेदन करने का भी निर्णय लिया है। सरकार का कहना है कि इसके लिए लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है।
प्रदेश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय में भांग की व्यावसायिक खेती करने का निर्णय लिया था। इसका मकसद यह बताया गया कि इसका उपयोग औषधीय उपयोग किया जाएगा और इसके रेशे से अन्य उत्पाद बनाए जा सकेंगे। भांग की खेती का एक नियत टीएचसी (टेट्राहाइड्रो कैनीबीनॉल) से अधिक का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। इसके लिए बीज या तो प्रदेश सरकार को तैयार करना होगा या फिर इसे अन्य स्थानों से मंगाया जाएगा। शासनादेश में यह भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति, शोध संस्थान, गैर सरकारी संगठन व औद्योगिक इकाई बिना अनुमति के भांग की खेती नहीं कर सकता। इसके लाइसेंस जिलाधिकारी जारी करेंगे।
देखा जाए तो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में नशीले पौधों की खेती काफी पहले से होती है। इसमें अफीम के साथ ही भांग भी शामिल है। भांग की खेती करने वाले इसका इस्तेमाल नशीले उत्पाद बनाने व बीज का इस्तेमाल खाने के साथ ही दवा बनाने के लिए करते हैं, जबकि रेशे का इस्तेमाल घरेलू कामों के लिए किया जाता है। इसे देखते हुए प्रदेश में इसके रेशे व बीज के व्यावसायिक उपयोग की संभावना तलाश की गई। इसके बाद इसका शासनादेश जारी किया गया। यह शासनादेश बीते वर्ष दिसंबर में जारी किया गया था। इसे जारी हुए पूरे एक वर्ष होने जा रहे हैं लेकिन अभी तक इसकी खेती नहीं हो पाई है।
कृषि मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि सरकार के सामने सबसे बड़ी चिंता इसके दुरुपयोग को लेकर है। इसके लिए लोगों को जागरूक किया जाना जरूरी है। जहां तक नारकोटिक्स विभाग से अनापत्ति लेने का सवाल है तो उसमें ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी।